ईसाई मठ के महंत ने अपने प्रिय शिष्य से पूछा – “पुत्र, साधना के पथ पर तुम्हारी प्रगति संतोषजनक है न?”
शिष्य ने कहा – “जी, मैं यह प्रयास करता हूँ कि दिन में एक पल भी मुझे ईश्वर का विस्मरण न रहे”.
“यह तो बहुत अच्छी बात है. अब तुम्हारे लिए एक यही बात बची रह गयी है कि तुम अपने शत्रुओं को क्षमा कर दो” – गुरु ने कहा.
शिष्य को यह सुनकर बड़ा विस्मय हुआ. उसने कहा – “लेकिन मैं किसी भी शत्रु पर कुपित नहीं हूँ!”
“क्या तुम्हें यह लगता है कि ईश्वर तुमसे रुष्ट है?” – गुरु ने पूछा.
“बिलकुल नहीं!” – शिष्य बोला.
“फिर भी तुम ईश्वर से हर पल तुम्हें क्षमा करने के लिए प्रार्थना करते रहते हो. भले ही तुम्हारे मन में तुम्हारे शत्रुओं के लिए घृणा न हो पर तुम्हें उनसे क्षमायाचना करते रहना चाहिए. जो व्यक्ति क्षमाशील बनते हैं उनका ह्रदय निर्मल और पवित्र हो जाता है”.
बहुत आवश्यक और प्यारी पोस्ट , हार्दिक शुभकामनायें !
मगर क्या यह मेरे समझ आएगी गुरुवर ?
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बहुत अच्छा सन्देश …
सुबह सुबह आपकी पोस्ट पढ़कर मन सकारत्मक भावों से भर जाता है …
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bahut hi uttam sandesh……….
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अनुकरणीय और गहरी बातें।
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मन धोने का साबुन तलाश रहा था – यह मिला, क्षमा ब्राण्ड!
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वाह. आपका यह पोस्ट और ब्लॉग मुझे बहुत पसंद आया. मगर पोस्ट फीड तो सबस्क्राइब करने गया तो बहुत बदतमीजी से पेश आया 😦
यह देखिये – http://i51.tinypic.com/2n8sw2d.jpg
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हां सौरभ, यह तो बड़ी अजीब बात है. इसका कारण ढूंढना पड़ेगा.
आप ई-मेल से सब्सक्राइब कर लें. उसकी शिकायत नहीं सुनी आजतक.
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जो व्यक्ति क्षमाशील बनते हैं उनका ह्रदय निर्मल और पवित्र हो जाता है”.काश इस मन्त्र का ३०%लोग भी पालन करले तो मानव की सारी परेशानी दूर हो जाये
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that is very good things.i like this stories.
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