चार बौद्ध साधक मठ में बैठे ध्यान कर रहे थे. अचानक ही मठ के शीर्ष पर लगा झंडा फड़फड़ाने लगा.
सबसे युवा साधक का ध्यान टूट गया. वह बोला – “झंडा फड़फड़ा रहा है”.
उससे कुछ अनुभवी साधक ने कहा – “हवा फड़फड़ा रही है”.
तीसरा साधक उस मठ में बीस साल से था. वह बोला – “मन फड़फड़ा रहा है”.
चौथा साधक उन सभी में सबसे वरिष्ठ था. वह इस सबसे खीझ उठा और बोला – “मुंह फड़फड़ा रहे हैं!”
नाम फडफडा रहा है
अहम् फडफडा रहा है
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Sahi kaha akhiri wale ne
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विभिन्न दृष्टिकोण!
सभी ठीक कह रहे हैं।
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सभी के लिए साधना की मंजिल तक पहुँचने का सफ़र अभी बाकी है…
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तीसरे वाले ने ज्यादा सही कहा
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हा हा हा हा…सही कहा !!!
साधना के समय ध्यान झंडे पर जाकर तंग जाए और वही विवेचना का आधार बने,तो क्या कहा जाय…
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मन की चंचलता…
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सब प्राकृतिक है… 😛
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साधकों के सन्दर्भ में चौथी टिप्पणी सटीक है पर उसे भी किसी साधक को नहीं बोलना था, उसे शान्त रहना था।
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sabse pahala ye ki sadhana me insaan ko akagrachit hona chiye use bahari mann se antrik mann me dhyan hona chaiya isliye charo sadhak abhi tak ek bhi sidhi nahi chadhe hai
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