(यह पोस्ट पाउलो कोएलो ने अपने ब्लौग में लिखी है)
मुझे अक्सर मेरे प्रिय पाठक ई-मेल करके बताते हैं कि उन्हें मेरी किसी नई किताब का रिव्यू या आलोचना पढ़कर बहुत बुरा लगा क्योंकि वे उस रिव्यू या आलोचना से कतई सहमत नहीं थे. सबसे पहले तो मैं उनका शुक्रिया अदा करता हूँ कि वे मुझमें और मेरे लेखन में इतनी आस्था रखते हैं. इसके आगे मैं उनसे इतना ही कहना चाहता हूँ कि आलोचकों को इतनी गंभीरता से नहीं लें. उनसे पूछें – “यदि आप इतना बेहतर समझते हैं तो आप खुद ही कोई किताब क्यों नहीं लिखते?”
बीस साल के लेखन के दौरान मैं ऐसे निष्कर्षों तक पहुंचा हूँ जो मेरे लेखन में झलकते हैं और जिससे मुझे लिखने में बहुत मदद मिली है. मेरी पुस्तक ‘The Zahir’ का अहम किरदार अपनी किताब के छपने से पहले ही जानता है कि उसके बारे में आलोचक क्या कहेंगे.
आलोचकों की आलोचना करना मेरा काम नहीं है – मैं लेखक हूँ. जब कभी मैं उनसे मिलता हूँ (जैसा कि अक्सर होता ही रहता है), वे मुझसे मिलने पर झेंप जाते हैं. वे मुझसे इतनी भद्रता से पेश आते हैं जैसे कि उन्होंने गलती से मेरा पैर कुचल दिया हो. लेकिन मेरी प्रतिक्रिया उन्हें चकित कर देती है – मैं उनसे हमेशा कहता हूँ कि मैं उनकी राय को व्यक्तिगत तौर पर नहीं लेता.
मैं यह सब क्यों लिख रहा हूँ? क्योंकि मैं यह जानता हूँ कि आप लोगों में से अधिकांश जन अपनी आलोचना से आहत हो जाते हैं. जैसा कि मैं पहले कह चुका हूँ, आलोचकों को गंभीरता से नहीं लें. उन्हें ज़रुरत से ज्यादा महत्व नहीं दें. वे भी अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं, अपना घर चला रहे हैं.
यदि आप मुझसे सहमत नहीं हों तो कुछ महान व्यक्तित्वों के विचार पढ़ें:-
1. जो दिल को अच्छा लगता है वही करो क्योंकि किसी-न-किसी को तो बुरा लगता ही रहेगा. ~ आना एलीयानोर रूजवेल्ट
2. आलोचकों को कुछ अर्थपूर्ण कर्म करना चाहिए. ~ जॉन ग्रिशाम
3. आलोचना से बचने के लिए – कुछ न करें, कुछ न कहें, कुछ न बनें. ~ अलबर्ट हबार्ड
4. उनकी बातें नहीं बल्कि कानाफूसी मायने रखती है. ~ एरोल फ्लिन
5. यदि आलोचना से कुछ फर्क पड़ता तो दुनिया से कमीनापन कब का गायब हो चुका होता. ~ फ्रेड एलेन
6. अपने विरोधियों से भयभीत न हों. याद रखें, पतंग हवा चलने पर ही ऊपर उठती है. ~ हैमिल्टन मैबी
7. गुमनामी के सिवाय आलोचना से बचने का कोई रास्ता नहीं है. ~ जोज़फ़ एडीसन
8. मैं उन्हें (नाटक समीक्षक) बहुत पसंद करता हूँ. यह सोचकर ही मज़ा आता है कि वे हर रात थियेटर जाते हैं जबकि उन्हें नाटक के बारे में कुछ भी नहीं पता. ~ नोल कॉवर्ड
9. एक नन्हीं बरैया किसी भीमकाय घोड़े को काटकर बिदका सकती है पर घोड़े के सामने वह तुच्छ कीड़ा ही तो है! ~ सैमुअल जॉन्सन
10. आलोचकों को रिकॉर्ड्स खरीदने नहीं पड़ते. वे उन्हें मुफ्त ही पाते हैं. ~ नैट किंग कोल
11. आलोचक लम्बे अरसे तक गलत शब्द की खोज करते हैं और दुर्भाग्य से वह उन्हें मिल भी जाता है. ~ पीटर उस्टिनोव
12. मैं ईश्वर की तरह लिखना नहीं चाहता क्योंकि मैं मानता हूं कि ऐसा कोई नहीं कर सकता, जबकि आलोचक यह साबित करते में लगे रहते हैं कि ऐसा कोई नहीं कर सकता. ~ अर्नेस्ट हेमिंग्वे
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कुछ लिखने के बाद यह चाह रहती है कि जो मनोयोग से लिखा है, लोग पढ़े और सराहें भी। आलोचनायें महत्वपूर्ण हैं पर सब कुछ नहीं। साथ ही साथ स्वयं का प्रयास सतत बढ़ता रहे, तो टोकने वाला भी होना चाहिये।
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इस सूची में, स्वर्गीय परमादरणीय भवानी दादा मिश्र (हमारे ‘प्रिय मन्ना’) का यह कथन और जोड लीजिए – ‘आलोचकों की परवाह मत करों। आलोचकों के स्मारक नहीं बनते।’
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