एक दिन एक धनी व्यापारी ने लाओ-त्ज़ु से पूछा – “आपका शिष्य येन कैसा व्यक्ति है?”
लाओ-त्ज़ु ने उत्तर दिया – “उदारता में वह मुझसे श्रेष्ठ है।”
“आपका शिष्य कुंग कैसा व्यक्ति है?” – व्यापारी ने फ़िर पूछा।
लाओ-त्ज़ु ने कहा – ”मेरी वाणी में उतना सौन्दर्य नहीं है जितना उसकी वाणी में है।”
व्यापारी ने फ़िर पूछा – “और आपका शिष्य चांग कैसा व्यक्ति है?”
लाओ-त्ज़ु ने उत्तर दिया – “मैं उसके समान साहसी नहीं हूँ।”
व्यापारी चकित हो गया, फ़िर बोला – “यदि आपके शिष्य किन्हीं गुणों में आपसे श्रेष्ठ हैं तो वे आपके शिष्य क्यों हैं? ऐसे में तो उनको आपका गुरु होना चाहिए और आपको उनका शिष्य!”
लाओ-त्ज़ु ने मुस्कुराते हुए कहा – “वे सभी मेरे शिष्य इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने मुझे गुरु के रूप में स्वीकार किया है। और उन्होंने ऐसा इसलिए किया है क्योंकि वे यह जानते हैं कि किसी सद्गुण विशेष में श्रेष्ठ होने का अर्थ ज्ञानी होना नहीं है।”
“तो फ़िर ज्ञानी कौन है?” – व्यापारी ने प्रश्न किया।
लाओ-त्ज़ु ने उत्तर दिया – “वह जिसने सभी सद्गुणों में पूर्ण संतुलन स्थापित कर लिया हो।”
(A Tao story – Lao-tsu – in Hindi)
सही बात।
सफ़ल management में भी यह देखा जाता है।
किसी एक गुण में ही सर्वश्रेष्ठ होना पर्याप्त नहीं।
आप किसी भी कार्यालय में यह देख सकते हैं
boss हर काम में सबसे अच्छा नहीं होता।
सबसे अच्छा और सफ़ल boss वह होता है जो किसी विशेष गुण वालों को पहचान सकता है, परख सकता हैं, उन्हें प्रोत्साहित कर सकता है और ऐसे कई सारे लोगों को इकट्ठा करके अपना काम चलाता है।
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6.5/10
बेहतरीन ज्ञान देती लघु कथा
जीवन में हर चीज का संतुलन रखने वाला ही श्रेष्ठ मानव है
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“वह जिसने सभी सद्गुणों में पूर्ण संतुलन स्थापित कर लिया हो।”
श्रेष्टत्तम सार!!
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Great message !–Thanks.
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बहुत ही सुन्दर बात है। सन्तुलन ही जीवन का मर्म है, एक गुण आपका जीवन असंतुलित कर सकता है।
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वाह…सौ बीत की एक बात कही…
बहुत ही सुन्दर व प्रेरक कथा सुनाई आपने…बहुत बहुत आभार !!!
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निशांत जी ,महान दार्शनिक लाओ-त्ज़ु महोदय की सुंदर प्ररक कथा से रूबरू करवाने के लिए बहुत शुक्रिया -“तो फ़िर ज्ञानी कौन है?” – व्यापारी ने प्रश्न किया।
लाओ-त्ज़ु -ने उत्तर दिया – “वह जिसने सभी सद्गुणों में पूर्ण संतुलन स्थापित कर लिया हो। …अकाट्य सत्य है .
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ये सधना ही तो बड़ी चीज है, खूबसूरत संदेश।
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सटीक कह गए – ““वे सभी मेरे शिष्य इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने मुझे गुरु के रूप में स्वीकार किया है।
शिष्यत्व कठिन है, शिष्यभाव का होना अनोखापन है !
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