(यह पोस्ट पाउलो कोएलो के ब्लॉग से लेकर पोस्ट की गयी है)
जीवन में हमें सदैव स्थापित मानकों और रूपकों के सहारे ही चलने की आदत हो जाती है. मुझे हैम्बर्ग में एक पाठक मिला जो जीवन के उन्नयन से जुड़ा अपना अनुभव मुझसे बांटना चाहता था. उसने मेरे होटल का पता ढूंढ निकाला और मेरे ब्लॉग के बारे में कुछ आलोचनात्मक चर्चा के लिए वह होटल में आ गया. कुछ कठोर बातें कहने के बाद उसने मुझसे पूछा:
“क्या कोई नेत्रहीन व्यक्ति माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुँच सकता है?”
“मुझे ऐसा नहीं लगता” – मैंने उत्तर दिया.
“आपने ‘शायद’ क्यों नहीं कहा?”
मुझे यह लग रहा था कि मेरे सामने कोई सघन आशावादी बैठा है. मेरी संकल्पना के अनुसार ब्रह्माण्ड हमारे सपने को साकार करने के लिए ताना-बाना बुनता है, लेकिन ऐसी कुछ दुर्दम्य चुनौतियाँ भी होती हैं जिनका पीछा करते रहने में जीवन से हाथ धो बैठने का जोखिम भी होता है. किसी नेत्रहीन व्यक्ति का एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करने का सपना भी कुछ ऐसा ही है.
मैंने उसे कहा कि मेरा कोई ज़रूरी अपॉइंटमेंट है पर वह वहां से हिलने को भी तैयार नहीं था.
“कोई नेत्रहीन व्यक्ति भी विश्व के सबसे ऊंचे और दुर्गम पर्वत माउंट एवरेस्ट (ऊंचाई 8,848 मीटर) पर सफलतापूर्वक चढ़ाई कर सकता है. मैं ऐसे एक नेत्रहीन व्यक्ति को जानता हूँ. उसका नाम एरिक वीहेनमायर है. सन् 2001 में एरिक ने यह करिश्मा कर दिखाया जबकि हम सब आये दिन ये शिकायतें करते रहते हैं कि हमारे पास कार नहीं है, महंगे कपड़े नहीं हैं, और हमारी तनख्वाह से खर्चे पूरे नहीं पड़ते.” – उसने कहा.
“क्या यह वाकई सच है?” – मैंने पूछा.
लेकिन हमारी बातचीत में व्यवधान आ गया और मुझे ज़रूरी काम से उठना पड़ा. मैंने उसे मेरे ब्लॉग का अच्छा पाठक होने और ज़रूरी सुझाव देने के लिए धन्यवाद दिया. हमने एक फोटो भी ली और फिर अपने-अपने रास्ते चल दिए.
सुबह तीन बजे होटल लौटने पर मैंने अपनी जेब से कमरे की चाबी निकाली और मुझे उसके हाथ की लिखी पर्ची मिली जिसमें उसने उस नेत्रहीन व्यक्ति का नाम लिख कर मुझे दिया था.
मुझे काहिरा जाने की जल्दी थी फिर भी मैंने कम्प्यूटर चालू करके इंटरनेट पर वह नाम तलाशा और मुझे यह मिला:
“25 मई, 2001 को बत्तीस वर्षीय एरिक वीहेनमायर एवरेस्ट पर पहुँचने वाले पहले नेत्रहीन व्यक्ति बन गए. हाईस्कूल में पहले शिक्षक रह चुके वीहेनमायर को मनुष्य की शारीरिक सीमाओं को लांघने वाले इस कारनामे को कर दिखाने के लिए प्रतिष्ठित ESPN और IDEA पुरस्कार मिले हैं. एवरेस्ट से पहले वीहेनमायर दुनिया की सात सबसे ऊंची चोटियों पर भी चढ़ चुके हैं जिनमें अर्जेंटीना का आकोंकागुआ और तंज़ानिया का किलिमिंजारो पर्वत शामिल हैं.”
Photo by Theodor Lundqvist on Unsplash
जीवन मे ऊँचा उठो की कहता प्रेरक प्रसंग ……आभार.
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सीमायें नियत करना अपराध माना जाना चाहिये।
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Sach hee kaha hai ki vishwas mein pathar ko pighlane kee takat hai.
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3/10
इतने प्रेरक व्यक्तित्व के सम्बन्ध में आपने बहुत ही हल्के तरह से लिखा है. व्यवस्थित तरह से लिखने की आवशयकता थी. पोस्ट प्रभावित नहीं करती.
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श्रीमानजी, यह केवल मूल पोस्ट का अनुवाद है. आपकी बात से सहमत हूँ कि इसे बेहतर तरीके से लिखा जा सकता था पर पाउलो कोएलो ने इसे खुद ही बहुत सरसरे अंदाज़ में पोस्ट किया है. यह उनकी शैली ही है, इसमें कोई बुराई नहीं.
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क्या आप मूल ब्लॉग्गर के लेख की कडी बता सकते हैं।
हम भी अनुवाद की कला में रुचि लेते हैं और आपके इन लेखों से हम कुछ सीखना चाहते हैं।
आपका यह प्रयास सराहनीय है।
उस्तादजी के लिए मेरा सुझाव है कि अगली बार वे अनुवाद का मूल्यांकन करें।
कितना पक्का या सही है यह अनुवाद। आशा करता हूँ कि उस्तादजी अंग्रेज़ी में भी प्रवीण हैं।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
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कमेन्ट के लिए धन्यवाद, विश्वनाथ जी. पाउलो कोएलो की मूल पोस्ट की लिंक ऊपर पोस्ट के प्रारंभ में लगा दी है. आप मूल की तुलना अनुवाद से कर सकते हैं. सुझावों और शिकायतों का मैं सदैव स्वागत करता हूँ.
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nishant ji ,
….“25 मई, 2001 को बत्तीस वर्षीय एरिक वीहेनमायर एवरेस्ट पर पहुँचने वाले पहले नेत्रहीन व्यक्ति बन गए. ..प्रेरक प्रसंग .दुआ है कोई नोजवान पढ़े ,सीना ठोक कर मंजिल फतह करने निकले और कामयाब हो .
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बहुत धन्य्वाद।
हमने मूल लेख भी पढा और line by line अनुवाद से तुलना की।
अच्छा अनुवाद है।
मेरी इस विषय में काफ़ी दिलचस्पी है।
सरकारी नौकरी करते समय, हम केवल official correspondence का अनुवाद से परिचित थे।
मुझे आपका अनुवाद से काफ़ी कुछ सीखने को मिला और आगे भी हम दोनों लेख पढेंगे, मूल लेख और आपका अनुवाद।
कृपया मूल लेख की कडी देते रहिए
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
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aaise vakti se hame pridan leni chahiya .
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Wake up in the early morning is the best habits . It feel few difficulty while we try to wake up early in the morning . It is very beneficial to the person all works complete with in time and don’t get late anywhere. And of one thing is that we feel fresh
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