रेगिस्तान में एक फकीर भूखा-प्यासा, थका-मांदा ठोकरें खा रहा था. किस्मत से उसे रसीले फलों से लदा हुआ एक बड़ा छायादार पेड़ मिल गया. पेड़ के नीचे एक महीन जलधारा भी फूट रही थी.
फकीर ने रसीले फल खाए, शीतल जल पिया और ठंडी छाँव में विश्राम किया.
वहां से चलने से पहले फकीर ने उस पेड़ से पूछा – “ऐ प्यारे पेड़, मैं तुझे क्या आशीर्वाद दूं?”
“क्या मैं यह कहूं कि तेरे फल बहुत मीठे हों? वे तो पहले से ही बहुत मीठे हैं!”
“क्या मैं यह कहूँ कि तेरी छाँव बहुत घनी हो? वह तो बहुत घनी और शीतल है!”
“क्या मैं यह कहूँ कि तुझे भरपूर पानी मिले? पानी का सोता तो तेरी जड़ों के पास ही फूट रहा है!”
“तुझे तो मैं एक ही आशीर्वाद दे सकता हूँ, प्यारे पेड़, कि तेरे बीजों से पनपनेवाले सारे पेड़ तुझ जैसे ही हों!”
(पाउलो कोएलो के ब्लॉग से – From the blog of Paulo Coelho)
(~_~) Photo by Katya Austin on Unsplash
निशांत जी मुझे कई बार लगता है जीवन दर्शन एक ही स्थान पर आ जाते है -मुझे नानक देव जी की घटना ध्यान आ रही है -नानक जी किसी गावं गये सत्कार हुआ ,अशीर्वाद दिया खुशबू समान दूर दूर फेल जाओ .दूसरे गावं उनका अनादर हुआ कहा कुए समान यही रहो ,शीशों ने पूछा महाराज यह उलटी बात क्या .नानक जी ने कहा सज्जन लोग जहाँ जायेंगे सज्जनता फलायेंगे और दुर्जन दुर्जनता इस लिए दुर्जन लोगों को वही रहने का अशीर्वाददिया है .क्या पता में गलत हूँ .पर आपकी सुंदर पोस्ट के लिए थैंक्स
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बड़ी गहरी बात। सब सज्जनों पर लागू होती है यह बात।
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Your blog is very nice. Its pleasant to see and nice to read. It is certainly inspiring.
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मैं सहज ही आपके ब्लॉग पर प्रकाशित इन कथाओं से अनुप्रेरित हो जाया करता हूँ !
यह तो मेरी भी शुभाकांक्षा है इस ब्लॉग के लिये कि सतत यहाँ प्रेरणा के कुछ सुन्दर फूल खिलते रहें, अंकित होती रहें ये प्रेरक कथाएं !
आभार ।
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BAHUT SUNDER STORY NISHANT JI, PAR HUM SAB MEIN YEH BHAV AHA JAIYE JI
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