प्राचीन काल में एक राजा का यह नियम था कि वह अनगिनत संन्यासियों को दान देने के बाद ही भोजन ग्रहण करता था.
एक दिन नियत समय से पहले ही एक संन्यासी अपना छोटा सा भिक्षापात्र लेकर द्वार पर आ खड़ा हुआ. उसने राजा से कहा – “राजन, यदि संभव हो तो मेरे इस छोटे से पात्र में भी कुछ भी डाल दें.”
याचक के यह शब्द राजा को खटक गए पर वह उसे कुछ भी नहीं कह सकता था. उसने अपने सेवकों से कहा कि उस पात्र को सोने के सिक्कों से भर दिया जाय.
जैसे ही उस पात्र में सोने के सिक्के डाले गए, वे उसमें गिरकर गायब हो गए. ऐसा बार-बार हुआ. शाम तक राजा का पूरा खजाना खाली हो गया पर वह पात्र रिक्त ही रहा.
अंततः राजा ही याचक स्वरूप हाथ जोड़े आया और उसने संन्यासी से पूछा – “मुझे क्षमा कर दें, मैं समझता था कि मेरे द्वार से कभी कोई खाली हाथ नहीं जा सकता. अब कृपया इस पात्र का रहस्य भी मुझे बताएं. यह कभी भरता क्यों नहीं?”
संन्यासी ने कहा – “यह पात्र मनुष्य के ह्रदय से बना है. इस संसार की कोई वस्तु मनुष्य के ह्रदय को नहीं भर सकती. मनुष्य कितना ही नाम, यश, शक्ति, धन, सौंदर्य, और सुख अर्जित कर ले पर यह हमेशा और की ही मांग करता है. केवल ईश्वरीय प्रेम ही इसे भरने में सक्षम है.”
bahut badhiya..thanks.
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वाह….कितनी सुन्दर बात कही….
एकदम सटीक !!!
प्रेरणाप्रद कल्याणकारी इस अतिसुन्दर पोस्ट के लिए आपका ह्रदय से आभार !!!
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achchhi prastuti.
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कितनी गहरी बात। पात्र के माध्यम से पात्रता।
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अद्भुत
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ye baat ek dum sahi hai ki insaan ka dil kabhi nahi bharta ………..maja aagaya…….ek dum jakas………. 🙂
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सच्ची खरी बात.मानव स्वव्भाव ही ऐसा है.भागता है मंजिल के पीछे(नाम, यश, शक्ति, धन, सौंदर्य, सुख आदि )और मंजिल कहाँ .रास्ता ही रास्ता है .बिलकुल संन्यासी का पात्र और मानव ह्रदय सदा ही खाली .ग़ालिब साब ने कहा है
हजारों खाहिश एसी के हर खाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमा फिर भी कम निकले
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Good topic
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I LIKE IT VEREY MUCH.
THIS TYPE STORI BURN OUR HUMEN CULTURE ANA HURTS EFECT.
THANKYOU
MAINY-2 TIME FOR WRITER
09044468380
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it is real fact i most like it thank you very much aap se mujhe kuch aisa mila jiske liye ham aap ko baar baar dhanyawaad kahenge.
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bahut prerak katha hai. hum sabko is se seekh leni chahiye.
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