एक विराट सम्मलेन में बहुत से ज्ञानी जन ईश्वर और उसके द्वारा किये गए कार्यों पर चर्चा करने के लिए एकत्र हुए. एक सत्र में चर्चा का विषय यह था कि ईश्वर ने मनुष्य की रचना सृष्टि निर्माण के छठवें दिन क्यों की.
“पहले ईश्वर ने ब्रह्माण्ड को व्यवस्थित करने का निश्चय किया ताकि इसके सभी आश्चर्य हमारे लिए उपलब्ध हों” – एक ने कहा.
“पहले ईश्वर ने अन्य जीवों की रचना करके उनपर प्रयोग किये ताकि मनुष्यों की रचना करते समय किसी प्रकार की चूक न रह जाए” – दूसरे ने तर्क दिया.
सभा में एक बुद्धिमान यहूदी व्यक्ति भी आमंत्रित था. उससे भी यह पूछा गया – “ईश्वर ने छठवें दिन ही मनुष्य की रचना क्यों की? इस बारे में आपका दृष्टिकोण क्या है?”
“यह समझना तो बहुत सरल है!” – बुद्धिमान यहूदी ने कहा – “ईश्वर के मन में यह था कि जब कभी हम मनुष्य होने के घमंड से अकड़ जाएँ तब हमें यह बात नहीं भूलें कि एक मामूली मच्छर भी ईश्वरीय योजना में हमसे पहले वरीयता पर था.”
(यह तो एक कहानी ही है. परन्तु वास्तविकता में भी यही देखने में आया है कि पृथ्वी में मनुष्य के पदार्पण से भी पहले जीव-जंतुओं की लाखों-करोड़ों प्रजातियाँ पल्लवित होकर नष्ट हो चुकी हैं. मनुष्य को पूर्णरूपेण विकसित हुए अभी एक लाख वर्ष भी नहीं हुए हैं जबकि कॉकरोच पिछले पचास करोड़ वर्षों से बिना किसी परिवर्तन के उपस्थित हैं.)
अच्छा सबक!
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प्रेरक कथा,जो चिंतन को खुराक देती है…
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मनुष्य के अहंकार को सबक सिखाती कहानी.
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और हम नित बदल जाते हैं, यही है उत्कृष्ट रचना।
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लगभग सभी धर्मो का मानना है , गलती की सजा भुगतने मानव धरती पर फेंका गया .सारे इगो संबंधित दोष(घमंड आदि) भी इंसान को सजा सवरूप ही मिले हैं . जीव/जानवर, मानव दोषों से आजाद ज़िदगी गुजार जाते हैं. फिर भी आदमी ईश्वर की सबसे सुंदर रचना है .यह प्रेरक प्रसंग आदमी को रस्ते पर लाने के लिए लिखे गए किन्तु राह पर वह ही रहता है जिसे ईश्वर रखे
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interesting 🙂
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तीन दिन से इसे पढ़ रहा हूं। बहुत सुन्दर प्रसंग लिखा। शुक्रिया।
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A thought provoking post unfortunately we have very short memories about such things ,however keep us reminding about such things RS SHARMA
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