आदमी कुछ भी कर सकता है, कुछ भी. मैं इसपर यकीन करता हूं. यही वज़ह है कि जब ईराक में लोगों के सर काटे जाने लगे तब मुझे बिलकुल हैरत नहीं हुई. यह सब देखकर यहाँ लोगों के दिल दहल गए और वे चिल्लाने लगे “सर काट दिए! धड़ से अलग कर दिए”! लेकिन हम किस बात पर अचरज करें!? यह मानव स्वभाव की अतियों का एक और नमूना ही तो है! और किसे परवाह है कि ओकलाहोमा के किसी इंजीनियर का सर काट दिया गया? होता है यार! जैक, तुम अपना सर नहीं कटवाना चाहते हो तो ओक्लाहोमा में ही रहना, बाहर मत निकलना! जहाँ तक मेरी जानकारी है वे लोग ओकलाहोमा में सर नहीं काट रहे हैं. लेकिन एक बात मैं ज़रूर कहूँगा : जैक, यदि तुम एक बन्दूक लोड करके धडधडाते हुए किसी के मुल्क में घुस जाते हो तो तुम्हें बदले की कार्रवाई के लिए तैयार रहना चाहिए. कुछ मामलों में लोग अपना आपा खो देते हैं. और मैं तुमसे कहता हूँ कि… ये कोई शब्दाडम्बर नहीं बल्कि नैतिक प्रश्न है जिसका मैं उत्तर ढूंढ रहा हूँ कि एक या दो, तीन, पांच, या दस आदमियों का सर धड़ से अलग कर देने में और किसी अस्पताल पर बमों की बारिश करके दर्जनों बीमार बच्चों की जान ले लेने में कितना अंतर है? क्या तुम्हें किसी ने कभी बताया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया? अब अगर तुम यह सोच रहे हो कि मैं सर काट देने या यातना देने की और दूसरी घटनाओं में इतनी रुचि क्यों ले रहा हूँ मैं कहूँगा कि इन सब वाकयात से मेरी यह सोच पक्की होती जाती है कि इंसान असल में एक दरिन्दे जानवर से कोई ख़ास बेहतर नहीं है. तुम भी सतह तक जाकर देखो तो यही पाओगे कि इंसान और एक जंगली जानवर में कोई ख़ास अंतर नहीं है. जंगली दरिन्दे! आज से पच्चीस हजार साल पहले रहने वाले क्रो मैगनन आदिमानव से बेहतर नहीं. बिलकुल नहीं. पिछले एक लाख सालों में हमारे डीएनए में कोई ख़ास अंतर नहीं आया है. हम अभी भी अपने निचले मष्तिष्क द्वारा नियंत्रित होते हैं. ठीक वैसे ही जैसे सरीसृप. लड़ो या भागो. मारो या मार दिए जाओ. हमने कम्प्युटर, हवाई जहाज, पनडुब्बियाँ बनाई है और हम गीत लिखते हैं, चित्र बना सकते हैं तो हम सोचते हैं कि हम विकास की दौड़ में बहुत अग्रणी और श्रेष्ठ हो गए हैं. लेकिन तुम जानते हो… हम इस धरती पर जंगल से बाहर ही हैं. बेसबाल कैप लगाये हुए ऑटोमैटिक गन से लैस अर्धसभ्य जानवर ही हैं हम. – जॉर्ज कार्लिन

जब मानव गिरने पर आता है तो कोई सीमा नहीं रहती।
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अच्छी पोस्ट।
इंसान निस्संदेह एक जानवर ही है वह भी हिंस्र।
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शायद आप ठीक शब्द से इंसान की तुलना नहीं कर रहे, इंसान को जानवर कहना, जानवर को गाली देने जैसा है। अगर इंसान जानवर जेसा भी हो जायें तो सभ्य हो सकता है। क्या कोई जानवर किसी इंसान को कैद कर तांगा चलवाता है, सरकस करवाता है,शो के लिस …….. – मनसा आनंद
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मैं हिटलर से हद दर्जा नफरत करता हूँ.पर उसने कहा था i love dogs because i understand man.आदमी भी तो जानवर ही है .बताओ किस जगह अलग है. वस्त्र धारण करने (जों अब कम होते जारहे हैं)और विकास कामों (परमाणु शक्ति,संचार,आवास आदि) , जों कभी विनाश भी कर सकते हैं में .वरना तो आदमी और जानवर में दो ही प्रकार होते है बलवान और निर्बल .निर्बल का भक्षण/शोषण होता है और होता रहेगा .बलवान शासक और निर्बल शाषित यही चक्र चलता रहेगा .यही प्रकिर्तिक नियम-जीव जीवस्य भोजनम भी चलरहा है.इरान में कुछ सर कटे जा रहे हैं या हिरोशिमा से इराक तक बमबारी भी बलवान के निर्बल पर अत्याचार का भाग है ठीक उसी प्रकार जेसे कि शेर द्वारा हरिन को दबोचा जाना है .
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