हमारे समय का विरोधाभास यह है कि हमने इमारतें तो बहुत ऊंची बना ली हैं पर हमारी मानसिकता क्षुद्र हो गयी है। लंबे-चौडे राजमार्गों ने शहरों को जोड़ दिया है पर दृष्टिकोण संकरा हो गया है। हम खर्च अधिक करते हैं पर हमारे पास कुछ खास नहीं होता। हम खरीदते ज्यादा हैं पर उससे संतुष्टि कम पाते हैं। हमारे घर बड़े हैं पर परिवार छोटे हो गए हैं। हमने बहुत सुविधाएँ जुटा ली हैं पर समय कम पड़ने लगा है। हमारे विश्वविद्यालय ढेरों विषयों की डिग्रियां बांटते हैं पर समझ कोई स्कूल नहीं सिखाता। तर्क-वितर्क ज्यादा होने लगा है पर निर्णय कम सुनाई देते हैं। आसपास विशेषज्ञों की भरमार है पर समस्याएं अपार हैं। दवाईयों से शेल्फ भरा हुआ है पर तंदरुस्ती की डिबिया खाली है।
हम पीते बहुत हैं, धुंआ उड़ाते रहते हैं, पैसा पानी में बहाते हैं, हंसने में शर्माते हैं, गाडी तेज़ चलाते हैं, जल्दी नाराज़ हो जाते हैं, देर तक जागते हैं, थके-मांदे उठते हैं, पढ़ते कम हैं, टी वी ज्यादा देखते हैं, प्रार्थना तो न के बराबर करते हैं! हमने संपत्ति को कई गुना बढ़ा लिया पर अपनी कीमत घटा दी। हम हमेशा बोलते रहे, प्यार करना भूलते गए, नफरत की जुबाँ सीख ली।
हमने जीवन-यापन करना सीखा, ज़िंदगी जीना नहीं। अपने जीवन में हम साल-दर-साल जोड़ते गए पर इस दौरान ज़िंदगी कहीं खो गयी। हम चाँद पर टहलकदमी करके वापस आ गए लेकिन सामनेवाले घर में आए नए पड़ोसी से मिलने की फुर्सत हमें नहीं मिली। हम सौरमंडल के पार जाने का सोच रहे हैं पर आत्ममंडल का हमें कुछ पता ही नहीं। हम बड़ी बात करते हैं, बेहतर बात नहीं।
हम वायु को स्वच्छ करना चाहते हैं पर आत्मा को मलिन कर रहे हैं। हमने परमाणु को जीत लिया, पूर्वग्रह से हार बैठे। हमने लिखा बहुत, सीखा कम। योजनाएं बनाई बड़ी-बड़ी, काम कुछ किया नहीं। आपाधापी में लगे रहे, सब्र करना भूल गए। कम्प्यूटर बनाये ऐसे जो काम करें हमारे लिए, लेकिन उन्होंने हमसे हमारे दोस्त छीन लिए।
हम खाते हैं फास्ट फ़ूड लेकिन पचाते सुस्ती से हैं। काया बड़ी है पर चरित्र छोटे हो गए हैं। मुनाफा आसमान छू रहा है पर रिश्ते-नाते सिकुड़ते जा रहे हैं। परिवार में आय और तलाक़ दुगने होने लगे हैं। घर शानदार हैं, पर टूटे हुए। चुटकी में सैर-सपाटा होता है, बच्चे की लंगोट को धोने की ज़रूरत नहीं है, नैतिकता को कौन पूछता है? रिश्ते रात भर के होते हैं, देह डेढ़ गुनी होती जा रही है, गोलियां सुस्ती और निराशा दूर भगाती हैं – सब भुला देती हैं – सब मिटा देती हैं। दुकानों के शीशों के पीछे देखने को बहुत कुछ है लेकिन चीज़ें उतनी टिकाऊ रह गयीं हैं क्या?
क्या ज़माना आ गया है… आप इसे एक क्लिक से पढ़ सकते हैं, दूसरी क्लिक से किसी और को पढ़ा सकते हैं, तीसरी क्लिक से डिलीट भी कर सकते हैं!
मेरी बात मानें – उनके साथ वक़्त गुजारें जिन्हें आप प्यार करते हैं, क्योंकि कोई भी किसी के साथ हमेशा नहीं रहता।
याद रखें, उस बच्चे से भी बहुत मिठास से बोलें जो अभी आपकी बात नहीं समझता – एक न एक दिन तो उसे बड़े होकर आपसे बात करनी ही है।
दूसरों को प्रेम से गले लगायें, दिल से गले लगाये, आख़िर इसमें भी कोई पैसा लगता है क्या?
“मैं तुमसे प्यार करता हूँ” – यह सिर्फ़ कहें नहीं, साबित भी करें।
प्यार के दो मीठे बोल पुरानी कड़वाहट और रिसते ज़ख्मों पर भी मरहम का काम करते हैं।
हाथ थामे रखें – उस वक़्त को जी लें। याद रखें, गया वक़्त लौटकर नहीं आता।
स्वयं को समय दें – प्रेम को समय दें।
ज़िंदगी को साँसों से नहीं नापिए बल्कि उन लम्हों को क़ैद करिए जो हमारी साँसों को चुरा ले जाते हैं।
अब अगर आप इस संदेश को 5 लोगों को नहीं भी भेजते तो किसे इसकी परवाह है! – जॉर्ज कार्लिन
Photo by Bruno Aguirre on Unsplash
wonderful and inspiring
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बिल्कुल सटीक संदेश है जीवन का। छूट गये माणिकों को ढूढ़ लाना होगा।
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Bahut hi prerak sandesh hai..
Thanks
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Nishantji mai aapse ye puchna chahta hu ki aap kitne dino ke antral me nai post likhte hai..
Aap ki posto ka mujhe beshabri se intzaar rahta hai..
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देवेन्द्र, आजकल मैं हर दो दिन के अंतर से पोस्ट कर रहा हूँ. अगली पोस्ट चार तारिख को आएगी. यदि तुम ई-मेल या फीड की सदस्यता ले लो तो नई पोस्ट देखने के लिए ब्लौग पर नहीं आना पड़ेगा.
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