एक भिखारी ने इब्राहिम इब्न अल अदम से भीख में कुछ पैसे मांगे. इब्राहिम ने उससे कहा – “तुम मेरे साथ चलो. मैं तुम्हारे खाने-पीने का पुख्ता इंतजाम कर देता हूँ.”
इब्राहिम उसे लेकर एक दुकानदार के पास गए और उससे भिखारी को कोई छोटा-मोटा काम देने के लिए कहा ताकि वह खुद अपनी रोजी-रोटी कमा सके. दुकानदार इब्राहिम का बहुत मान रखता था इसलिए उसने बिना कोई सवाल किये भिखारी को काम पर रख लिया. भिखारी को पास के नगर में जाकर सामग्री बेचने का काम सौंप दिया गया.
कुछ दिनों के बाद इब्राहिम ने भिखारी को पहले की तरह सड़क पर भीख मांगते देखा. इस बाबत पूछने पर भिखारी ने उनसे कहा – “एक रोज़ सफ़र के दौरान मैंने रेगिस्तान में एक चील को देखा जिसकी दोनों आँखें खराब थीं. मुझे यह जानने की चाह थी कि अंधी चील अपना पेट किस तरह भरती है. मैंने कुछ समय तक उसपर नज़र रखी और यह पाया कि एक दूसरी चील उसके लिए दाना-खाने का इंतजाम करती थी. तब मैंने खुद से यह कहा ‘अल्लाह ने ही उस अंधी चील की देखभाल के लिए ऐसा इंतजाम किया है और वही मेरी गुज़र-बसर की फ़िक्र भी करेगा’. तब मैं यहाँ लौट आया और दुकानदार को उसका सामान वापस कर दिया. अब मैं इस तरह रहने में ही खुश हूँ.”
इब्राहिम ने उसकी बात सुनकर दो पल के लिए कुछ सोचा, फिर कहा – “अंधी चील के जैसा जीवन बिताने के बजाय तुमने उस चील की तरह बनने का क्यों नहीं सोचा जो उड़ती, पीछा करती और दूसरों की परवाह करती है?”
bahut achchaa
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अंधी चील के जैसा जीवन बिताने के बजाय तुमने उस चील की तरह बनने का क्यों नहीं सोचा जो उड़ती, पीछा करती और दूसरों की परवाह करती है?”
interesting and motivating too.
regards
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अपने यहाँ भी एक जन कह गए हैं:
अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम
दास मलूका कह गए सबके दाता राम ।
मुझे यह सोच अज़ीब लगती है।
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अंधी चील की बजाय उड़ने वाली चील जैसा जीवन जीना उद्देश्य होना तो चाहिए …
सुन्दर प्रेरक प्रसंग ..!
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बहत सही … यह साबित हो गया …. कि इन्सान अपनी फितरत कभी नहीं छोड़ सकता…..
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प्रेरणादायक कहानी.
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कोई अंधा बनने पर उतर आये तो क्या समझाईयेगा ?
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सच लेकिन क्रूर सच , कम से कम इस मुल्क के ल्ये तो है ही 🙂
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इसे कहते हैं कि इसकी “हिये-कपारे दोनों की फूटी हैं” यानी भौतिक चक्षुहीन होना तो है ही – मगर अन्तर्दृष्टि जो विवेक-जनित होती है – उससे भी अन्धा होना।
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master strock
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