कई लोगों की भीड़ में मुल्ला नसरुद्दीन नमाज़ अदा करने के दौरान आगे झुका. उस दिन उसने कुछ ऊंचा कुरता पहना हुआ था. आगे झुकने पर उसका कुरता ऊपर चढ़ गया और उसकी कमर का निचला हिस्सा झलकने लगा.
मुल्ला के पीछे बैठे आदमी को यह देखकर अच्छा नहीं लगा इसलिए उसने मुल्ला के कुरते को थोड़ा नीचे खींच दिया.
मुल्ला ने फ़ौरन अपने आगे बैठे आदमी का कुरता नीचे खींच दिया.
आगेवाले आदमी ने पलटकर मुल्ला से हैरत से पूछा – “ये क्या करते हो मुल्ला?”
“मुझसे नहीं, पीछेवालों से पूछो” – मुल्ला ने कहा – “शुरुआत वहां से हुई है”.
सही तो है..शुरु किसने किया..उसे पकड़ो.
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dear u r right….! that why we call these types of persons either mulla….or pandit….
a little knowledge is a dangerous thing……
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Sach hai. Kai bar parampara ki shuruaat to kisi thos vajah se hoti hai par baad me anukaran karne waale bina wajah samjhe hi nibhay chale jaate hein.
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जब अपने साथ हो उसे बिना सोचे न बढ़ाया जाये ।
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Ha ha ha ha…majedaar,par shikshaprad…
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apka kurta kahan hai?…lemme pull..lol
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… bahut sundar !!!!
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हा हा हा …बढ़िया है
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मुल्ला नसीरुद्दीन की कहानियां मुझे बचपन से बेहद पसंद रही हैं. शुक्रिया !
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मेरे पिताजी अक्सर मुल्ला नसीरुद्दीन की कहानियाँ सुनाया करते थे. सबसे मजेदार लगती थी, कड़ाही के बच्चे की कहानी. सच में कितनी आसानी से मुल्ला मजाक ही मज़ाक में बड़ी बातें बता जाते थे.
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किसी परंपरा को बिना सोचे समझे ढोने वालों के लिए बढ़िया तंज … शुरुआत कहीं से हुई हो … बुद्धिमत्ता तो उसकी विवेकशील परिणति मे ही है
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ye koi parmpra nai he murakhta he agar pichey wala bolta ki asa karna he apney age waley ko to hum isey parmpra khete
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dusro ki bewkufi ko ham q doharaye,.
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Kuch purani parampara ko maan ne chalte hum ‘manavta’ ko bhi tar tar kar dete hai…….
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ये सब बेकार की बात है ,अब ये क्या मतलब की कोई गलती करे तो हम दोहराते रहे ..
निराशाजनक
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