कहते हैं कि ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान् बुद्ध जब एक गाँव से गुज़र रहे थे तब एक किसान उनके रूप और व्यक्तित्व की सुगंध से प्रभावित होकर उनके समीप आ गया.
“मित्र, आप कौन हैं?” – किसान ने बुद्ध से पूछा – “आपके समीप मुझे ऐसी अनुभूति हो रही है कि मैं किसी देवता या ईश्वर के सम्मुख उपस्थित हूँ”.
“मैं इनमें से कोई नहीं हूँ” – बुद्ध ने उत्तर दिया.
“फिर आप अवश्य ही मायावी शक्तियों से संपन्न होंगे”.
“नहीं, मैं मायावी भी नहीं हूँ.”
“तो फिर आपमें ऐसा क्या है जो मुझ जैसे साधारण किसान को भी सहज ही दृष्टिगोचर हो रहा है”.
“मैं केवल इस जीवन की सुप्तावस्था से जाग गया हूँ. यही सत्य है जिसे मैं सबको बताता हूँ पर कोई मेरा विश्वास नहीं करता”.
(An anecdote of Lord Buddha – in Hindi)
आभार!!
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जागृत मानव हूँ बस ।
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काश इस युग में भी कोई मानव को ये बता सकता कि जागरण क्या होता है… मानव तो अब भी सो रहा है… हम, आप, हमारे चारों ओर के और लोग सब सो रहे हैं… एक-दो भी जाग जाएँ तो सृष्टि का कल्याण हो जाए… आभार ये प्रेरक प्रसंग पढवाने के लिए.
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jeeven ki supta avasdha jagna maya ke perpancho se mukt hona hai.
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