रब्बाई इयाकोव की पत्नी उससे बहस करने के लिए सदा मौके की फ़िराक़ में रहती थी. लेकिन इयाकोव उसके उकसाव पर कभी ध्यान नहीं देता था और हमेशा शांत रहता.
फिर एक रात भोजन के समय ऐसा हुआ कि मेहमानों के सामने अपनी पत्नी से गरमागरम तक़रार करके इयाकोव ने सभी को हैरत में डाल दिया.
“क्या हुआ रब्बाई?” – किसी ने पूछा – “तुमने बहस-मुबाहिसे में नहीं पड़ने की आदत छोड़ दी क्या?”
“मुझे यह लगने लगा था कि मेरी पत्नी को ऐसे मौकों पर मेरा चुप रहना ही सबसे ज्यादा अखरता है. भोजन पर उससे तक़रार करके मैंने उसकी भावनाओं को बदल दिया. इसके मूल में उसके प्रति मेरा प्रेम ही है. अब वह यह समझ गई है कि मैं उसकी बातें सुनता हूं.”
(A motivational / inspirational Jewish story about arguing and loving – in Hindi)
quite inspirational !
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क्या बात है , वाह
हां इससे प्रेरणा तो मिलती है भाई
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हाँ गौरव, प्रेरणा… बात सुनने की… तक़रार करने की नहीं 🙂
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ha ha ha
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BAHUT KHUB
SHANDAR RACHNA
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मुझे नहीं लगता रब्बी की पत्नी इतनी आसानी से समझ गयी होगी
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बात सही है, जब हम किसी की बात का जवाब देते हैं, तो इसका मतलब हम उसे सुन रहे हैं. भले ही जवाब बहस के लिए क्यों न हो. इसीलिए कहते हैं कि दुश्मन को चित करने का सबसे अच्छा तरीका है कि चुप रहकर मुस्कुराते रहो , अगला जल-भुनकर राख हो जाएगा… पर ऐसा हम दुश्मनों के साथ करते हैं, अपनों की तो बात सुनी जाती है, उनसे बहस की जाती है, तकरार की जाती है.
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भावनाओं को समझना तो बनता है ।
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I don’t think it is right. Heated discussion is always sign of weakness.
When you love someone you respect his/ her views and agree or disagree with cool and respect.
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बढ़िया युक्ति निकली अपनी बात समझाने की…
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🙂 bemisal tareeka!! 😉
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भगवान भला करें रब्बाई इयाकोव का! उस पत्नी को तो शायद जरूरत नहीं!
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