सोरेन कीर्केगार्ड के अनमोल वचन

sorenसोरेन अबाये कीर्केगार्ड (1813 – 1855) डेनमार्क के दार्शनिक और रहस्यवादी थे. बीसवीं शताब्दी के चिंतकों पर उनके दर्शन का गहन प्रभाव पड़ा है. उन्होंने मानव जीवन और इसकी प्राथमिकताओं, अनुभवों, अनुभूतियों, संकल्प, और विकल्पों के क्षेत्र में बेजोड़ काम किया है. उनके प्रसिद्द वचनों को मैंने यहाँ आपके लिए अनूदित किया है:-

01 – मुझपर लेबल लगाते ही तुम मेरा खंडन करने लगते हो.

02 – किसी भी व्यक्ति के जीवन के प्रारंभिक चरण में खतरे उठाने से बचना सबसे बड़ा खतरा है.

03 – पीछे लौटकर ज़िंदगी को समझा जा सकता है पर ज़िंदगी जीने के लिए आगे जाना ज़रूरी है.

04 – प्रार्थना ईश्वर में कोई परिवर्तन नहीं लाती. यह उस व्यक्ति को परिवर्तित करती है जो प्रार्थना करता है.

05 – लोग सोचने की आजादी का इस्तेमाल नहीं करते पर इसकी क्षतिपूर्ति के लिए वे बोलने की आजादी की दरकार करते हैं.

06 – लोग मुझे इतना कम समझते हैं कि वे मेरी इस शिकायत को भी नहीं समझ पाते कि वे मुझे इतना कम क्यों समझते हैं.

07 – क्या तुम्हें पता है कि रात के किसी प्रहर में सभी को अपने मुखौटे उतार फेंकने होते हैं? क्या तुम यह मानते हो कि जीवन हमेशा खुद का उपहास करता रहेगा? और तुम यह सोचते हो कि आधी रात से पहले तुम इससे बचने के लिए कहीं दुबक सकते हो? क्या तुम इससे आतंकित नहीं हो?

08 – मैंने असल ज़िंदगी में लोगों को दूसरों को इतना धोखा देते देखा है कि अंत में उन्हें अपनी सही शख्सियत ही नहीं पता चल पाती. हर व्यक्ति के भीतर ऐसा कुछ मौजूद है जो उसे खुद के प्रति पाकसाफ बने रहने से रोकता है… यह सब इस हद तक और उससे साबका रखनेवाली ज़िंदगानियों में इतना गुंथा-बिंधा होता है कि वह इसका ओर-छोर नहीं देख पाता. लेकिन जो शख्स खुद को इससे निकाल नहीं पाता वह प्रेम नहीं कर सकता… और जो शख्स प्रेम नहीं कर सकता वह इस दुनिया में सबसे बदनसीब है.

(Quotes of Soren Kierkegaard – in Hindi)

There are 16 comments

  1. aradhana

    बहुत अच्छी बातें हैं…खासकर ये
    ‘किसी भी व्यक्ति के जीवन के प्रारंभिक चरण में खतरे उठाने से बचना सबसे बड़ा खतरा है.’
    और…’मैंने असल ज़िंदगी में लोगों को दूसरों को इतना धोखा देते देखा है कि अंत में उन्हें अपनी सही शख्सियत ही नहीं पता चल पाती.’
    …सच में कभी-कभी आदमी दूसरों को धोखा देने में इतना मशगूल हो जाता है कि खुद को भी धोखा देने लगता है.

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  2. vanigeet

    प्रार्थना ईश्वर में कोई परिवर्तन नहीं लाती. यह उस व्यक्ति को परिवर्तित करती है जो प्रार्थना करता है….

    मैंने असल ज़िंदगी में लोगों को दूसरों को इतना धोखा देते देखा है कि अंत में उन्हें अपनी सही शख्सियत ही नहीं पता चल पाती. हर व्यक्ति के भीतर ऐसा कुछ मौजूद है जो उसे खुद के प्रति पाकसाफ बने रहने से रोकता है… यह सब इस हद तक और उससे साबका रखनेवाली ज़िंदगानियों में इतना गुंथा-बिंधा होता है कि वह इसका ओर-छोर नहीं देख पाता. लेकिन जो शख्स खुद को इससे निकाल नहीं पाता वह प्रेम नहीं कर सकता… और जो शख्स प्रेम नहीं कर सकता वह इस दुनिया में सबसे बदनसीब है….

    मन बस यही अटक गया है ..
    बहुत ही सार्थक लेखन …आभार इस खजाने को प्रस्तुत करने के लिए …!!

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  3. Gagan Jaiswal

    मैंने असल ज़िंदगी में लोगों को दूसरों को इतना धोखा देते देखा है कि अंत में उन्हें अपनी सही शख्सियत ही नहीं पता चल पाती. हर व्यक्ति के भीतर ऐसा कुछ मौजूद है जो उसे खुद के प्रति पाकसाफ बने रहने से रोकता है… यह सब इस हद तक और उससे साबका रखनेवाली ज़िंदगानियों में इतना गुंथा-बिंधा होता है कि वह इसका ओर-छोर नहीं देख पाता. लेकिन जो शख्स खुद को इससे निकाल नहीं पाता वह प्रेम नहीं कर सकता… और जो शख्स प्रेम नहीं कर सकता वह इस दुनिया में सबसे बदनसीब है

    wah kya baat kah di aapne

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