मौन

dialog with nature


किसी प्रान्त का गवर्नर यात्रा के दौरान लाओत्जु के आश्रम के पास से गुजर रहा था. संत के प्रति सम्मान प्रकट करने और ज्ञान प्राप्ति की इच्छा से वह उनके दर्शनों के लिए आ गया.

“राज्य की देखभाल करने में मेरा लगभग पूरा समय लग जाता है और मैं दीर्घ सत्संग आदि में भाग नहीं ले सकता” – उसने लाओत्जु से कहा – “क्या आप मेरे जैसे व्यस्त आदमी के लिए एक या दो वाक्यों में धर्म का सार बता सकते हैं?

“अवश्य महामहिम! मैं आपके हित के लिए इसे केवल एक ही शब्द में बता सकता हूँ”.

“अद्भुत! और वह शब्द क्या है?”

“मौन”.

“और मौन किसकी ओर ले जाता है?”

“ध्यान”.

“और ध्यान क्या है?”

“मौन”.

(An anecdote/story of Lao-Tzu on virtues of silence – in Hindi)

There are 11 comments

  1. zeal ( Divya)

    Essence of vast Dharma cannot be given in just one word. ‘Maun’ is good at certain places but not everywhere. ‘Maun’ leads to communication gap also. If a person is dying with someone’s silence then what’s the meaning behind being silent?. If people are quarreling, then ‘Maun’ is appreciated but ‘Maun ‘ is pointless when the circumstances are cool and congenial, healthy ans festive. We cannot enjoy the life being maun. We cannot perform our duty by being maun.

    “maun’ is required to contain negative attributes only.

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    1. Nishant

      धन्यवाद ज़ील, मुझे लगता है कि यहाँ मौन से तात्पर्य ऊपरी चुप साध लेने और दुनिया से कट जाने से नहीं है. लाओ-त्जु और बुद्ध जैसे व्यक्तित्वों के अनथक प्रयास जीवन में आनंद की प्राप्ति के लिए नहीं वरन जीवन (और मृत्यु) के चक्र को बेहतर समझने के लिए हैं. जीवन में आनंद ही ढूंढना हो तो उसके बहुतेरे मार्ग हैं.

      बोध कथाओं के कई अर्थ और आशय निकाले जा सकते हैं. कुछ व्यक्ति इसे साधना के धरातल पर उपजे गहन आतंरिक मौन और उसके परिणामस्वरूप प्राप्त होनेवाली सम्बोधि-समाधि की अवस्था के रूप में भी जानकार प्रफुल्लित हो सकते हैं. यह संभव है कि हर मनन करनेवाले व्यक्ति के लिए इसके अर्थ पृथक हों. वे संगत अथवा असंगत, दोनों ही हो सकते हैं.

      यही कारण है कि मैं बहुधा कथाओं को ‘जैसी हैं, वैसी ही’ प्रस्तुत कर देता हूँ, उनके विश्लेषण में नहीं उतरता.

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  2. vani geet

    ध्यान का मार्ग मौन से …
    मना जाता है मौन जितना बाहर घटता है , हम उतनी ही भीतर उतरें …
    मगर मजा तो तब है जब बाहर कोलाहल हो भीतर के मौन को छेड़े बिना ….!!

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  3. pranava saxena

    निशांत ,अभी मैं ध्यान के सम्बन्ध में ही पढ़ रहा था । और इससे एक बात समझ आई कि ध्यान तभी घटॆगा जब हम क्षुद्र से क्षुद्र काम भी पूरी टोटेलिटी से करेंगें…”
    amitraghat.blogspot.com

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