“हमारी प्रथाएं या संस्कार तभी तक मूल्यवान है जब उन्हें उनके मूल शुद्ध रूप में क्रियान्वित किया जाये. ये ऐसी पुस्तकें हैं जिनमें अथाह सन्देश छिपे हैं. उन्हें समझ सकनेवाले ही उन्हें पढ़ सकते हैं. प्रत्येक संस्कार अपने आपमें सैंकड़ों किताबों और कथाओं को संजोये रहता है.”
“यह मान लेना सबसे बड़ी गलतफहमी है कि मनुष्य हमेशा एक-सा ही रहता है. कोई भी व्यक्ति बहुत देर तक एक-सा नहीं रहता. उसमें सतत परिवर्तन होता रहता है. शायद ही वह कभी एक घंटे के लिए भी एक-सा रहता हो.”
“मनुष्य अपने सुखों को तिलांजलि दे सकता है पर अपने दुखों को छोड़ने के लिए वह कभी तैयार नहीं होगा.”
(Quotes of George Ivanovitch Gurdjieff – in Hindi)
किसी से बँधा रहना क्या दुख है ?
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प्रवीण जी, यदि कुछ सत्य है तो यही है.
पिछले पांच हज़ार वर्षों की मीमांसा का निचोड़ है यह.
और इससे इत्तेफाक न रखना मानव प्रकृति का मूल स्वभाव है.
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