एक प्रसिद्ध ज़ेन कथा में वर्णित है कि:-
एक नए बौद्ध साधक ने अपने गुरु से पूछा – “मैं हाल में ही मठ में शामिल हुआ हूँ. कृपया मुझे कोई शिक्षा दें.”
जोशु ने उससे पूछा – “क्या तुमने अपनी खिचड़ी खा ली है?”
नए साधक ने कहा – “जी”.
जोशु बोले – “तो अपने बर्तन भी धो लो”.
कहते हैं कि इतना सुनते ही साधक को बोधि प्राप्त हो गयी.
मुझे क्षमा करें पर मैं इस कथा को नहीं समझा सकता क्योंकि मैं स्वयं इसे नहीं समझ पाया हूँ. यही तो जापानी ज़ेन कथाओं की विशेषता या कमजोरी है. खैर, मैं इस कथा से ही अपनी बात आगे बढाऊँगा.
अब आप बताएं. क्या आपने अपना खाना खा लिया है? यदि हाँ, तो आप भी अपने बर्तन धो लीजिये.
खाना खाते समय मैं अक्सर यह सोचता हूँ, और-तो-और, दूसरे काम करते समय भी मैं इस बात पर विचार करता हूँ – “खाना खा लिया? तो बर्तन भी धो लो!”
इस बात में असीम सरलता और गहराई है. इसका सार यह है कि ‘जीवन के उद्देश्य और इसके रहस्यों को समझने के प्रयास में अपना सर मत खपाओ… बस जिये जाओ’. अपने बर्तन धो लो. धोने की इस प्रक्रिया में ही तुम्हें वह सब मिलेगा जो तुम पाना चाहते हो.
मुझे इसमें सत्य के दर्शन होते हैं. वैसे तो मुझे वास्तव में अपने बर्तन धोने के अवसर कम ही मिलते हैं पर ऐसा करते समय मैं इसे पूरी तल्लीनता और सजगता से करता हूँ. इस काम में कुछ भी खर्च नहीं होता पर असीम संतोष मिलता है.
नहाने से पहले मैं हाथों से अपने कपड़े धोता हूँ. उन्हें निचोड़ने के बाद सुखाने के लिए तार पर टांग देता हूँ. कपड़े बदलते वक़्त मैं मैले कपड़ों को धोये जाने के लिए नियत स्थान पर रख देता हूँ. किचन में जब कभी कुछ बनाता हूँ तो डब्बों को यथास्थान रखने के बाद प्लेटफ़ॉर्म पर साफ़-सफाई कर देता हूँ. मैं इसमें परफेक्ट होने का दावा नहीं करता पर प्रयास तो कर ही सकता हूँ न.
अपना काम हो जाने के बाद इन चीज़ों को करने का सम्बन्ध केवल स्वच्छता और व्यवस्था बनाये रखने से ही नहीं है. इन्हें करने में सचेतनता और सजगता है, कर्म किये जाने की भावना का मनन है, और हड़बड़ी में अगले काम में रत हो जाने की बजाय वर्तमान के क्षणों में बने रहने का बोध है.
तो आप भी अपने बर्तन धो लीजिये. होशपूर्वक और उल्लास के साथ.
Photo by Caroline Attwood on Unsplash
प्रेरणादायक कथा। अपने बर्तन धो लेने की कोशिश जरूर करेंगे।
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छोटी छोटी बातों में ही तो जीवन का मूल रहस्य छुपा है .. और उसे ढूंढने में हम दर दर की ठोकरें खाते हैं !!
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बहुत बढ़िया पोस्ट रही!
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छोटी-सी बोध कथा में छिपा बड़ा संदेश ! आभार !
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मैं तो यही समझा कि अपना काम पूरा करो दूसरों पर मत टालो।
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bahut badiya katha hai.
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प्रक्रिया का पूर्ण निष्पादन । किसी कार्य की पूरी निष्पत्ति ।
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निशान्त,
इस प्रेरक कथा का सभी अपने-अपने ढंग से अर्थ लगा सकते हैं, पर मेरी समझ में भी इसका सीधा-सा अर्थ यही है कि अपने जीवन को भरपूर जियो, इधर-उधर की चिंताएँ छोड़कर. अपना काम करने में जो आत्मतुष्टि का बोध होता है, वही सबसे बड़ी बात है. बहुत सीधी सी बात है पर जब मैं बहुत बोझिल सा महसूस करती हूँ, तो घर की सफाई कर डालती हूँ. ये काम मुझे बहुत सुकून देता है.
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ज्यो कि त्यों धर दीनी चदरिया।
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धन्यवाद
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“ज्यो कि त्यों धर दीनी चदरिया” पान्डेय जी की ये टिप्पणी ही इस बोध कथा का सार है । इस कथा पर ओशो का एक पूरा प्रवचन है ।
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Nishant, Thanks for leading me to your blog. It is a wonderful experience. And I look forward to keeping in touch.
Vidya
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वाह…एकदम सही कहा…
प्रेरणादायी सुन्दर पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार..
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kudh jab sikoga to aoroko bi sekhoga esliay agar khana khata hai to kud ki thali kud dona chaia issa dusronkobi sekh milte hai good
from kamptee
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nishantji
nishantji muza eng.nahi ati ap muze hindima emall kartahoto mai kush acchi bata apse sekh pawungi qrupay karke muz hindemay emall kijiye
thank you
nishantji
from,
kamptee
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i think body is the pot and all worldly affairs are the food. so when we indulge enjoying our food whether sour or sweet (i.e. happiness or sorrow) we should wash the pot (that is clean the past for the future that will automatically make present beautifull).prepare the pot for the new food.
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