एक भी आँसू न कर बेकार
जाने कब समंदर माँगने आ जाएपास प्यासे के कुँआ आता नहीं है
यह कहावत है अमरवाणी नहीं है
और जिसके पास देने को न कुछ भी
एक भी ऎसा यहाँ प्राणी नहीं हैकर स्वयं हर गीत का श्रंगार
जाने देवता को कौन सा भा जायचोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पण
किन्तु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं
आदमी से रूठ जाता है सभी कुछ
पर समस्यायें कभी रूठी नहीं हैंहर छलकते अश्रु को कर प्यार
जाने आत्मा को कौन सा नहला जाय!व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की
काम अपने पाँव ही आते सफ्रर में
वह न ईश्वर के उठाए भी उठेगा
जो स्वयं गिर जाए अपनी ही नजर मेंहर लहर का कर प्रणय स्वीकार
जाने कौन तट के पास पहुँच जाय
(A poem of Ram Avtar Tyagi)
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हर लहर का कर प्रणय स्वीकार
जाने कौन तट के पास पहुँच जाय.nice
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बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ढेर सारी शुभकामनायें.
संजय कुमार
हरियाणा
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आभार रामावतार त्यागी जी की रचना प्रस्तुत करने का
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वाह…आनंद आ गया….
बहुत बहुत आभार इस अद्वितीय रचना को पढवाने के लिए…
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really meanigful
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मैं रामावतार त्यागी जी को पहली बार पढ़ रही हूँ. एकदम नयी सी लग रही है यह कविता. आभार आपका इसे पढ़वाने के लिये.
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Badiya lagi!
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maine ramavtar tyagi ji ki kavita padi mujhe achchhi lagi ab main apka fan ho gaya ho ab jarur padunga
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WAH
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