पर्वतारोहियों का एक दल एक अजेय पर्वत पर विजय पाने के लिए निकला. उनमें एक अतिउत्साही पर्वतारोही भी था जो यह चाहता था कि पर्वत के शिखर पर विजय पताका फहराने का श्रेय उसे ही मिले. रात्रि के घने अन्धकार में वह अपने तम्बू से चुपके से निकल पड़ा और अकेले ही उसने पर्वत पर चढ़ना आरंभ किया. गहरी काली रात में, जब हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था, वह शिखर की ओर बढ़ता रहा. बहुत प्रयास करने के बाद शिखर जब कुछ ही दूर प्रतीत हो रहा था तभी अचानक उसका पैर फिसला और वह तेजी से नीचे की तरफ गिरने लगा. उसे अपनी मृत्यु सामने ही दिख रही थी लेकिन उसकी कमर से बंधी रस्सी ने झटके से उसे रोक दिया. घने अन्धकार में उसे नीचे कुछ नहीं दिख रहा था. रस्सी को जकड़कर ऊपर पहुँच पाना संभव नहीं था. बचने की कोई सूरत न पाकर वह चिल्लाया: – ‘हे ईश्वर… मेरी मदद करो!’
तभी अचानक एक गंभीर स्वर कहीं गूँज उठा – “तुम मुझ से क्या चाहते हो?”
पर्वतारोही बोला – “हे ईश्वर! मेरी रक्षा करो!”
“क्या तुम्हें सच में विश्वास है कि मैं तुम्हारी रक्षा कर सकता हूँ ?
“हाँ ईश्वर! मुझे तुम पर पूरा विश्वास है” – पर्वतारोही बोला.
“ठीक है, अगर तुम्हें मुझ पर विश्वास है तो अपनी कमर से बंधी रस्सी काट दो…..”
यह सुनकर पर्वतारोही का दिल डूबने लगा. कुछ क्षण के लिए वहाँ एक चुप्पी सी छा गई और उस पर्वतारोही ने अपनी पूरी शक्ति से रस्सी को पकड़े रहने का निश्चय कर लिया.
अगले दिन बचाव दल को एक रस्सी के सहारे लटका हुआ पर्वतारोही का ठंड से जमा हुआ शव मिला. उसके हाथ रस्सी को मजबूती से थामे थे और वह धरती से केवल दस फुट की ऊँचाई पर था. यदि उसने रस्सी को छोड़ दिया होता तो वह पर्वतीय ढलान से लुढ़कता हुआ मामूली नुकसान के साथ जीवित बच गया होता.
ईश्वर में सम्पूर्ण आस्था और विश्वास रखना सहज नहीं है. ऐसी दशा में क्या आप अपनी रस्सी छोड़ देते?
(A story of a mountaineer – doubt – submission – in Hindi)
ये होता है अपने को परमज्ञानी मानने और दूसरों को हमेशा अविश्वास से देखने का परिणाम…सुंदर कहानी…बधाई
जय हिंद…
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ये होता है अपने को परमज्ञानी मानने और दूसरों को हमेशा अविश्वास से देखने का परिणाम…सुंदर कहानी…बधाई
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ऐसी दशा में क्या आप अपनी रस्सी छोड़ देते?
यक्ष प्रश्न है, समर्पण भी पुर्णता चाहता है, बहुत बढिया चित्रण आभार
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ऐसी दशा में क्या आप अपनी रस्सी छोड़ देते?
यक्ष प्रश्न है, समर्पण भी पुर्णता चाहता है, बहुत बढिया चित्रण आभार
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पता नहीं, ईश्वर विश्वास की परीक्षा क्यों लेते हैं। सीधे क्यों नहीं बता देते कि ज्ञानदत्त, धरती चार फुट नीचे है। रस्सी काट दो।
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पता नहीं, ईश्वर विश्वास की परीक्षा क्यों लेते हैं। सीधे क्यों नहीं बता देते कि ज्ञानदत्त, धरती चार फुट नीचे है। रस्सी काट दो।
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जबरदस्त प्रेरक प्रसंग ….निशांत जी आभार..
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ललित शर्मा ने अपनी टिपण्णी के पहले वाक्य में एक प्रश्न पूछा है, “ऐसी दशा में क्या आप अपनी रस्सी छोड़ देते?”
हमारा भी आपसे यही प्रश्न है.
वैसे अच्छा होगा कि कोई ऐसा किस्सा हो जिसका आपको स्वयं अनुभव रहा हो.
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bahut kathin prashn hai……iska uttar to samay aane par hi pata chal sakta hai
lalit ji ne sahi kaha hai ki samarpan bhi poornata chahata hai.
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bahut kathin prashn hai……iska uttar to samay aane par hi pata chal sakta hai
lalit ji ne sahi kaha hai ki samarpan bhi poornata chahata hai.
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इस कहानी से समय को तो यह समझ आया कि जब मनुष्य की जिजीविषा पर बन आती है तो वह इन सारे काल्पनिक प्रभामंड़लों की इतनी वास्तविक सी लगती परिस्थितियों की कपोल कल्पनाओं में भी विश्वास करना बेहतर नहीं समझता और आस्था के बजाए वास्तविकता का दामन थामे रहना ज्यादा मुफ़ीद समझता है।
ईश्वर के नकार की इससे बेहतर कल्पना नहीं की जा सकती। जिसके लिए वह बेचारा मनुष्य शहीद हो गया। उसे सलाम।
शुक्रिया।
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बहुत ही प्रेरक कथा ।
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बहुत ही प्रेरक कथा ।
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प्रसंग ने रोमांचित कर दिया….
इतने छोटे से प्रसंग में इतनी बड़ी ,इतनी गहरी बात कह दी आपने की क्या कहूँ….वाह !!!
सचमुच व्यक्ति चाहे लाख दंभ भरे अपनी आस्तिकता का परन्तु विरले ही कोई होगा जो इस जैसी परिस्थिति में वह न करेगा जो उस पर्वतारोही ने किया…
इतना आसान नहीं शंशय मुक्त हो ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण….और सचमुच जो इस प्रकार समर्पण का भाव रखता है ईश्वर उसीकी रक्षा को तो आगे बढ़ते हैं…
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bhay ek satya hai. isse ubarne ka upay ya to gyan hai ya astha. agar parvatarohi aisi paristhiti mein shanti se soch pata to zaroor rassi kat deta. ek taraf shartiya maut thi jo vo samajh bhi chuka tha aur doosri ore asha ki choti kiran, shayad bach bhi jaye! uske bhay ne usko rassi se jakde rakha.
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bhay ek satya hai. isse ubarne ka upay ya to gyan hai ya astha. agar parvatarohi aisi paristhiti mein shanti se soch pata to zaroor rassi kat deta. ek taraf shartiya maut thi jo vo samajh bhi chuka tha aur doosri ore asha ki choti kiran, shayad bach bhi jaye! uske bhay ne usko rassi se jakde rakha.
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kahani to bhut bdiya hai par iska uttar dena muskil hai………
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Bahut badiya.maza aa gaya.
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kya asie aur kahani hai to plz. mujhse mail kar de. bahut hi gyan purn kahani hai.
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kya asie aur kahani hai to plz. mujhse mail kar de. bahut hi gyan purn kahani hai.
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naa bhai, ishwar pe itna bhi vihwas nai he ki apni rassi kaat de…
gyan dutt ji ka kehna bilkul theek he.
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Bahut Badiya
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Bahut Badiya
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best story of my life I have ever read. thanks..
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