डॉ. प्रवीण चोपड़ा के ब्लॉग पर इस पोस्ट में दिखाए गए स्लाइड-शो ने सभी पाठकों को भावुक कर दिया. मेरे बच्चे अभी बहुत छोटे हैं लेकिन उनके साथ बिताए हर पल मेरी आंखों के सामने आ गए. तीन महीने पहले बुखार से तप रहे तीन साल के बेटे की दवाई लाने के लिए रात के एक बजे अपने घर से पंद्रह किलोमीटर दूर जाना, अंजानी सडकों में कैमिस्टों की खुली दुकानें टटोलते खाली हाथ वापस आना और रातभर गीली पट्टी करते हुए सुबह डॉक्टर के क्लीनिक खुलने का इंतज़ार करना.
ऐसे में मुझे बरबस मेरे पिता याद आते रहे… और मम्मी का मुझे अक्सर यह बतलाना कि कैसे बचपन में मेरी सलामती के लिए दोनों रात-रात भर जागते रहे थे.
और फिर मुझे बार-बार यह भी याद आता रहा कि न जाने कितने ही मौकों पर मैंने जानते हुए उनका दिल दुखाया… अनजाने की तो कोई गिनती भी न होगी.
आप शायद समझ रहे होंगे मेरे भीतर क्या चल रहा है. एक दिन मैं भी बूढ़ा हो जाऊंगा और उस समय के लिए मैं अपने बच्चों से आज यही कहना चाहूंगा:-
“मेरे प्यारे बच्चों,
जिस दिन तुम्हें यह लगे कि मैं बूढ़ा हो गया हूं, तुम खुद में थोड़ा धीरज लाना और मुझे समझने की कोशिश करना…
जब खाना खाते समय मुझसे कुछ गिर जाए… जब मुझसे कपड़े सहेजते न बनें… तो थोड़ा सब्र करना, मेरे बच्चों…और उन दिनों को याद करना जब मैंने तुम्हें यह सब सिखाने में न जाने कितना समय लगाया था.
मैं कभी एक ही बात को कई बार दोहराने लगूं तो मुझे टोकना मत. मेरी बातें सुनना. जब तुम बहुत छोटे थे तब हर रात मुझे एक ही कहानी बार-बार सुनाने के लिए कहते थे, और मैं ऐसा ही करता था जब तक तुम्हें नींद नहीं आ जाती थी.
अगर मैं कभी अपने को ठीक से साफ न कर पाऊं तो मुझे डांटना नहीं… यह न कहना कि यह कितने शर्म की बात है…तुम्हें याद है जब तुम छोटे थे तब तुम्हें अच्छे से नहलाने के लिए मुझे नित नए जतन करने पड़ते थे?
हर पल कितना कुछ बदलता जा रहा है. यदि मैं नया रिमोट, मोबाइल, या कम्प्यूटर चलाना न सीख पाऊं तो मुझपर हंसना मत… थोड़ा वक़्त दे देना… शायद मुझे यह सब चलाना आ जाए.
मैं तुम्हें ज़िंदगी भर कितना कुछ सिखाता रहा…अच्छे से खाओ, ठीक से कपड़े पहनो, बेहतर इंसान बनो, हर मुश्किल का डटकर सामना करो… याद है न?
बढ़ती उम्र के कारण यदि मेरी याददाश्त कमज़ोर हो जाए… या फिर बातचीत के दौरान मेरा ध्यान भटक जाए तो मुझे उस बात को याद करने को मौका ज़रूर देना. मैं कभी कुछ भूल बैठूं तो झुंझलाना नहीं… गुस्सा मत होना… क्योंकि उस समय तुम्हें अपने पास पाना और तुमसे बातें कर सकना मेरी सबसे बड़ी खुशी होगी… सबसे बड़ी पूंजी होगी.
अगर मैं कभी खाना खाने से इंकार कर दूं तो मुझे जबरन मत खिलाना. बुढ़ापे में सबका हिसाब-खिताब बिगड़ जाता है. मुझे जब भूख लगेगी तो मैं खुद ही खा लूंगा.
एक दिन ऐसा आएगा जब मैं चार कदम चलने से भी लाचार हो जाऊंगा…उस दिन तुम मुझे मजबूती से थामके वैसे ही सहारा दोगे न जैसे मैं तुम्हें चलना सिखाता था?
फिर एक दिन ऐसा भी आएगा जब मैं तुमसे कहूंगा – “मैं अब और जीना नहीं चाहता… मेरा अंत निकट है”. यह सुनकर तुम नाराज़ न होना… क्योंकि एक दिन तुम भी यह जान जाओगे वृद्धजन ऐसा क्यों कहते हैं.
यह समझने की कोशिश करना कि एक उम्र बीत जाने के बाद लोग जीते नहीं हैं बल्कि अपना समय काटते हैं.
एक दिन तुम यह जान जाओगे कि अपनी तमाम नाकामियों और गलतियों के बाद भी मैंने हमेशा तुम्हारा भले के लिए ही ईश्वर से प्रार्थना की.
अपने प्रेम और धीरज का सहारा देकर मुझे ज़िंदगी के आखरी पड़ाव तक थामे रखना. तुम्हारी प्रेमपूर्ण मुस्कान ही मेरा संबल होगी.
कभी न भूलना मेरे प्यारे बच्चों… कि मैंने तुमसे ही सबसे ज्यादा प्रेम किया.
तुम्हारा पिता”
(डॉ. चोपड़ा के ब्लॉग पर लिखी पोस्ट में दिखाए गए स्लाइड-शो का अनुवाद)
Photo by Aditya Romansa on Unsplash
फिर भावुक कर दिया..अभी डॉक्टर की पोस्ट से उबरा था किसी तरह!!
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हां निशांत जी ..बिल्कुल ठीक महसूस किया आपने और बहुत ही सार्थक संदेश छोडा है बच्चों के लिये…और ये सब हमारे दिये संस्कारों पर ही बहुत कुछ निर्भर करता है। आज मेरा बेटा मुझे , जो वो अपने दादाजी के लिये करता सोचता देखता है….अभी से कहता है कि मैं भी ऐसा ही करूंगा । यही जीवन की सबसे बडी सफ़लता है। आपके पत्र ने सभी बिंदुओं को भलीभांति रखा।
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अंगरेजी में कई बार पढ़ा, पर मैं भावुक न हो सका. पर इस हिंदी अनुवाद को पढ़ के, अनायास ही मन भारी हो गया है. एक बात मेरे को समझ में नहीं आती है, कि ये बेहद खूबसूरत रचनाएं अंग्रेज लोग ही क्यों करते हैं, जबकि वहां फॅमिली का कांसेप्ट उतना नहीं है, जितना कि भारत में है…
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प्रवीण चोपडा जी के स्लाइड शो को देखने के बाद फिर से ऐसी पोस्ट उम्मीद दिलाती है कि आनेवाले दिनों में वृद्धों की स्थिति में शायद कुछ सुधार हो !!
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आह…. भावुक कर दिया आपने….
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“अपने प्रेम और धीरज का सहारा देकर मुझे ज़िंदगी के आखरी पड़ाव तक थामे रखना. तुम्हारी प्रेमपूर्ण मुस्कान ही मेरा संबल होगी.” सारांश !
उनकी आकांक्षा हम बच्चों का कर्तव्य और धर्म बन जाय ।
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भावुक कर देने वाली पोस्ट है यह ..
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डाक्टर साहब के पोस्ट पर यह टिप्पणी की है मैने – मेरे पिताजी कुछ भूलने लगे हैं। अटपटे सवाल कर देते हैं और मैं मौन रहकर उनका उत्तर नहीं देता। मुझे अब लग रहा है कि वे यह न महसूस कर रहे हों कि मैं उन्हें अवाइड कर रहा हूं। I got to be careful.
और ध्यान रखूंगा – यही कह सकता हूं।
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आपने भावुक कर दिया…
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very inspiring post….what i feel condition of indian parents is not as bad as in other countries………but there is a negative effect of globlization in form of gap in parents children relationship
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भावुक कर देने वाली पोस्ट है यह ………..
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माता-पिता के लिए उनके बच्चे हमेशा बच्चे ही रहते हैं। उतने ही छोटे जब वे आपको उँगली पकड़कर चलना सिखाते हैं। चाहे बच्चे उम्र में बड़े हो जाएँ या रुपए-पैसे से। उनके माता-पिता हमेशा उन्हें बहुत चाहते हैं और माफ भी करते रहते हैं।
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dil ko chhu gaya……….
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Nishantji
Really very touching.Very nice message to the children with full of teachings.
Nisahntji pata hai log agar sirf ye soch le ki unhe apne mata pita se waisa hi byabhar karna hai jaisa o apne bachho ke sath karte hai to ye mata pita ke prati samman to hoga balki mai kahta hu unhe wohi khusi melegi jo apne bache ke chehro par muskan se milti hai.
To ye mata pita ke prati apki jimmebari kam balki apko apne prati jada jimmebar honi chahiye akhir khushi,muskan,santusti aur jit ke liye agar apki thori si sahansilta lagti hai to phir ye sauda kafi sasta aur budhimani vara hai, hai k nahi…..???
Rgds…..SUDIP
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hum apane baccho se pyar karate hai.unse bhi yehi ummid karate hai ki wo bare hokar hame pyar kare hamari dekhbhal kare.jabaki hume apane mata -pita ki dekhbhal & care karate huye baccho ko ye sanskar pradan kar sakate hai.
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Dil ko chhu gai!
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aapka yeh pater padh kar mann bhar aya . aapne aajkal ke bacho ke liye yeh sahi kaha . aapka pater padh kar ho sakta hai ki bhacho ki soch badal jaye aour bacho ko bado ki kadar samjh aa jaye.
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nlshantjl aapne aajkal ke bachchonke liye zindagi ki kadvi sachchai bataya hai .mein wish karti hoo ki bachche ise zaroor podhe aur kuch seekhein.thank you so much nishantji
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Aapki post dil ko chu gai .Kash mere bhi pita hote unhone jis tarh mera jatan kiya hai mai bhi usitarh unhe samhalti.Ummid hai ki apke dvara diya gaya yah sandesh ham sbko yad rahe taki hum apne mata pata ko achitarh samhalne me kamyab ho sake.
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आँखे नम हो गई. और शब्द भी ख़त्म हो गये हे जितनी तारीफ करू कम हे.
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This is a msg for us. We should follow it.
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aapne to her pita ke mann ko chhu liya.its great.
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good pita jasa koi nahi hota aur maa ka toh pucho hi mat ma si the good nahi v.v.good
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I will always remember this…… the feeiling which i m feeling rite now after reading this thoughts……… can not be express in words….. .Its very difficult…….
Bt i would like to give my special Thanks to that person who gave me such a opportunity…. its really heart touching
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Aisi dil ko chunewala patra mujhe jindagi bhar nahin bhul paoongi
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respected sir, u hv opened my eyes,i ll try to b more understanding to my in laws. thanx. chhaya
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angrajo main indian sey jeyada bhawana hoti he angraj angraj hota he rahi baat priwar ki wahan ka kanoon sakath he isley wo sab he
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india main to shadi hote hi ma baap ko bhuljate hen. kiu ki ab india angrajo ki gulam he wo samjhte he ki hum bhi khuley dil key hogey magar angrej nai
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jo bhawnao ka khiyal rakta use igo kha jata he. igo hi jindgi he mano ya na mano
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