यक्ष प्रश्नः महाभारत का महान प्रसंग

पांडवों के वनवास के बारह वर्ष समाप्त होनेवाले थे. इसके बाद एक वर्ष के अज्ञातवास की चिंता युधिष्ठिर को सता रही थी. इसी चिंता में मग्न एक दिन युधिष्ठिर भाइयों और कृष्ण के साथ विचार विमर्श कर रहे थे कि उनके सामने एक रोता हुआ ब्राम्हण आ खड़ा हुआ. रोने का कारण पूछने पर उसने बताया – “मेरी झोपडी के बाहर अरणी की लकड़ी टंगी हुई थी. एक हिरण आया और वह इस लकड़ी से अपना शरीर खुजलाने लगा और चल पड़ा. अरणी की लकड़ी उसके सींग में ही अटक गई. इससे हिरण घबरा गया और बड़ी तेजी से भाग खड़ा हुआ. अब मैं अग्नि होत्र के लिए अग्नि कैसे उत्पन्न करूंगा?” (अरणी ऐसी लकड़ी है जिसे दूसरी अरणी से रगड़कर आग पैदा की जाती है).

उस ब्राम्हण पर तरस खाकर पाँचों भाई हिरण की खोज में निकल पड़े. हिरण उनके आगे से तेजी से दौड़ता हुआ बहुत दूर निकल गया और आँखों से ओझल हो गया. पाँचों पांडव थके हुए प्यास से व्याकुल होकर एक बरगद की छाँव में बैठ गए. वे सभी इस बात से लज्जित थे कि शक्तिशाली और शूरवीर होते हुए भी ब्राम्हण का छोटा सा काम भी नहीं कर सके. प्यास के मारे उन सभी का कंठ सूख रहा था. नकुल सभी के लिए पानी की खोज में निकल पड़े. कुछ दूर जाने पर उन्हें एक सरोवर मिला जिसमें स्वच्छ पानी भरा हुआ था. नकुल पानी पीने के लिए जैसे ही सरोवर में उतरे, एक आवाज़ आई – “माद्री के पुत्र, दुस्साहस नहीं करो. यह जलाशय मेरे आधीन है. पहले मेरे प्रश्नों के उत्तर दो, फिर पानी पियो”.

नकुल चौंक उठे, पर उन्हें इतनी तेज प्यास लग रही थी कि उन्होंने चेतावनी अनसुनी कर दी और पानी पी लिया. पानी पीते ही वे प्राणहीन होकर गिर पड़े.

बड़ी देर तक नकुल के नहीं लौटने पर युधिष्ठिर चिंतित हुए और उन्होंने सहदेव को भेजा. सहदेव के साथ भी वही घटना घटी जो नकुल के साथ घटी थी.

सहदेव के न लौटने पर अर्जुन उस सरोवर के पास गए. दोनों भाइयों को मृत पड़े देखकर उनकी मृत्यु का कारण सोचते हुए अर्जुन को भी उसी प्रकार की वाणी सुनाई दी जैसी नकुल और सहदेव ने सुनी थी. अर्जुन कुपित होकर शब्दभेदी बाण चलने लगे पर उसका कोई फल नहीं निकला. अर्जुन ने भी क्रोध में आकर पानी पी लिया और वे भी किनारे पर आते-आते मूर्छित होकर गिर गए.

अर्जुन की बाट जोहते-जोहते युधिष्ठिर व्याकुल हो उठे. उन्होंने भाइयों की खोज के लिए भीम को भेजा. भीमसेन तेजी से जलाशय की ओर बढ़े. वहां उन्होंने अपने तीन भाइयों को मृत पाया. उन्होंने सोचा कि यह अवश्य किसी राक्षस के करतूत है पर कुछ करने से पहले उन्होंने पानी पीना चाहा. यह सोचकर भीम ज्यों ही सरोवर में उतरे उन्हें भी वही आवाज़ सुनाई दी. – “मुझे रोकनेवाला तू कौन है!?” – यह कहकर भीम ने पानी पी लिया. पानी पीते ही वे भी वहीं ढेर हो गए.

चारों भाइयों के नहीं लौटने पर युधिष्ठिर चिंतित हो उठे और उन्हें खोजते हुए जलाशय की ओर जाने लगे. निर्जन वन से गुज़रते हुए युधिष्ठिर उसी विषैले सरोवर के पास पहुँच गए जिसका जल पीकर उनके चारों भाई प्राण खो बैठे थे. उनकी मृत्यु का कारण खोजते हुए युधिष्ठिर भे पानी पीने के लिए सरोवर में उतरे और उन्हें भी वही आवाज़ सुनाई दी – “सावधान! तुम्हारे भाइयों ने मेरी बात न मानकर तालाब का जल पी लिया. यह तालाब मेरे आधीन है. मेरे प्रश्नों का सही उत्तर देने पर ही तुम इस तालाब का जल पी सकते हो!”

युधिष्ठिर जान गए कि यह कोई यक्ष बोल रहा था. उन्होंने कहा – “आप प्रश्न करें, मैं उत्तर देने का प्रयास करूंगा!”

यक्ष ने प्रश्न किया – मनुष्य का साथ कौन देता है?
युधिष्ठिर ने कहा – धैर्य ही मनुष्य का साथ देता है.

यक्ष – यशलाभ का एकमात्र उपाय क्या है?
युधिष्ठिर – दान.

यक्ष – हवा से तेज कौन चलता है?
युधिष्ठिर – मन.

यक्ष – विदेश जानेवाले का साथी कौन होता है?
युधिष्ठिर – विद्या.

यक्ष – किसे त्याग कर मनुष्य प्रिय हो जाता है?
युधिष्ठिर – अहम् भाव से उत्पन्न गर्व के छूट जाने पर.

यक्ष – किस चीज़ के खो जाने पर दुःख नहीं होता?
युधिष्ठिर – क्रोध.

यक्ष – किस चीज़ को गंवाकर मनुष्य धनी बनता है?
युधिष्ठिर – लोभ.

यक्ष – ब्राम्हण होना किस बात पर निर्भर है? जन्म पर, विद्या पर, या शीतल स्वभाव पर?
युधिष्ठिर – शीतल स्वभाव पर.

यक्ष – कौन सा एकमात्र उपाय है जिससे जीवन सुखी हो जाता है?
युधिष्ठिर – अच्छा स्वभाव ही सुखी होने का उपाय है.

यक्ष – सर्वोत्तम लाभ क्या है?
युधिष्ठिर – आरोग्य.

यक्ष – धर्म से बढ़कर संसार में और क्या है?
युधिष्ठिर – दया.

यक्ष – कैसे व्यक्ति के साथ की गयी मित्रता पुरानी नहीं पड़ती?
युधिष्ठिर – सज्जनों के साथ की गयी मित्रता कभी पुरानी नहीं पड़ती.

यक्ष – इस जगत में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?
युधिष्ठिर – रोज़ हजारों-लाखों लोग मरते हैं फिर भी सभी को अनंतकाल तक जीते रहने की इच्छा होती है. इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है?

इसी प्रकार यक्ष ने कई प्रश्न किये और युधिष्ठिर ने उन सभी के ठीक-ठीक उत्तर दिए. अंत में यक्ष ने कहा – “राजन, मैं तुम्हारे मृत भाइयों में से केवल किसी एक को ही जीवित कर सकता हूँ. तुम जिसे भी चाहोगे वह जीवित हो जायेगा”.

युधिष्ठिर ने यह सुनकर एक पल को सोचा, फिर कहा – “नकुल जीवित हो जाये”.

युधिष्ठिर के यह कहते ही यक्ष उनके सामने प्रकट हो गया और बोला – “युधिष्ठिर! दस हज़ार हाथियों के बल वाले भीम को छोड़कर तुमने नकुल को जिलाना क्यों ठीक समझा? भीम नहीं तो तुम अर्जुन को ही जिला लेते जिसके युद्ध कौशल से सदा ही तुम्हारी रक्षा होती आई है!”

युधिष्ठिर ने कहा – “हे देव, मनुष्य की रक्षा न तो भीम से होती है न ही अर्जुन से. धर्म ही मनुष्य की रक्षा करता है और धर्म से विमुख होनेपर मनुष्य का नाश हो जाता है. मेरे पिता की दो पत्नियों में से कुंती माता का पुत्र मैं ही बचा हूँ. मैं चाहता हूँ कि माद्री माता का भी एक पुत्र जीवित रहे.”

“पक्षपात से रहित मेरे प्रिय पुत्र, तुम्हारे चारों भाई जीवित हो उठें!” – यक्ष ने युधिष्ठिर को यह वर दिया. यह यक्ष और कोई नहीं बल्कि स्वयं धर्मदेव थे. उन्होंने ही हिरण का और यक्ष का रूप धारण किया हुआ था. उनकी इच्छा थी कि वे अपने धर्मपरायण पुत्र युधिष्ठिर को देखकर अपनी आँखें तृप्त करें.

(80 के दशक में प्रचलित NCERT की कक्षा 7 की पूरक पाठ्यपुस्तक ‘संक्षिप्त महाभारत’ से लिया गया अंश)

Photo by Sora Sagano on Unsplash

There are 33 comments

  1. Ranjana

    पवित्र प्रेरक प्रसंग को प्रेषित करने हेतु आपका बहुत बहुत आभार….ये शाशावता सत्य हैं और किसी भी युग काल के लिए प्रासंगिक….जीवन के सुख का सार इनमे छिपा है,जो इन्हें जितना अधिक जीवन में उतार ले वह उतना सुखी होता है..इनका पठन मनन निरंतर करना चाहिए..

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    1. Nishant

      अंचल जी, इस कहानी का अनुवाद नहीं किया गया है. इसे मूल से जैसे-का-तैसा लिया गया है. मैंने इस ब्लॉग की किसी भी कथा को छोटा नहीं किया है. आपका कहना सही है कि मैंने कदाचित अनुवाद में कमियां की हैं, इसकी मुझे जानकारी है. मैं अपरिपक्व हूँ, इसमें कोई संदेह नहीं. संभव है भविष्य में मैं कुशल हो जाऊं.

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  2. vijay sappatti

    Nishant ji , bahut dino baad aapke blog par aaya hun , iske liye ksham chahunga .. ab regularly aaya karunga .. aapne is par followers nahi lagaya hai , main aapki posts ko follow karna chahta hoon .

    aapke pichli baar ki PDf file ko maine apne saare dosto me baant diya hai , aur apne ghar ke liye uska print nikal kar rakha hai , roz baccho ko usme se kahanaiya sunata hoon

    mujhe bahut dino is mahabharat ke is sandharb ki jarurat thi .. aaj mil gaya ,

    main to yaar , aapka fan hoon , nischint hi aapka ye blog sabse acche blogs me se ek hai ..

    dhanywad.

    vijay
    hyderabad

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  3. Shirish Pawar

    main vaise hoon toh ek maharastrain lekin hindi mein kafi dilchaspi hai aur aap ka blog yakinan ek sakaratmak pehal hai har us insaan k liye jise aise antuhe gyan ki jarurat hai jo use apne karya aur jeevan k prati prerit kar sake ek sakaratmak soch k sath ..yeah zengyan jitna sahaj hai samaj ne mein utna hi bejod aur jivandayi hai apnane mein…..aap ko is nek kaam ke liye dher sari badhiya aur shubkamnaye…..Dhanyawad 🙂

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  4. Brahm Rana

    “यक्ष युधिष्ठिर संवाद महाभारत के वन पर्व का एक बहुत ही रोचक प्रसंग है।
    यक्ष प्रश्न इतना जटिल था की आज भी किसी जटिल प्रश्न को लोग उसे यक्ष प्रश्न संज्ञा दे देते हैं “

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