अंग्रेजों ने बहुत सारी चीज़ों से भारतीयों का परिचय कराया. चाय भी उनमें से एक है. मेरे दादा बताते थे कि जब शुरुआत में चाय भारत में आई तो उसका बड़ा जोरशोर से प्रचार किया गया लेकिन कोई उसे चखना भी नहीं चाहता था. ठेलों में केतली सजाकर ढोल बजाकर उसका विज्ञापन किया जाता था लेकिन लंबे अरसे तक लोगों ने चाय पीने में रुचि नहीं दिखाई.
एक-न-एक दिन तो मार्केटिंग का असर होना ही था. धीरे-धीरे लोग चाय की चुस्कियों में लज्ज़त पाने लगे. अब तो चाय न पीने वाले को बड़ा निर्दोष और संयमित जीवन जीने वाला मान लिया जाता है, जैसे चाय पीना वाकई कोई ऐब हो.
खैर. इस पोस्ट का मकसद आपको चाय पीने के गुण-दोष बताना नहीं है. चाय का कारोबार करनेवालों में लिप्टन कम्पनी का बड़ा नाम है. इस कंपनी की स्थापना सर थॉमस जोंस्टन लिप्टन ने की थी. वे कोई संपन्न उद्योगपति नहीं थे. उन्हें यकीन था कि लोग चाय पीने में रुचि दिखायेंगे और उन्होंने चाय के धंधे में जोखिम होने पर भी हाथ आजमाने का निश्चय किया.
शुरुआत में लिप्टन को धंधे में हानि उठानी पडी लेकिन वे हताश नहीं हुए. एक बार वे बड़े जहाज में समुद्री यात्रा पर निकले थे. रास्ते में जहाज दुर्घटना का शिकार हो गया. जहाज के कैप्टन ने जहाज का भार कम करने के लिए यात्रियों से कहा कि वे अपना भारी सामान समुद्र में फेंक दें. लिप्टन के पास चाय के बड़े भारी बक्से थे जिन्हें समुद्र में फेंकना जरूरी था. जब दूसरे यात्री अपने सामान को पानी में फेंकने की तैयारी कर रहे थे तब लिप्टन अपनी चाय के बक्सों पर पेंट से लिखने लगे “लिप्टन की चाय पियें”. यह सन्देश लिखे सारे बक्से समुद्र में फेंक दिए गए.
जहाज सकुशल विपदा से निकल गया. लिप्टन को विश्वास था कि उनकी चाय के बक्से दूर देशों के समुद्र तटों पर जा लगेंगे और उनकी चाय का विज्ञापन हो जायेगा.
लंदन पहुँचने पर लिप्टन ने दुर्घटना का सारा आँखों देखा हाल विस्तार से लिखा और उसे समाचार पत्र में छपवा दिया. रिपोर्ट में यात्रियों की व्याकुलता और भय का सजीव चित्रण किया गया था. लाखों लोगों ने उसे पढ़ा. रिपोर्ट के लेखक के नाम की जगह पर लिखा था ‘लिप्टन की चाय’.
अपनी धुन के पक्के लिप्टन ने एक दुर्घटना का लाभ भी किस भली प्रकार से उठा लिया. लिप्टन की चाय दुनिया भर में प्रसिद्द हो गई और लिप्टन का व्यापार चमक उठा.
(A motivational / inspirational anecdote of the maker of Lipton Tea – in Hindi)
that is the reason till today every one know about lipton tea.thanks for such interesting stories.sufi kathan bhi bahut acchi hai
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हरयाणा के एक गाँव में एक बुदिया दुकान दार के पास गयी
और बोली
लिपटन की चाह सै के [लिप्टन की चाय है क्या]
लाला जी बोला —तन्ने भी सै , और मानने भी सै[ तुझे भी है और मुझे भी है ]
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for buisness devotion is needed
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