नास्तिक प्रोफेसर और विद्यार्थी के मध्य संवाद : An Atheist Professor and His Student

Science and Religion Are They Compatible


एक नास्तिक प्रोफेसर और विद्यार्थी के मध्य ईश्वर के अस्तित्व और विज्ञान के बारे में एक दिन कक्षा में वार्तालाप हुआ.

प्रोफेसर ने अपने नए विद्यार्थी को खड़ा होने के लिए कहा और उससे पूछा :-

प्रोफेसर – क्या तुम ईश्वर में विश्वास करते हो?

विद्यार्थी – हां सर.

प्रोफेसर – क्या ईश्वर शुभ है?

विद्यार्थी – जी सर.

प्रोफेसर – क्या ईश्वर सर्वशक्तिमान है?

विद्यार्थी – जी है.

प्रोफेसर – पिछले साल मेरे भाई की मृत्यु कैंसर से हो गई जबकि वह अंत तक ईश्वर से अच्छा होने की प्रार्थना करता रहा. हममें से बहुत से लोग ईश्वर से ऐसी ही प्रार्थना करते रहते हैं लेकिन ईश्वर कुछ नहीं करता. ऐसा ईश्वर अच्छा कैसे हो सकता है? बताओ.

(विद्यार्थी कुछ नहीं कहता)

प्रोफेसर – लगता है तुम्हारे पास इस बात का कोई जवाब नहीं है. चलो हम आगे बढ़ते हैं. मुझे बताओ, क्या ईश्वर अच्छा है?

विद्यार्थी – जी, है.

प्रोफेसर – और क्या शैतान भी अच्छा है?

विद्यार्थी – नहीं.

प्रोफेसर – लेकिन कहा जाता है कि सब कुछ ईश्वर से ही उत्पन्न हुआ है. तो फिर शैतान कहां से आया?

विद्यार्थी – जी… ईश्वर से.

प्रोफेसर – ठीक है. तो अब तुम मुझे बताओ, क्या संसार में बुराइयां हैं?

विद्यार्थी – जी, हैं.

प्रोफेसर – हां. बुराइयां हर तरफ हैं. और तुम्हारे अनुसार ईश्वर ने सब कुछ बनाया है न?

विद्यार्थी – जी.

प्रोफेसर – तो बुराइयां किसने बनाई हैं?

(विद्यार्थी कुछ नहीं बोलता)

प्रोफेसर – संसार में बीमारी, भुखमरी, युद्ध, अराजकता है. ये सभी और दूसरी बहुत सी बुराइयां संसार में हैं न?

विद्यार्थी – जी, हैं.

प्रोफेसर – इन बुराइयों को किसने बनाया है?

(विद्यार्थी कुछ नहीं कहता)

प्रोफेसर – विज्ञान कहता है कि हम अपनी पांच ज्ञानेंद्रियों से सभी प्रकार का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं. मुझे बताओ, क्या तुमने ईश्वर को कभी देखा है?

विद्यार्थी – नहीं.

प्रोफेसर – क्या तुमने ईश्वर की आवाज़ सुनी है?

विद्यार्थी – नहीं सर.

प्रोफेसर – क्या तुमने कभी ईश्वर का स्पर्श किया, उसका स्वाद या सुगंध लिया? क्या तुम्हें ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव हुआ?

विद्यार्थी – नहीं सर. ऐसा कभी नहीं हुआ.

प्रोफेसर – फिर भी तुम उसमें आस्था रखते हो!

विद्यार्थी – … जी.

प्रोफेसर – लेकिन विज्ञान के अनुसार तुम्हारे ईश्वर के अस्तित्व का कोई वैधानिक, तर्कसंगत, अनुभवाधारित कोई प्रमाण नहीं है. इस बारे में तुम क्या कहोगे?

विद्यार्थी – कुछ नहीं. मुझे केवल अपनी आस्था पर विश्वास है.

प्रोफेसर – बहुत खूब! लेकिन विज्ञान तुम्हारी इस कोरी आस्था को दो कौड़ी की भी नहीं मानता.

विद्यार्थी – मैं जानता हूं, सर. क्या मैं आपसे कुछ प्रश्न कर सकता हूं?

प्रोफेसर – हां, पूछो क्या पूछना चाहते हो.

विद्यार्थी – क्या ठंडा या ठंड जैसा कुछ वास्तव में होता है?

प्रोफेसर – हां, इसमें क्या संदेह है!

विद्यार्थी – नहीं सर. आप गलत कह रहे हैं.

(कक्षा में अब गहन शांति छा जाती है)

प्रोफेसर – क्या? तुम कहना क्या चाहते हो?

विद्यार्थी – सर, ऊष्मा या ताप कम या अधिक हो सकता है – जैसे निम्नताप, उच्चताप, चरमताप, परमताप, या फिर शून्य ताप आदि. लेकिन ठंड जैसा कुछ नहीं होता. हम शून्य से 273 डिग्री नीचे के तापमान को छू सकते हैं जब कोई ऊष्मा नहीं होती पर उससे नीचे नहीं जा सकते. ठंड जैसा कुछ नहीं होता. ठंड केवल एक शब्द है जिससे हम ताप की अनुपस्थति को वर्णित करते हैं. हम ठंड को नहीं माप सकते. ताप ऊर्जा है. ठंड ताप के ठीक विपरीत नहीं है बल्कि उसकी अनुपस्थिति है.

(कक्षा में सभी इस बात को समझने का प्रयास करने लगते हैं)

विद्यार्थी – और अंधकार क्या है, सर? क्या अंधकार जैसी कोई चीज होती है?

प्रोफेसर – यदि अंधकार नहीं होता तो भला रात क्या होती है?

विद्यार्थी – आप गलत कह रहे हैं, सर. अंधकार भी किसी चीज की अनुपस्थिति ही है. प्रकाश कम या अधिक हो सकता है, मंद या चौंधियाता हुआ हो सकता है, झिलमिलाता या लुपलुपाता हो सकता है, लेकिन यदि प्रकाश का कोई स्रोत नहीं हो वह अवस्था अंधकार की होती है. नहीं क्या? वास्तव में अंधकार का कोई अस्तित्व नहीं होता. यदि ऐसा होता तो हम अंधकार को और अधिक गहरा बना पाते, जैसा हम प्रकाश का साथ कर सकते हैं.

प्रोफेसर – मैं समझ नहीं पा रहा कि तुम क्या साबित करना चाहते हो?

विद्यार्थी – मैं यह कहना चाहता हूं कि आपका दृष्टिकोण दोषपूर्ण है.

प्रोफेसर – दोषपूर्ण! तुम ऐसा कैसे कह सकते हो?

विद्यार्थी – आप द्वैत की अवधारणा को मान रहे हैं. आप कह रहे हैं कि जिस प्रकार जीवन और मृत्यु हैं उसी प्रकार अच्छा और बुरा ईश्वर होता है. आप ईश्वर की धारणा को सीमित रूप में ले रहे हैं… वह जिसे आप माप सकते हैं. क्या आप जानते हैं कि विज्ञान इसकी व्याख्या तक नहीं कर सकता कि विचार क्या होता है. आप विद्युत और चुंबकत्व के प्रयोग करते हैं लेकिन आपने इन्हें न तो देखा है और न ही इनको पूरी तरह से जान पाए हैं. आप मृत्यु को जीवन के ठीक विलोम के रूप में देखते हैं जबकि मृत्यु का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है, वह जो जीवन की अनुपस्थिति मात्र है.

अब आप मुझे बताएं सर, क्या आप अपने छात्रों को यह नहीं बताते कि मनुष्यों की उत्पत्ति वानरों से हुई है?

प्रोफेसर – यदि तुम्हारा आशय प्राकृतिक विकासवाद की प्रक्रिया से है तो… हाँ बताता हूँ.

विद्यार्थी – क्या आपने अपनी आँखों से इस विकास की प्रक्रिया को घटते देखा है?

(प्रोफेसर मुस्कुराते हुए अपना सर न की मुद्रा में हिलाता है, वह समझ गया है कि यह बहस किस दिशा में जा रही है)

विद्यार्थी – चूंकि आज तक किसी ने भी विकास की प्रक्रिया को घटते हुए नहीं देखा है और किसी ने यह सिद्ध भी नहीं किया है कि यह प्रक्रिया अनवरत है, क्या फिर भी आप इसे अपने छात्रों को दावे से नहीं पढाते हैं? ऐसा है तो आप वैज्ञानिक में और एक उपदेशक में कोई फर्क रह जाता है?

(कक्षा में खुसरफुसर होने लगती है)

विद्यार्थी – (ऊंचे स्वर में) क्या कक्षा में कोई ऐसा है जिसने प्रोफेसर का मष्तिष्क देखा हो?

(सारे विद्यार्थी हंसने लगते हैं)

विद्यार्थी – क्या यहाँ कोई है जिसने प्रोफेसर के मष्तिष्क को सुना हो, छुआ हो, सूंघा, चखा, या अनुभव किया हो?

शायद यहाँ ऐसा कोई नहीं है. इस प्रकार, विज्ञान के स्थापित मानदंडों के अनुसार मैं यह कह सकता हूँ सर कि आपके दिमाग नहीं है. मेरी बात का बुरा न मानें सर, लेकिन यदि आपके दिमाग ही नहीं है तो हम आपकी शिक्षाओं पर कैसे भरोसा कर लें?

(कक्षा में शांति छा जाती है. प्रोफेसर विद्यार्थी की ओर टकटकी लगाए देखते हैं. उनका चेहरा गहन सोच में डूबा है)

प्रोफेसर – कैसी बातें करते हो! यह तो हम अपने विश्वास से जानते ही हैं.

विद्यार्थी – वही तो मैं भी कहना चाहता हूँ सर कि मनुष्य और ईश्वर को जोड़नेवाली कड़ी आस्था ही है. यही सभी चर-अचर को गतिमान रखती है.

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ऊपर दिया गया संवाद इन्टरनेट पर चैन ई-मेल के रूप में सालों से घूम रहा है. कहा जाता है कि उस विद्यार्थी का नाम ए पी जे अबुल कलाम था, लेकिन ऐसा दावे से नहीं कहा जा सकता.

आप इस बारे में क्या सोचते हैं? आपकी दृष्टि में कौन सही है? क्या आपको प्रोफेसर की तर्कशीलता प्रभावित करती है या विद्यार्थी की निपट आस्था लुभाती है?

(A motivational / inspirational dialogues between an atheist professor and his believer student – in Hindi)

(~_~)

An Atheist Professor of Philosophy was speaking to his Class on the Problem Science has with GOD , the ALMIGHTY. He asked one of his New Students to stand and . . .

Professor :Do you Believe in GOD ?
Student : Absolutely, sir.
Professor : Is GOD Good ?
Student : Sure.
Professor : Is GOD ALL – POWERFUL ?
Student : Yes.
Professor : My Brother died of Cancer even though he prayed to GOD to heal him. Most of us would attempt to help others who are ill. But GOD didn’t. How is this GOD good then? Hmm?

(Student was silent )

Professor : You can’t answer, can you ? Let’s start again, Young man. Is GOD Good?
Student : Yes.
Professor : Is Satan good ?
Student : No.
Professor : Where does Satan come from ?
Student : From . . . GOD . . .
Professor : That’s right. Tell me son, is there evil in this world?
Student : Yes.
Professor : Evil is everywhere, isn’t it ? And GOD did make everything.
Correct?
Student : Yes.
Professor : So who created evil ?

(Student did not answer)

Professor : Is there Sickness? Immorality? Hatred? Ugliness? All these terrible things exist in the world, don’t they?
Student : Yes, sir.
Professor : So, who created them ?

(Student had no answer)

Professor : Science says you have 5 senses you use to identify and observe the world around you. Tell me, son . . . Have you ever seen GOD?
Student : No, sir.
Professor : Tell us if you have ever heard your GOD?
Student : No , sir.
Professor : Have you ever felt your GOD, tasted your GOD , smelt your GOD ? Have you ever had any sensory perception of GOD for that matter?
Student : No, sir. I’m afraid I haven’t.
Professor : Yet you still believe in HIM?
Student : Yes.
Professor : According to empirical, testable, demonstrable protocol, science says your GOD doesn’t exist. What do you say to that, son?
Student : Nothing. I only have my faith.
Professor : Yes, faith. And that is the problem science has.

Student asks and professor answers

Student : Professor, is there such a thing as heat?
Professor : Yes.
Student : And is there such a thing as cold?
Professor : Yes.
Student : No, sir. There isn’t, 

(The Lecture Theatre became very quiet with this turn of events )

Student : Sir, you can have lots of heat, even more heat, superheat, red hot, white hot, a little heat or no heat. But we don’t have anything called cold. We can hit 458 degrees below zero which is no heat, but we can’t go any further after that. There is no such thing as cold. Cold is only a word we use to describe the absence of heat. We cannot measure cold. Heat is energy. Cold is not the opposite of heat, sir, just the absence of it.

(There was pin-drop silence in the Lecture Theatre )

Student : What about darkness, Professor? Is there such a thing as darkness?
Professor : Yes. What is night if there isn’t darkness?
Student : You’re wrong again, sir. Darkness is the absence of something. You can have low light, normal light, bright light, flashing light . . but if you have no light constantly, you have nothing and its called darkness, isn’t it? In reality, darkness isn’t. If it is, you would be able to make darkness darker, wouldn’t you?

Professor : So what is the point you are making, Young Man ?
Student : Sir, my point is your Philosophical premise is flawed.
Professor : Flawed ? Can you explain how?
Student : Sir, you are working on the premise of duality. You argue there is life and then there is death, a Good GOD and a Bad GOD. You are viewing the concept of GOD as something finite, something we can measure. Sir, science can’t even explain a thought. It uses electricity and magnetism, but has never seen, much less fully understood either one. To view death as the opposite of life is to be ignorant of the fact that death cannot exist as a substantive thing. Death is not the opposite of life: just the absence of it. Now tell me, Professor, do you teach your students that they evolved from a monkey?
Professor : If you are referring to the natural evolutionary process, yes, of course, I do.

Student : Have you ever observed evolution with your own eyes, sir?

(The Professor shook his head with a smile, beginning to realize where the argument was going)

Student : Since no one has ever observed the process of evolution at work and cannot even prove that this process is an on-going endeavour, are you not teaching your opinion, sir? Are you not a scientist but a preacher?

(The class was in uproar )

Student : Is there anyone in the class who has ever seen the professor’s brain?

(The class broke out into laughter)

Student : Is there anyone here who has ever heard the Professor’s brain, felt it, touched or smelt it? . . .No one appears to have done so. So, according to the established rules of empirical, stable, demonstrable protocol, Science says that you have no brain, sir. With all due respect, sir, how do we then trust your lectures,sir?

(The room was silent. The Professor stared at the student, his face unfathomable)

Professor : I guess you’ll have to take them on faith, son.
Student : That is it sir . . . exactly ! The link between MAN & GOD is FAITH. That is all that keeps things alive and moving.

There are 65 comments

  1. Manish

    Bhagwan nahi hai agar hai bhi to sansar ki buraiyo bhrashtachar jativaad dharam ke naam pr pakhand ko kyu Nahi rokta Kya uske ps isko. Rokne ki shakti Nahi hai Aaj croro garib bhuke sote hai Kya bhagwan unse bhedbhav kr rha Kya vo dharam ka parchar krne walo no itni budhi Nahi de sakta ke veh mandir banane ki jageh unke gar banaye unhe ek achi jindgi jine ke liye unki jaroorte puri kare ek betuki baat aur hai ki bhagwaan pichle janam ki saja es janam me deta hai Kya vo itna durbal hai es janam ki saja es janam me Nahi de sakta Aaj kal natik muleo ko kiwi bhagwan dharam ya narak ke Dar ki jaroorat Nahi ham apne ap bi enka palan kr sakte hai ensaan bhagwan ke sahare ke bina bi Bahut achi jindgi ji sakta hai agar kisi garib ke pas khana Na ho to vo bhagwan pr sari jimidari chod kr bhetha rahe ga phir uski kismat achi hui to koi usko khana de dega phir veh bhagwan ka dhanay wad karega agar uski kismat achi Na hui to veh bhokha Mr jayega agar vo bhagwaan pr vishwas krne ki wajaye apne ap pr bhrosa rakhe ki veh paise kamakar khud apni mehnat we khana khayega so bhi bina bhagwan ke to koun sa behtar hai agar ap samaj dar hai to samaj jayege lekin Nahi samaje to aastik ban kr ill informed or absurd religious jindgi jiyo.

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  2. ujala Singh

    मै नहीं जानती उस विद्यार्थी किस सोच के साथ यह बोल रहा था पर यह सबकुछ सच है मेरा खुद का भी यही विश्वास है इस दुनिया में जो कुछ भी है वो ऊर्जा का रूप है पर हम नहीं जान सकते की वो पहली ऊर्जा जिसके द्वारा इस सम्पूर्ण विश्व का प्रादुर्भाव हुआ वो कैसे हुआ और अगर हम इस उत्तर को भी जान ले तो भी हम यह कभी नहीं जान सकते की वो ऊर्जा कहाँ से आयी
    वास्तव में इस सम्पूर्ण विश्व की ऊर्जा का स्त्रोत न कभी उत्त्पन्न हो सकता है और न ही कभी नष्ट हो सकता है उसके न तो आविर्भाव हुआ है न ही अंत होगा और वही ऊर्जा को हम ईश्वर कहते है
    इसलिए ईश्वर अजन्मा है और अंतहीन है और वही इस ब्रम्हांड की ऊर्जा है उसका कोई रूप नहीं है न ही उसका कोई आकर है पर यह सम्पूर्ण विश्व की उत्पत्ति उसी से हुई है उसी ऊर्जा से
    और यह आपको जानने की जरूरत है की ईश्वर और भगवान / अल्लाह / ईशा / गुरु नानक में अंतर है
    ईश्वर वो है जो संपूर्ण विश्व की ऊर्जा है भगवान वो है जिन्होंने ईश्वर को जान लिया है कुछ हद तक
    ईश्वर अन्नंत है भगवन का जन्म भी होता है और उनकी मृत्यु भी होती है भगवन अल्लाह ईशा ये सब ईश्वर के रूप है हम भी है पर इन्होने अपनी आत्मा की ताकत को जाना जो की ईश्वर है
    हमारी आत्मा ही ईश्वर है जिसे हम जीव जानते है जिस ऊर्जा की वजह से हम साँस ले रहे है चल फिर रहे है बोल रहे है वही ऊर्जा ईश्वर है
    और इसी ईश्वर को कभी माँ के रूप में देखते है कभी पिता के रूप में पर मेरे ख्याल से वास्तव में वो एनर्जी स्त्रीपुरुष का समावेश होंगे जिसे हम सनातन धर्म में अर्धनारीश्वर के रूप में जानते है
    वास्तव में इस विषय के तर्क का कोई अंत नहीं

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  3. Jay Chauhan

    आस्तिक नास्तिक संवाद
    नास्तिक – ईश्वर नाम कि कोई चीज नहीं है , यदि ईश्वर है तो उसे किसने बनाया है ?
    आस्तिक – मित्र ईश्वर को किसी ने नहीं बनाया है , बनाया उसे जाता है जिसमे बनावट हो ईश्वर निराकार है |
    नास्तिक – ईश्वर जैसे कोई चीज नहीं है , ब्रम्हांड कि रचना के लिए ईश्वर कि कोई आवश्यकता नहीं है |
    आस्तिक – मित्र , यदि ऐसा है तो ब्रम्हांड को किसने बनाया ?
    नास्तिक – ब्रम्हांड अपने आप बन गया ?
    आस्तिक – अपने आप बनाने से पूर्व यह कौन सी अवस्था में था ?
    नास्तिक – यह कैसा प्रश्न है ?
    आस्तिक – प्रश्न तो अभी शुरू होगा , बनाने से पहले कोई न कोई अवस्था में तो होगा ही ?
    नास्तिक – हाँ किसी अवस्था में तो होगा |
    आस्तिक – तो फिर उस अवस्था को किसने बनाया ?
    नास्तिक – वह अवस्था अनादि(Beginningless) है उसे किसी ने नहीं बनाया ?
    आस्तिक – जब आप कहते हैं कि ईश्वर को किसी ने बनाया होगा तो हमारा भी यही सवाल है , आप कैसे कह सकते हैं कि उस अवस्था को किसी ने नहीं बनाया है ?
    नास्तिक – तुम बताओ – ब्रम्हांड कैसे बना ?
    आस्तिक – कोई भी बनी हुयी वस्तु बिना किसी के बनाये नहीं बनती , ब्रम्हांड बना हुआ है उसे बनाने वाला ईश्वर है | ईश्वर ने उसे वैज्ञानिक नियमों के अनुसार बनाया है |

    नास्तिक – ईश्वर को किसने बनाया ?
    आस्तिक – इसका उत्तर पहले दे आये हैं , ईश्वर निराकार है इसलिए उसका कोई कलाकार(Creator) नहीं है |
    नास्तिक – ईश्वर ने दुनिया को किस Material से बनाया ?
    आस्तिक – प्रकृति यानि पदार्थ कि मूल अवस्था(Material Cause) से बनाया |
    नास्तिक – उस मूल अवस्था को किसने बनाया ?
    आस्तिक – मूल का कोई मूल नहीं होता , इसलिए उसको किसी ने नहीं बनाया , जिस वस्तु में संयोग होता है उसका कोई निर्माण करने वाला होता है , मूल अवस्था संयोगजन्य नहीं है इसलिए उसका कोई कर्त्ता(Creator) नहीं , ईश्वर भी संयोगजन्य नहीं है उसका भी कोई कर्त्ता(Creator) नहीं है | पदार्थ कि मूल अवस्था ऊर्जा का मूल रूप है , रूप में परिवर्तन होता लेकिन ये ऊर्जा न तो कभी पैदा होती है , न ही कभी नष्ट होती है |
    नास्तिक – इसी तरह हमारी मूल अवस्था को किसी ने नहीं बनाया , और उस मूल अवस्था से ब्रम्हांड अपने आप बना |
    आस्तिक – मित्र , आप ये सिद्ध नहीं कर पाए थे कि उसको किसी ने नहीं बनाया , बल्कि हमने इसे सिद्ध किया है , चलिए , अब आगे बताइये कि यदि ब्रम्हांड अपने आप कैसे बना ?
    नास्तिक – सृष्टि नियमों के द्वारा अपने आप बना |
    आस्तिक – नियम होंगे तो नियामक भी होगा , management होगा तो manager भी होगा , आप नियमों को मानते है तो नियम खुद तो नियामक यानि कि law maker or Ruler को सिद्ध करते है | आप बताइये नियमों को किसने बनाया ?
    नास्तिक – नियम अनादि है , किसी ने नहीं बनाया |
    आस्तिक – नियम अनादि है तो नियामक यानि कि ruler भी अनादि हुआ |
    नास्तिक – नहीं , नियम ही अनादि है |
    आस्तिक – चलिए कोई बात नहीं , नियम अनादि है तो उन नियमों को कैसे पता कि कब उन्हें लागु (Apply) होना है ?
    नास्तिक – अपने आप लागु होते है ?
    आस्तिक – क्या अपने आप लागु होना उन नियमों का स्वभाव(Nature or Property) है ?
    नास्तिक – हाँ

    आस्तिक – अपने आप लागू होंगे तो किसी एक समय नहीं होंगे , बल्कि हमेशा लागु होते रहेंगे |
    नास्तिक – हाँ, तो ब्रम्हांड कभी बना नहीं , हमेशा से है , और नियम हमेशा से लागु रहे हैं |
    आस्तिक – चलिए अब आपकी थ्योरी बदल गयी है , बताइये ब्रम्हांड अनादि कैसे हो सकता है ? ब्रम्हांड में निरंतर विनाश देखने में आता है | सूर्य कि भी एक निश्चित आयु है , इस तरह हर वस्तु कि एक आयु है , सब कभी न कभी ख़त्म होंगे इसलिए ब्रम्हांड अनादि नहीं है |
    नास्तिक – ब्रम्हांड ख़त्म नहीं होता बल्कि उसमे ग्रह , नक्षत्र ख़त्म होते रहते है , कही ग्रह नक्षत्र खत्म होते हैं तो कहीं उनका जन्म होता है इसलिए ब्रम्हांड अनादि है |
    आस्तिक – ब्रम्हांड में ग्रहों का आधार उनका सूर्य होता है और सौर मंडलों का आधार गैलेक्सीज के बीच में black hole होता है इस तरह सबका कोई न कोई आधार है , तब सबका आधार भी कभी न कभी नष्ट होगा , क्यों कि संयोगजन्य वस्तु कभी अनादि नहीं हो सकती जैसे सूरज आदि नष्ट होते है वैसे सबका ,ग्रह, नक्षत्र का आधार black hole भी कभी न कभी नष्ट होगा , और संयोगजन्य होने से अनादि नहीं हो सकता है |
    नास्तिक – हाँ – फिर सत्य क्या है , ब्रम्हांड कैसे बनता है ?
    आस्तिक – इसके लिए वैदिक रश्मि थ्योरी पढ़ो समझ जाओगे |

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