किसी गाँव में दो पिता-पुत्र रहते थे. पिता किसानी करता था और लड़का दिन भर यहाँ-वहाँ निठल्ला घूमता फिरता था.
एक बार किसान ने लड़के से कहा कि वह धान बोने में उसकी कुछ मदद कर दे. बहुत टालमटोल करते-करते लड़का पिता के साथ खेतों में काम करने लगा.
लड़के को धीरे-धीरे खेतीबाड़ी का महत्त्व समझ में आने लगा. अब वह चाहता था कि उसकी धान की फसल जल्दी से लहलहाने लगे. धान के पौधे अपनी गति से बढ़ रहे थे. वह उन्हें देखने के लिए रोज़ खेत में जाता लेकिन उसे पौधे पिछले दिन जितने बड़े ही दीखते.
एक दिन उसने पौधों को जल्दी बड़ा करने का एक तरीका सोच लिया. उसने खेत के सारे पौधों को ऊपर खींचकर थोड़ा-थोड़ा बढ़ा दिया.
इतनी मेहनत करने पर वह बहुत थक गया लेकिन अपनी उपलब्धि पर वह बहुत खुश था और घर पहुँचते ही उसने पिता को सारी बात बता दी.
यह सुनते ही पिता सरपट खेत की ओर भागा. दुर्भाग्यवश, तब तक बहुत देर हो चुकी थी और सारे पौधे नष्ट हो गए थे.
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सब्र करें. धीरज धरें. कभी-कभी चीज़ें वाकई अपने हिसाब से ही होती हैं. बिना किसी कारण के जल्दबाजी करने से घटनाओं के घटने का प्राकृतिक प्रवाह बाधित हो जाता है.
चित्र साभार – फ्लिकर
(A story about a foolish son of a farmer – in Hindi)
सब कुछ जल्दी पा लेने की दौड़ में शामिल आज की युवा पीढी के लिए एक सबक.
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प्रभु सब को सबकुछ देता है मगर समय से ,
जैसे ,एक बच्चे को अगर १०० रूपए पॉकेट मनि देने से वह उसका उपयोग वैसा करेगा जैसी उसकी उम्र
अगर वही १०० रूपए पिता को दिए जाएँ तो उसका उपयोग परिवार के पोषण के लिये करेगा .अर्थात
जैसे उम्र वैसी बुधी जैसी बुधी वैसा उपहार.
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सब्र का फल मीठा होता है..
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बहुत बडिया आभार्
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यकीनन।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
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आभार इन सदविचारों का.
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समय से पहले और भाग्य से अधिक मिल जाने की तो आशा करना भी व्यर्थ है! अच्छी शिक्षाप्रद कथा…..धन्यवाद
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