यह बात उस समय की है जब अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन अपने कुछ साथियों के साथ एक उफ़नती हुई नदी को अपने-अपने घोड़ों पर बैठकर पार करने जा रहे थे. उस समय वहां नदी के किनारे एक अजनबी भी था जो नदी पार करना चाहता था लेकिन उसके पास घोड़ा नहीं था. जब उसने देखा कि जेफरसन और उनके साथी अपने घोड़ों को नदी में उतार रहे हैं तब वह जेफरसन के पास आया और उसने जेफरसन से अनुरोध किया कि वे उसे अपने साथ घोड़े पर बिठाकर नदी पार करा दें.
जेफरसन मूलतः सरलमना देहाती किसान थे और उन्होंने अजनबी का अनुरोध सहर्ष स्वीकार कर लिया. वे दोनों घोड़े पर बैठकर बिना किसी बाधा के नदी पार कर गए. वह अजनबी जब जेफरसन का धन्यवाद करके अपने रास्ते जाने लगा तब जेफरसन के एक अधिकारी ने उससे पूछा – “इतने सारे लोगों में से तुमने राष्ट्रपति को ही नदी पार कराने के लिए क्यों कहा?”
अजनबी यह जानकार हतप्रभ रह गया की स्वयं संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के राष्ट्रपति ने नदी पार करने में उसकी मदद की थी. वह अधिकारी से बोला – “मैं आप लोगों को नदी पार करने की तैयारी करते काफी देर से देख रहा था. आप सभी के चेहरे पर मुझे ‘नहीं हो सकता’ लिखा दिख रहा था जबकि राष्ट्रपति के चेहरे पर ‘हाँ, हो जायेगा’ लिखा मैं स्पष्ट देख पा रहा था, इसीलिए मैंने नदी पार करवाने के लिए उन्हीं से मिन्नत की”.
चित्र साभार – फ्लिकर
(A story/anecdote about Thomas Jefferson – in Hindi)
एक सार्थक पोस्ट ….जानकारी के लिये शुक्रिया
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बहुत अच्छी पोस्ट
—
चाँद, बादल और शाम
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सत्य है-आत्म विश्वास चेहरे से झलकता है.
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बहुत प्रेरक है यह निशान्त।
थॉमस जेफरसन महान चरित्र थे।
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प्रेरक प्रसंग .
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Baat aisi hi hai
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jo log kam jada dechate hai par karte kuch nhi yha logonke charase spsta zalakta hay yahi bat wn logoma dekhta tha aor rastapatiki charepar n=yah baw dekha naih esliay nadee par karnake leay sadharan vakte samazkr nade par karne leay kahh our nade par chale bi gay
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