विद्यारम्भ से पहले एक शिष्य अपने गुरु से सभागार में वार्तालाप करने के लिए आया. वह हर बात के बारे में आश्वस्त हो लेना चाहता था.
शिष्य ने पूछा – “क्या आप मुझे बता सकते हैं कि मानव जीवन का उद्देश्य क्या है?”
“नहीं” – गुरु ने उत्तर दिया.
“आप कम-से-कम जीवन का अर्थ तो बता ही सकते हैं!?”
“नहीं”.
“अच्छा. तो यह बताएं कि मृत्यु क्या है और जीवन के बाद कौन सा जीवन है”.
“मैं यह सब नहीं बता सकता”.
वह शिष्य चिढ़कर विद्यालय छोड़कर चला गया. बाकी शिष्यों को लगा कि उनके गुरु का अपमान हो गया. कुछ को यह भी लगने लगा कि उनके गुरु ज्ञानी नहीं हैं.
गुरु अपने शिष्यों के मन में चल रहे द्वंद्व को भांप गए. वे बोले – “उस जीवन की प्रकृति और उसके अर्थों व उद्देश्यों को जानकार क्या करोगे जब तुमने जीवन जीना प्रारंभ ही न किया हो! सामने रखे भोजन के विषय में अटकलें लगाने से बेहतर होगा कि उसे चखकर देख लिया जाए”.
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जीवन विचार से नहीं बल्कि अनुभव से मिलता है – अन्थोनी डिमेलो
प्रेरक कथा, आभार।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
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प्रेरक कथा, आभार।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
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bahut hi badhiya post …bahut hi sundar
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सामने रखे भोजन के विषय में अटकलें लगाने से बेहतर होगा कि उसे चखकर देख लिया जाए
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यह बढ़िया है। पहले जी कर तो देखें; फलसफा ठेलने के पूर्व!
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बहुत अच्छा लगा पढ़कर ।
मेरी इच्छा हो रही है कि अपने चार महीने के बेटे को ये कथाएं अभी से पढ़कर सुनाऊं ।
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पढ. कर अच्छा लगा,जीवन की इतनी सटीक परिभाषा
सुन्दर है अति सुन्दर है
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पढ. कर अच्छा लगा,जीवन की इतनी सटीक परिभाषा
सुन्दर है अति सुन्दर है
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