हेनरी फोर्ड ने दुनिया को सबसे पहली आम लोगों की कार दी जिसका नाम था मॉडल-टी. ऐसा नहीं है कि उनसे पहले किसी ने भी मोटर गाड़ी नहीं बनाईं थीं. कारें तो पहले भी थीं लेकिन वे राजा-महाराजाओं के लिए ही बनती थीं और वह भी इक्का-दुक्का. मॉडल-टी की सफलता के पीछे थी सोची-समझी असेम्बली प्रणाली और उसका महत्वपूर्ण इंजन वी-8.
फोर्ड कुछ ख़ास शिक्षित नहीं थे. दरअसल, 14 साल की उम्र के बाद वे कभी स्कूल नहीं गए. वे गाड़ियां बनाना चाहते थे. वे अत्यंत बुद्धिमान थे और जैसे इंजन की उन्होंने रूपरेखा बनाई थी उसके विषय में उन्हें दृढ विश्वास था कि वह इंजन बनाया जा सकता है. लेकिन उन्हें यांत्रिकी का कोई तजुर्बा नहीं था और वे यह नहीं जानते थे कि वैसा इंजन कैसे बनेगा.
फोर्ड उस जमाने के सबसे अच्छे इंजीनियरों के पास गए और उन्हें अपने लिए इंजन बनाने को कहा. इंजीनियरों ने फोर्ड को बताया कि वे क्या कर सकते थे और क्या नहीं. उनके अनुसार वी-8 इंजन एक असंभव बात थी. लेकिन फोर्ड ने उनपर वी-8 इंजन बनाने के लिए भरपूर दबाव डाला. कुछ महीनों बाद उन्होंने इंजीनियरों से काम में हो रही प्रगति के बारे में पूछा तो उन्हें वही पुराना जवाब मिला कि ‘वी-8 इंजन बनाना संभव नहीं है’. लेकिन फोर्ड ने उन्हें फिर से काम में भिड जाने को कहा. कुछ महीनों के बाद उनका मनपसंद वी-8 इंजन बनकर तैयार था. यह कैसे हुआ?
फोर्ड ने अपने इंजीनियरों को अकादमिक ज्ञान की सीमाओं के परे सदैव अपने विचार और कल्पनाशक्ति पर अधिक भरोसा करने के लिए प्रेरित किया.
शिक्षा हमें यह सिखाती है कि हम क्या कर सकते हैं लेकिन कभी-कभी वह हममें छद्म सीमाओं के भीतर बाँध देती है. यह हमें सिखाती है कि हम क्या कर सकते हैं और क्या नहीं कर सकते. इसके विपरीत हमारे विचार और कल्पनाशक्ति हमें सीमाओं के परे जाकर कुछ बड़ा कर दिखाने के लिए प्रेरित करते हैं.
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कीट-विज्ञानियों और एयरो-डायनामिक्स के जानकारों के अनुसार भंवरे का शरीर बहुत भारी होता है और उसके पंख बहुत छोटे होते हैं. विज्ञान के नियमों के हिसाब से भंवरा उड़ नहीं सकता, लेकिन भँवरे को इस विज्ञान की जानकारी नहीं है और वह मज़े से उड़ता फिरता है.
जब आपको अपनी सीमाओं का बोध नहीं होता तब आप उनसे बाहर जाकर करिश्मे कर दिखाते हैं. तब आपको पता भी नहीं चलता कि आप बेहद सीमित थे. हमारी सारी सीमायें हम स्वयं ही अपने ऊपर थोप लेते हैं. शिक्षित बनिए लेकिन स्वयं को सीमित न होने दें.
(The making of motor car – a motivational / inspiring anecdote of Henry Ford – in Hindi)
बहुत आभार!!
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Very True 🙂
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बहुत नाम सुना था ..आपका और आपके ब्लॉग का…आज आया तो पाया ..सब सच ही सुना था..अच्छा..बहुत अच्छा लगा…
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आपके ब्लॉग का बदला रूप ज्यादा सुंदर है।
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हाँ जाकिर भाई. इसमें कुछ तो अपनी मेहनत है और कुछ वर्डप्रेस का मोहक स्वरूप.
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