बहुत पुरानी बात है. अफ्रीका के किसी भूभाग में अनानसी नामक एक व्यक्ति रहता था. पूरी दुनिया में वही सबसे बुद्धिमान मनुष्य था और सभी लोग उससे सलाह और मदद मांगने आते थे.
एक दिन अनानसी किसी बात पर दूसरे मनुष्यों से नाराज़ हो गया और उसने उन्हें दंड देने की सोची. बहुत सोचने के बाद उसने यह तय किया कि वह अपना सारा ज्ञान उनसे हमेशा के लिए छुपा देगा ताकि कोई और मनुष्य ज्ञानी न बन सके. उसी दिन से उसने अपना सारा ज्ञान बटोरना शुरू कर दिया. जब उसे लगा कि उसने दुनिया में उपलब्ध सारा ज्ञान बटोर लिया है तब उसने सारे ज्ञान को मिटटी के एक मटके में बंद करके अच्छे से सीलबंद कर दिया. उसने यह निश्चय किया कि उस मटके को वह ऐसी जगह रखेगा जहाँ से कोई और मनुष्य उसे प्राप्त न कर सके.
अनानसी के एक बेटा था जिसका नाम कवेकू था. कवेकू को धीरे-धीरे यह अनुभव होने लगा कि उसका पिता किसी संदिग्ध कार्य में लिप्त है इसलिए उसने अनानसी पर नज़र रखनी शुरू कर दी. एक दिन उसने अपने पिता को एक मटका लेकर दबे पांव झोपडी से बाहर जाते देखा. कवेकू ने अनानसी का पीछा किया. अनानसी गाँव से बहुत दूर एक जंगल में गया और उसने मटके को सुरक्षित रखने के लिए एक बहुत ऊंचा पेड़ खोज लिया. अपना ज्ञान दूसरों में बंट जाने की आशंका से भयभीत अनानसी मटके को अपनी आँखों के सामने ही रखना चाहता था इसलिए वह अपनी छाती पर मटके को टांगकर पर पेड़ पर चढ़ने लगा. इस तरह अपनी छाती पर मटका टांगकर पेड़ पर चढ़ना तो लगभग नामुमकिन ही था! उसने कई बार पेड़ पर चढ़ने की कोशिश की लेकिन वह ज़रा सा भी न चढ़ पाया. सामने की ओर मटका टंगा होने के कारण वह पेड़ को पकड़ ही न पा रहा था.
कुछ देर तक तो कवेकू अपने पिता को पेड़ पर चढ़ने का अनथक प्रयास करते देखता रहा. जब उससे रहा न गया तो वह चिल्लाकर बोला – “पिताजी, आप मटके को अपनी पीठ पर क्यों नहीं टांगते? तब आप पेड़ पर आसानी से चढ़ पायेंगे!”
अनानसी मुड़ा और बोला – “मुझे तो लगता था कि मैंने दुनिया का सारा ज्ञान इस मटके में बंद कर लिया है! लेकिन तुम तो मुझसे भी ज्यादा ज्ञानी हो! मेरी सारी बुद्धि मुझे वह नहीं समझा पा रही थी जो तुम दूर बैठे ही जान रहे थे!” उसे कवेकू पर बहुत गुस्सा आया और क्रोध में उसने मटका जमीन पर पटक दिया. जमीन पर गिरते ही मटका टूट गया और उसमें बंद सारा ज्ञान उसमें से निकलकर पूरी दुनिया में फ़ैल गया और सारे मनुष्य बुद्धिमान हो गए.
(An African folktale about knowledge – in Hindi)
बहत बढ़िया कहानी . .
आपकी पोस्ट चर्चा समयचक्र में
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बहुत से सबक छिपे हैं इस लोककथा में…
हम अपने तथाकथित ज्ञान की गठरी को ढोए फिरते हैं, और अचानक असली ज़िंदगी से जुडा कोई कवेकू हमें अपनी सीमाए बता जाता है…
जाहिर है ज्ञान हमारे जीवन और प्रयासों से जुडा हुआ है, और हमें ऐसा समझाया जाता है जैसे यह कहीं आसमान से टपकेगा या किसी रहस्यमयी प्रक्रिया से अवतरित हो जाएगा…
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मटका काफी दूर गिरा था। अफ्रीका में। अपने यहां तो बुद्धि पूरी पहुंची नहीं 🙂
अच्छी कथा।
कुछ दिन सोचना पड़ेगा इस कथा पर। विचारों का भोजन मिला है। अच्छा है।
आभार।
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कुवेकू से हजारी प्रसाद द्विवेदी के रैक्व ऋषि याद आ गए।
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