विक्रम साराभाई की सरलता

Vikram_Sarabhaiवर्ष 1948 में अहमदाबाद की महात्मा गाँधी विज्ञान अन्वेषणशाला में कुछ विद्यार्थी भौतिकी के महत्वपूर्ण प्रयोग कर रहे थे. यह प्रयोगशाला विक्रम साराभाई ने हाल में ही शुरू की थी. प्रयोग के दौरान भारी विद्युत प्रवाह के कारण एक बहुमूल्य यंत्र जल गया. वह यंत्र विदेश से मंगाया गया था और भारत में उपलब्ध नहीं था. यंत्र के अभाव में अनेक महत्वपूर्ण प्रयोग स्थगित करने पड़ जाते.

विद्यार्थी डर गए कि वे साराभाई को इस बारे में कैसे बताएं. साराभाई कुछ ही क्षणों में प्रयोगस्थल पर आनेवाले थे.

“वे आ रहे हैं. तुम बता दो कि यंत्र जल गया है”.

“हमने जानबूझ कर तो ऐसा नहीं किया! कहीं वे नाराज़ हो गए तो?”

“क्या करें, कैसे बताएं? मुझे डर लग रहा है”.

साराभाई ने उन्हें फुसफुसाते हुए सुन लिया. उन्होंने पूछा – “क्या बात है? कोई समस्या है क्या?”

“सर, प्रयोग के दौरान विद्युत मीटर जल गया. उसमें से भारी विद्युत प्रवाह हो गया. हम…”

“इतनी सी बात! परेशान मत हो. वैज्ञानिक अध्ययन और प्रयोगों में ऐसी घटनाएँ होती रहती हैं. विद्यार्थी गलतियों से ही तो सीखते हैं! अगली बार प्रयोग से पहले अच्छे से जांच कर लेना” – साराभाई बहुत सरलता से बोले.

उनके इस उत्तर को सुनकर दोनों युवा वैज्ञानिकों के मन में उनके प्रति असीम श्रद्धा भर गई. भविष्य में वे प्रयोगों के दौरान पर्याप्त सावधानी बरतने लगे.

साराभाई इस हानि पर न तो क्रोधित हुए और न ही उन्होंने इसके लिए दुःख व्यक्त किया.

भाग्यशाली विद्यार्थियों को ही ऐसा गुरु मिलता है.

(A motivational / inspiring anecdote of Vikram Sarabhai – in Hindi)

There are 2 comments

  1. सिद्धार्थ जोशी

    मेरा अनुभव है कि शीर्ष पदों पर ऐसे लोग हों जिन्‍होंने पहले फील्‍ड में काम किया हो तो वे पद पर आने के बाद अधिक सहज रहते हैं। बजाय के उन लोगों के जो सिफारिशों और जोड़ तोड़ से पहुंचते हैं। विक्रम साराभाई से भी काम के दौरान कई भूलें हुई होंगी। सो वे नए वैज्ञानिकों की समस्‍या को सहजता से समझ गए। इसी स्‍थान पर कोई भोंट होता तो विज्ञान के शोध से अधिक पैसे के प्रबंधन को महत्‍व देता।

    अच्‍छा प्रसंग। धन्‍यवाद ।

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