“मैं नाविक बनना चाहता हूँ” – जॉर्ज वाशिंगटन ने कहा – “नाविक बनकर मैं अनजाने देशों की यात्राएं करूँगा और अजीबोगरीब चीज़ें देखूंगा. एक दिन मैं किसी जहाज का कैप्टन भी बन जाऊँगा”.
उस समय जॉर्ज वाशिंगटन की उम्र सिर्फ चौदह साल थी.
जॉर्ज के बड़े भाई भी यही चाहते थे कि वह नाविक बने. उन्होंने सबसे कहा कि जॉर्ज जैसा बहादुर लड़का बहुत अच्छा नाविक बनेगा और एक-न-एक दिन वह कैप्टन और बहुत हुआ तो एडमिरल भी बन सकता है.
और इस बात पर सभी सहमत हो गए. जॉर्ज के भाई ने परिवार को बताया कि एक व्यापारी जहाज का कैप्टन इंग्लैंड की यात्रा पर निकलनेवाला था. कैप्टन जॉर्ज को अपने साथ ले जाने और नाविक बनने के गुर सिखाने के लिए तैयार भी हो गया.
लेकिन जॉर्ज की माँ उदास थीं. जॉर्ज के चाचा ने उसकी माँ को एक पत्र में लिखा – “उसे समुद्र में मत भेजो. अगर वह एक साधारण नाविक के रूप में अपने जीवन की शुरुआत करेगा तो कभी कुछ बड़ा और बेहतर नहीं बन पायेगा”.
परन्तु जॉर्ज ने भी ठान ली थी कि उसे नाविक ही बनना है. वह दृढप्रतिज्ञ और निश्चल था. उसने उन लोगों की बातों पर ध्यान नहीं दिया जो उससे घर में ही रूककर कुछ और करने की सलाह दे रहे थे.
जहाज में यात्रा प्रारंभ करने का दिन भी आ गया. बीच समुद्र में जहाज लंगर डाले खड़ा था. नदी में एक नाव जॉर्ज का इंतज़ार कर रही थी. एक बक्से में जॉर्ज के कपडे आदि सामान रखकर पहले ही नाव में पहुंचाए जा चुके थे. समुद्री यात्रा करने के रोमांच से जॉर्ज के पाँव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे.
“माँ, मैं जा रहा हूँ” – जॉर्ज ने कहा.
वह घर की दहलीज पर खड़ा होकर पूरे घर को देख रहा था. यात्रा में न जाने कितना समय लगनेवाला था. सभी प्रियजन उससे मिलने के लिए आए थे. उसे भीतर-ही-भीतर उदासी का अनुभव होने लगा.
“जाओ बेटा, अपना ख़याल रखना” – माँ ने कहा.
जॉर्ज ने माँ की आँखों में आंसू देखे. वह जानता था कि माँ उसे जाने देना नहीं चाहती थी. उससे माँ का दुःख देखा न गया.
कुछ पल वह सोचता हुआ खड़ा रहा. फिर वह एकदम मुड़ा और बोला – “माँ, मैंने अपना विचार बदल लिया है. मैं घर पर ही रहूँगा और वही करूँगा जो तुम चाहती हो”.
फिर उसने बाहर इंतज़ार कर रहे नौकर को बुलाया और उससे कहा – “टॉम, नदी तक जाओ और उनसे कहो कि मेरा बक्सा नीचे उतार दें. कैप्टन को सन्देश भेजो कि वह मेरा इंतज़ार न करे क्योंकि मैं अब नहीं जा रहा हूँ. मैं यहीं रहूँगा”.
जॉर्ज वाशिंगटन के बारे में कौन नहीं जानता!? उनके बारे में कहा जाता है की ‘वे युद्ध में प्रथम थे, शांति में प्रथम थे, और अपने देशवासियों के ह्रदय में भी वे प्रथम थे”.
(A motivational / inspiring anecdote of George Washington – in Hindi)
जॉर्ज वाशिंगटन के बारे में बताने के लिये यह पंक्तियाँ काफी हैं – “‘वे युद्ध में प्रथम थे, शांति में प्रथम थे, और अपने देशवासियों के ह्रदय में भी वे प्रथम थे”.
इस महानतम व्यक्तित्व को मेरा नमन !
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अच्छी प्रस्तुति।
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भारतीय प्रतिमानों की बात की जाए तो बेहतर रहेगा, मैं खिड़की बंद करने की बात नहीं कर रहा, मैं सिर्फ नींव मजबूत करने की बात कर रहा हूँ.
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Great!!
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wo bahut hi sanvedanshil hai jo apni ma ke ansu dekhkar
apne vichar badal deta hai or kahta hai nai yahi rahunga or tu jo kahe gi vahi karunga…
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आप के इस पोस्ट से मेरा नॉलेज बाधा है
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