एक दिन एक कौवे ने विशालकाय गरुड़ पक्षी को भेड़ का एक छोटा मेमना अपने पंजे में दबाये हुए अपने घोंसले की और उड़ते देखा.
“बढ़िया भोजन पाने का यह अच्छा तरीका है” – कौवे ने सोचा – “मैं भी इसी तरह एक मेमना पकड़ लूँगा”.
कौवा पेड़ से छलाँग लगाकर भेड़ों के एक झुंड पर झपटा और उसने एक मेमने को पकड़ने की कोशिश की. लेकिन भेड़ का एक छोटा सा मेमना भी कौवे के लिए तो बहुत बड़ा शिकार था! कौवा उसे लेकर उड़ नहीं सकता था.
“हे भगवान! मैं तो इसे लेकर उड़ नहीं सकता! इसे छोड़ देने में ही भलाई है. कोई छोटा शिकार बेहतर होगा” – कौवे ने सोचा.
लेकिन उस मेमने को छोड़ना भी उतना आसान थोड़े ही था! जब कौवे ने उसे छोड़कर उड़ने की कोशिश की तो उसने यह पाया कि उसके पंजे मेमने के ऊनी रोओं में फंस गए थे.
कौवे ने स्वयं को छुड़ाने की भरसक कोशिश की लेकिन कुछ न हुआ. किसान ने यह सब देखा तो उसने कौवे को पकड़ लिया और अपने घर लाकर उसे अपने बच्चों को दे दिया.
“ये कैसा पक्षी है, पिताजी?” – किसान के बच्चों ने पूछा.
किसान हंसते हुए बोला – “बच्चों, कुछ समय पहले तक तो इसे लगता था कि यह गरुड़ है. अब इसे शायद यह पता चल गया होगा कि यह तो सिर्फ एक कौवा ही है. अगर इस बात को इसने हमेशा याद रखा होता तो आज यह आजाद पक्षी होता”.
(कहानी और चित्र यहाँ से लिए गए हैं)
bahut achchhi kahani
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अच्छी प्रेरक कहानी है। इस तरह की एक कहानी हमारे यहां भी प्रचलिते है। इसमें गरुड की जगह हंस है। हंसों को समुद्र को उड़ते हुए पार करते देखकर कौआ भी जोश में आ जाता है और वह भी उनके साथ उडने लगता है। कुछ दूर जाने पर वह थककर चूर हो जाता है, और सोचता है, अब लौट चलना चाहिए, पर लौट चलने के लिए उसके पास कहां ताकत बची है! वह समुद्र में डूबकर मर जाता है।
यह तैराकों के लिए भी अच्छी सीख है। वे उत्साह से भरकर बड़ी नदियों को पार करने चलते हैं, पर बहुत बार आधे रास्ते ही वे इतने थक जाते हैं, कि उनसे न पीछे लौटते बनता है, न आगे बढ़ते। कई इस तरह डूब भी जाते हैं। प्रेमचंद ने अपने एक उपन्यास में, अब याद नही आ रहा कि वह कौन-सा है -उनकी कोई प्रारंभिक उपन्यास है यह, इस बात का उपयोग किया है और अपने एक पात्र को गंगा में इस तरह डुबोकर मारा है।
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अच्छी प्रेरक कहानी है। इस तरह की एक कहानी हमारे यहां भी प्रचलिते है। इसमें गरुड की जगह हंस है। हंसों को समुद्र को उड़ते हुए पार करते देखकर कौआ भी जोश में आ जाता है और वह भी उनके साथ उडने लगता है। कुछ दूर जाने पर वह थककर चूर हो जाता है, और सोचता है, अब लौट चलना चाहिए, पर लौट चलने के लिए उसके पास कहां ताकत बची है! वह समुद्र में डूबकर मर जाता है।
यह तैराकों के लिए भी अच्छी सीख है। वे उत्साह से भरकर बड़ी नदियों को पार करने चलते हैं, पर बहुत बार आधे रास्ते ही वे इतने थक जाते हैं, कि उनसे न पीछे लौटते बनता है, न आगे बढ़ते। कई इस तरह डूब भी जाते हैं। प्रेमचंद ने अपने एक उपन्यास में, अब याद नही आ रहा कि वह कौन-सा है -उनकी कोई प्रारंभिक उपन्यास है यह, इस बात का उपयोग किया है और अपने एक पात्र को गंगा में इस तरह डुबोकर मारा है।
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Kahani to bahut aachi hai aur us kauve ko bi pata chal gaya hoga ki wah murkh kauva hai.
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