ईश्वर का उपहार

मिश्रजी को कोई राह नहीं बूझ रही. आज फिर उनसे वही गलत काम हो गया जिसको न करने का प्रयास वे सालों से करते आ रहे हैं.

“अब क्या किया जाए” – सोच रहे हैं मिश्रजी “कोई रास्ता तो निकालना पड़ेगा. क्यों न स्वयं को दंड दिया जाए? जब भी गलत काम कर बैठें, दंड के भागी बनें!”

“अब से मैं जब कभी भी गलत काम करूँगा, मैं अपने सर से दस बाल उखाड़ दूंगा. जिस दिन मेरे सर में एक भी बाल नहीं बचेगा, मैं खुद को गोली मार लूँगा!” – मिश्रजी ने ग्लास से पानी पी के अखंड प्रतिज्ञा ले ली.

baldप्रतिज्ञा लिए हुए लगभग एक महिना गुज़र गया. मिश्रजी भी लगभग गंजे हो चुके हैं. आप समझ सकते हैं कि पाप से दूर रहना कितना मुश्किल काम है! हर बार उन्होंने दस-दस करके अपने सर के सारे बाल उखाड़ डाले.

“मेरे सुधरने की कोई उम्मीद नहीं है. मैं खुद को मार डालूँगा!” – मिश्रजी ने सर पर एक भी बाल न पाकर कहा.

उन्होंने पिस्तौल निकालकर अपनी कनपटी पर लगा ली. इससे पहले कि वे ट्रिगर दबाते, सहसा कमरे में प्रकाश छा गया और एक देवदूत चिल्लाकर बोला – “गोली मत चलाना!”

“अब कुछ नहीं हो सकता!” – मिश्रजी ने उत्तर दिया – “मैंने प्रतिज्ञा की थी कि जब मेरे सर पर एक भी बाल नहीं बचेगा तो मैं खुद को गोली मार लूँगा!”

“इसीलिए तो मैं यहाँ आया हूँ” – देवदूत ने कहा – “ईश्वर आपको यह देना चाहते हैं”.

देवदूत ने मिश्रजी को एक डिब्बा थमा दिया और मिश्रजी डरते-डरते डिब्बे को खोलने लगे.

डिब्बे में रखी वस्तु देखकर मिश्रजी की आँखों में आंसू आ गए. डिब्बे में एक टोपी रखी थी.

There are 4 comments

  1. Gyandutt Pandey

    मिश्राजी का डिस्ट्रक्टिव रिजॉल्व ही गलत था। उन्हें कहना था कि अब जब भी गलती करूंगा – एक पौधा लगाऊंगा।
    देवदूत को नाहक पुण्य कमाने का चांस दिया। 🙂

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