अलेक्जेंडर ग्राहम बेल

Alexander Graham Bell


अलेक्जेंडर ग्राहम बेल. उन्होंने 1876 में टेलीफोन का आविष्कार किया था. उनसे पहले भी इस यंत्र की खोज करने के कई असफल प्रयास अन्य वैज्ञानिक कर चुके थे लेकिन सफलता बेल को मिली. बेल बचपन से ही कुशाग्र थे और छोटी उम्र में ही सरल यंत्रों को अपने-आप बनाने लगे थे. अपने युग के अन्य बहुत सारे वैज्ञानिकों के विपरीत उन्हें बहुत अच्छी शिक्षा और आर्थिक पृष्ठभूमि मिली हुई थी. उन्होंने मूक-बधिरों के लिए बहुत काम किया और विमानों के विकास में भी बहुत योगदान दिया.

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“वॉट्सन, यहाँ आओ, मुझे तुम्हारी ज़रुरत है” – ये शब्द विश्व में किसी ने पहली बार टेलीफोन पर कहे थे. उस दिन 10 मार्च  1876 को बेल अपने कमरे में और उनका सहायक वॉट्सन बिल्डिंग के ऊपरी तल पर अपने कमरे में यंत्रों पर काम कर रहे थे. बहुत दिनों से लगातार यंत्रों को जोड़ने पर भी उन्हें ध्वनि के संचारण में सहायता नहीं मिल रही थी.

उस दिन पता नहीं तारों का कैसा संयोग बन गया. वे दोनों इससे अनभिज्ञ थे. काम करते-करते बेल की पैंट पर अम्ल गिर गया और उन्होंने वॉट्सन को मदद के लिए पुकारा. वॉट्सन ने उनकी आवाज़ को अपने पास रखे यंत्र से आते हुए सुना और… बाकी तो इतिहास है.

1915 में अंतरमहाद्वीपीय टेलीफोन लाइन बिछ गई और उसके उदघाटन के लिए बेल को बुलाया गया. बेल पूर्वी तट पर थे और उन्हें कहा गया कि वे कुछ कहकर लाइन का औपचारिक उदघाटन करें. दूसरे छोर पर वॉट्सन थे. जानते हैं बेल ने फोन पर क्या कहा!? “वॉट्सन, यहाँ आओ, मुझे तुम्हारी ज़रुरत है”. वॉट्सन का जवाब था – “सर, मैं आपसे 3000 किलोमीटर दूर हूँ और मुझे वहां आने में कई दिन लग जायेंगे!”

और “हैलो” शब्द किसने गढा? थॉमस एडिसन ने. बेल चाहते थे कि फोन उठाने या सुनने वाला व्यक्ति “अहोय” कहे लेकिन थॉमस एडिसन का “हैलो” लोगों की जुबां पर चढ़ गया.

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इतनी महान खोज करने के बाद भी सालों तक बेल अपनी खोज का महत्त्व नहीं समझ पाए. उनके अनुसार टेलीफोन आम आदमी के उपयोग की वस्तु कभी नहीं बन सकता था.

नेशनल जिओग्राफिक सोसायटी के संस्थापक और अपने भावी ससुर गार्डिनर ग्रीन हब्बार्ड को जब बेल ने अपना टेलीफोन यंत्र दिखाया तो हब्बार्ड ने उनसे कोई उपयोगी वस्तु बनाने के लिए कहा क्योंकि हब्बार्ड के अनुसार “ऐसे खिलौने में लोग भला क्यों रुचि लेंगे?”

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1919 में 72 साल की उम्र में बेल ने पानी पर चलने वाला एक यान हाइड्रोफोइल बनाया जिसने उस समय पानी पर रफ़्तार का विश्व रिकॉर्ड बनाया.

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बोस्टन विश्वविद्यालय में बेल बधिर लोगों को पढ़ाने का काम करते थे. सुप्रसिद्ध हेलन केलर और उनकी भावी पत्नी मेबेल हब्बार्ड भी उनकी छात्राएं थीं. मेबेल के साथ उनका 45 साल लम्बा सुखी वैवाहिक जीवन रहा. जीवन के अंतिम पड़ाव पर बीमारी की दशा में एक दिन अपने पति का हाथ थामकर मेबेल ने उनसे कहा – “मुझे छोड़कर मत जाओ”. बेल ने अपनी उँगलियों से ‘no’ बनाकर उन्हें इशारा किया. मेबेल ने उसी क्षण अंतिम सांस ली.

4 अगस्त 1922 को जब बेल की मृत्यु हुई तो उत्तरी अमेरिका के लाखों फोन बेल के सम्मान में एक मिनट के लिए बंद कर दिए गए.

विकलांगों की सेवा को बेल ने अपना ध्येय बना रखा था. वे पूरी ज़िन्दगी अपने रोगी भाई के लिए कृत्रिम फेफड़ा बनाने का प्रयास करते रहे.

There are 8 comments

  1. समीर लाल

    ब्लॉग आपका ह मित्र. पूर्ण स्वतंत्रता और विवेक से इस्तेमाल करें इसका. आपकी पहेली ज्ञानवर्धक थी..इसकी दरकार है. बेनामियों से विचलित न हों. उनमें तो सामने आकर कहने की हिम्मत नहीं याने कि वो जानते है कि वो गलत हैं. आप अपने हिसाब से चलें, सब आपके साथ हैं. शुभकामनाऐं.

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  2. Vivek

    बेनामी टिप्पणी देने का कारण केवल इतना ही था की मैं ब्लॉग जगत में सक्रिय नहीं हूं. नाम ज़ाहिर करने या न करने से शायद ही कोई फर्क पड़ता, मुझे अपना मत आप तक पहुंचना था सो बेनामी टिप्पणी के माध्यम से पहुंचा दिया. इसमें मेरी कुंठा जैसी कोई बात नहीं थी, हर बेनामी कमेन्ट को कुंठा की उपज या हिम्मत की कमी मान लेना मेरे विचार से गलत है.

    ब्लॉग का संचालक अगर पाठकों के विचार आमंत्रित करता है तो कुछ ऐसे सुझाव भी आ सकते हैं जो ज्यादातर लोगों के सोचने के तरीके से मेल नहीं खाते. मेरा मानना है की इनपर भी विचार होना चाहिए. ‘कुंठाग्रस्त’ या ‘कायर’ जैसी तोहमतें लगाना, वह भी केवल नाम सार्वजानिक न करने के कारण, कुछ अजीब लगता है. अनाम होने के कई और भी कारण हो सकते हैं. माना की की बेनामी कमेन्ट ज्यादातर ट्रोल ब्लोगर करते है, पर हर अनाम टिप्पणी को सिर्फ मत-भिन्नता के चलते कुंठित और कायराना ठहराना मेरे विचार से नादानी वाली बात है. मैं अभी भी मनाता हूं की मेरे विचार अपनी जगह सही हैं.

    पिछली पोस्ट पर मेरे कमेन्ट में मैंने कोई कुंठित मानसिकता वाली या छिपकर वार करने वाली हरकत नहीं की है. आपने सुझाव आमंत्रित किये थे मैंने अपने विचार रखे.

    मैं भी एक अनुवादक हूं, अगर आप ब्लॉग सामग्री में कुछ योगदान चाहें तो मैं इसके लिए सहर्ष तैयार हूं. आपके ब्लॉग से जुड़ना या इसमें अनुवादक के रूप में योगदान देना मेरे लिए गर्व की बात होगी. मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें.

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    1. Nishant

      आप दूसरों के कमेंट्स को अन्यथा न लें. मैंने तो आपकी इच्छा का सम्मान ही किया न? इससे स्पष्ट है कि मैं आपकी राय से सहमति रखता हूँ.
      यह जानकार अच्छा लगा कि आप भी अनुवादक हैं. फ़िलहाल तो मैं सभी से यही चाहता हूँ कि मुझे प्रकाशित करने लायक सामग्री सुझाएँ. सहयोग देनेवाले सुझाव के लिए आपका धन्यवाद.

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  3. alpana

    एक महान वैज्ञानिक के बारे में बहुत ही अच्छी जानकारी मिली.हिंदी में ऐसी और भी जानकारियों का स्वागत है.आप जिन लेखों या विषयों के बारे में हिंदी में अनुवाद करते हैं उन्हें विकिपीडिया में भी जरुर पोस्ट करें..ताकि ज्यादा से ज्यादा पाठक लाभ पा सकें.

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