मुल्ला अपने शागिर्दों के साथ एक रात अपने घर आ रहा था कि उसने देखा एक घर के सामने कुछ चोर खड़े हैं और ताला तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.
मुल्ला को लगा कि ऐसे मौके पर कुछ कहना खतरे से खाली न होगा इसलिए वह चुपचाप चलता रहा. मुल्ल्ला के शागिर्दों ने भी यह नज़ारा देखा और उनमें से एक मुल्ला से पूछ बैठा – “वे लोग वहां दरवाजे के सामने क्या कर रहे हैं?
“श्श्श…” – मुल्ला ने कहा – “वे सितार बजा रहे हैं.”
“लेकिन मुझे तो कोई संगीत सुनाई नहीं दे रहा” – शागिर्द बोला.
“वो कल सुबह सुनाई देगा” – मुल्ला ने जवाब दिया.
* * * * *
एक दिन बाज़ार में कुछ गाँव वालों ने मुल्ला को घेर लिया और उससे बोले – “नसरुद्दीन, तुम इतने आलिम और जानकार हो. तुम हम सबको अपना शागिर्द बना लो और हमें सिखाओ कि हमें कैसी ज़िन्दगी जीनी चाहिए और क्या करना चाहिए”.
मुल्ला ने कुछ सोचकर कहा – “ठीक है. सुनो. मैं तुम्हें पहला सबक यहीं दे देता हूँ. सबसे ज़रूरी बात यह है कि हमें अपने पैरों की अच्छी देखभाल करनी चाहिए और हमारी जूतियाँ हमेशा दुरुस्त और साफसुथरी होनी चाहिए”.
लोगों ने मुल्ला की बात बहुत आदरपूर्वक सुनी. फिर उनकी निगाह मुल्ला के पैरों की तरफ गई. मुल्ला के पैर बहुत गंदे थे और उसकी जूतियाँ बेहद फटी हुई थीं.
किसी ने मुल्ला से कहा – “नसरुद्दीन, लेकिन तुम्हारे पैर तो बहुत गंदे हैं और तुम्हारी जूतियाँ भी इतनी फटी हैं कि किसी भी वक़्त पैर से अलग हो जाएँगी. तुम खुद तो अपनी सीख पर अमल नहीं करते हो और हमें सिखा रहे हो कि हमें क्या करना चाहिए!”
“अच्छा!” – मुल्ला ने कहा – “लेकिन मैं तो तुम लोगों की तरह किसी से ज़िन्दगी जीने के सबक सिखाने की फरियाद नहीं करता!”
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आधी रात के वक़्त घर के बाहर दो व्यक्तियों के झगड़ने की आवाज़ सुनकर मुल्ला की नींद खुल गई. कुछ वक़्त तक तो मुल्ला इंतज़ार करता रहा कि दोनों का झगड़ा ख़त्म हो जाये और उसे फिर से नींद आ जाये लेकिन झगड़ा जारी रहा.
कड़ाके की ठंड पड़ रही थी. मुल्ला अपने सर और बदन को कसकर रजाई से लपेटकर घर के बाहर आया. उसने उन दोनों झगड़ा करनेवालों को अलग करने की कोशिश की. वे दोनों तो अब मारपीट पर उतारू हो गए थे.
मुल्ला ने जब उन दोनों को न झगड़ने की समझाइश दी तो उनमें से एक आदमी ने यकायक मुल्ला की रजाई छीन ली और फिर दोनों आदमी भाग गए.
नींद से बोझिल और थका हुआ मुल्ला घर में दाखिल होकर बिस्तर पर धड़ाम से गिर गया. मुल्ला की बीबी ने पूछा – “बाहर झगड़ा क्यों हो रहा था?”
“रजाई के कारण” – मुल्ला ने कहा – “रजाई चली गई और झगडा ख़तम हो गया”.
बहुत ही बढिया मजेदार किस्से सुनाए आपने………..धन्यवाद
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कई दिनों से इस ब्लाग को देख रहा था। सोचता था एक साथ पढ़ूंगा। आज की पोस्ट तो पढ़ी है। शेष किसी दिन फुरसत में पढूंगा। वाकई मजेदार और सिखाने वाला है।
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मुल्ला के यह किस्से रोचक तो हैं ही, अर्थगर्भित भी हैं । मुझे तो यह प्रबोध देते जान पड़ते हैं हमेशा । आभार ।
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sahi kaha aapane , ina kisso mo gahara arth bhi chupa hai.
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U r doing a good job. these short stories keep us connected with reality of life.
Thanks 🙂
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रजाई जाते ही पोस्ट भी खतम हो गई! 🙂
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मज़ेदार हैं किस्से मुल्ला नसीर्रूद्दीन के
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