ईसा पूर्व यूनान का दार्शनिक डायोजीनस सर्वथा नग्न रहता था और बहुत सशक्त कदकाठी का पुरुष था. उस जमाने में गुलाम प्रथा अपने चरम पर थी और दस्युओं के गिरोह बलशाली व्यक्तियों को पकड़कर उन्हें गुलाम के रूप में बेच देते थे.
ऐसे ही चार दस्युओं ने डायोजीनस को देखा और आपस में बात की – “यह तो बहुत ही बलवान पुरुष है. इसे बेचने पर तो बहुत धन मिलेगा. हमने आज तक बहुत सारे गुलामों को बेचा है लेकिन यह आदमी तो उन सबसे सुन्दर और बलशाली लगता है. इसे बेचने पर हमें मनचाहा दाम मिल जायेगा और हम इसकी बोली भरे बाज़ार में लगायेंगे. लेकिन हम इसे पकडेंगे कैसे? हम चार तो इसे पकड़ने के लिए पर्याप्त नहीं हैं! यह तो हमें मार ही डालेगा!”
डायोजीनस ने उनकी बातें सुनी. उस समय वह एक नदी के किनारे जल में अपने पैर डुबोये बैठा था और वे दस्यु उसके पीछे ही एक पेड़ के नीचे खड़े बातें कर रहे थे. डायोजीनस ने उनसे कहा – “परेशान मत हो मित्रों! यहाँ आओ. मुझसे डरो नहीं. मैं तुम्हें नहीं मारूंगा! यह मत सोचो कि तुम मुझे पकड़ोगे तो मैं प्रतिरोध करूँगा! मैं किसी का प्रतिरोध नहीं करता! मैं किसी से नहीं लड़ता! तुम लोग मुझे गुलाम बनाकर बेचना चाहते हो!?”
झेंपते और डरते हुए उन दस्युओं ने कहा – “हम ऐसा ही सोच रहे हैं. हम बहुत गरीब हैं… अगर आप चाहो तो”.
डायोजीनस ने कहा – “निस्संदेह! यदि मैं तुम्हारी गरीबी दूर कर सकूँ तो मुझे ख़ुशी होगी. यह तो बहुत अच्छी बात है.”
वे दस्यु अपनी जंजीरें ले आये. डायोजीनस ने जंजीरें देखकर कहा – “उन्हें नदी में फेंक दो! मुझे बाँधने की ज़रुरत नहीं है. मैं तुम सबके आगे चलूँगा! मैं कभी पलायन नहीं करता! मैं किसी से भी कभी नहीं भागता! मुझे तो बिकने का विचार बड़ा ही प्रीतिकर लग रहा है! ऊंचे मंच पर मैं खड़ा रहूँगा और सैकड़ों लोग मुझे प्राप्त करने का प्रयास करेंगे. मैं इस नीलामी के बारे में सोचकर उत्साहित हूँ! चलो, चलें!”
अब तो वे चार दस्यु और अधिक डर गए – “यह आदमी केवल सुन्दर और बलशाली ही नहीं है, पागल भी है… और खतरनाक भी हो सकता है! लेकिन यहाँ दूर-दूर तक भागकर छुपने की जगह नहीं है. ये बचकर कहाँ जाएगा.”
डायोजीनस ने कहा – “चलो. यदि तुम भागने की कोशिश करोगे तो अपने जीवन को खतरे में डालोगे. तुम चारों मेरे पीछे आओ. मुझे बेचने के लिए चलो.”
डरते-डरते वे डायोजीनस के पीछे चल पड़े. वे उसे पकड़ना चाहते थे लेकिन वह तो उन सबसे आगे था. उसने दस्युओं से कहा – “डरो मत. भागने की कोशिश मत करो. तुम सबने मुझे बहुत सुन्दर विचार दिया है और इसके लिए मैं तुम सबका आभारी हूँ. अब तुम सबको बाज़ार तक लेकर जाना मेरी जिम्मेदारी है. मुझे बेचना तुम्हारी जिम्मेदारी है.”
“यह कैसा आदमी है!?” – वे चारों यही सोच रहे थे. अब और कुछ तो किया नहीं जा सकता था अतः वे उसके पीछे चलते रहे. जब वे सभी बाज़ार में पहुंचे और ऊंचे मंच पर खड़े हुए तो सब लोग डायोजीनस को देखकर मंत्रमुग्ध हो गए. वहां अपूर्व शांति छा गई. लोगों ने ऐसी देह वाला पुरुष कभी नहीं देखा था. इतना सुन्दर और इतना बलशाली!
इससे पहले कि बोली लगानेवाला कुछ कहता, डायोजीनस ने कहा – “सुनो इस नगर के निवासियों, एक मालिक स्वयं को किसी गुलाम के हाथों बेचना चाहता है क्योंकि मेरे इन गरीब मित्रों को धन की आवश्यकता है. ऊंची से ऊंची बोली लगाओ लेकिन यह ध्यान में रखो की यहाँ एक मालिक की बिक्री हो रही है, गुलाम की नहीं!”
एक राजा ने डायोजीनस को ऊंची बोली लगाकर खरीद लिया. उन चार दस्युओं को डायोजीनस के बदले में इतना धन मिला जितने से वे अपना पूरा जीवन सुख से व्यतीत कर सकते थे. डायोजीनस ने उनसे कहा – “मित्रों, क्या अब तुम सब प्रसन्न हो? ऐसा है तो तुम अपने-अपने घर जाओ और मैं इस गुलाम के साथ जाऊंगा.”
डायोजीनस और राजा दोनों रथ पर सवार हो गए. मार्ग में राजा ने डायोजीनस से पूछा – “क्या तुम पागल हो!? तुम खुद को मालिक बताते हो! मैं यहाँ का राजा हूँ और तुम मुझे गुलाम कह रहे हो!”
डायोजीनस ने कहा – “मैं तो पागल नहीं हूँ लेकिन तुम् निश्चित ही पागल हो. मैं इसे अभी ही सिद्ध कर सकता हूँ!”
रथ के पीछे ही रानी बैठी हुई थी. डायोजीनस ने राजा से कहा – “तुम्हारी रानी ने मुझमें रुचि लेना शुरू कर दिया है. वह तुमसे ऊब चुकी है. एक मालिक को खरीदना खतरे से खाली नहीं है.”
राजा को यह सुनकर बड़ा धक्का सा लगा! निस्संदेह, डायोजीनस के सामने वह कुछ भी नहीं था! राजा ने अपनी तलवार निकाली और रानी से पूछा – “यह गुलाम क्या कह रहा है!? क्या यह सच है? यदि तुम सच कहोगी तो तुम्हारे प्राण बच जायेंगे, ये मेरा वादा है. लेकिन यदि तुम झूठ बोलोगी तो मैं इसी क्षण तुम्हारा सर कलम कर दूंगा!”
रानी अत्यंत भयभीत हो गई लेकिन आखिरकार वह थी तो रानी ही! वह बोली – “यह सच है. इसके सामने तुम कुछ भी नहीं हो. मैं इसपर मोहित हो गई हूँ. आसक्त हो गई हूँ. इसके समक्ष तो तुम बहुत साधारण व्यक्ति प्रतीत होते हो! यह सच है.”
राजा ने रथ रुकवाया और डायोजीनस से कहा – “इसी पल नीचे उतर जाओ! मैं तुम्हें आजाद करता हूँ! मुझे तुम जैसे खतरनाक गुलाम की अपने महल में ज़रुरत नहीं है!”
डायोजीनस ने कहा – “धन्यवाद. तुम मुझे कभी भी गुलाम नहीं बना सकते क्योंकि मैं केवल स्वयं का ही मालिक हूँ. मेरे बदले में बड़ी रकम पाकर भी वे चारों दस्यु स्वयं को अपराधी महसूस कर रहे होंगे क्योंकि वे मुझे यहाँ नहीं लाये थे, मैं स्वयं अपने वचन पर उन्हें यहाँ लेकर आया था. और यह रथ तुम्हारा है, यदि तुम मुझे इसमें नहीं बिठाना चाहते हो तो कोई बात नहीं. मुझे वैसे भी रथों में बैठने की आदत नहीं है. मेरे पैर बहुत मज़बूत हैं. और मैं तो हमेशा ही नग्न रहता हूँ इसलिए सोने का रथ मुझपर जंचता नहीं है. जाओ. हो सके तो सुख से रहने का प्रयास करो.”
ऊपर दिया गया चित्र ‘The School of Athens’ महान चित्रकार राफेल ने 1510 से 1515 के आसपास बनाया था. इसमें यूनान के सभी महान दार्शनिकों को चित्रित किया गया है. डायोजीनस भी इनमें कहीं हैं. चित्र विकिपीडिया से.
khubsurat kahani
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Great.
Very thought provoking.
Bahut hi sundar hai.
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