एक दिन एक भिखारी ने मुल्ला नसरुद्दीन का दरवाज़ा खटखटाया. मुल्ला उस समय अपने घर की ऊपरी मंजिल पर था. उसने खिड़की खोली और भिखारी से कहा – “क्या चाहिए?”
“आप नीचे आइये तो मैं आपको बताऊँगा” – भिखारी ने कहा.
मुल्ला नीचे उतरकर आया और दरवाज़ा खोलकर बोला – “अब बताओ क्या चाहते हो.”
“एक सिक्का दे दो, बड़ी मेहरबानी होगी” – भिखारी ने फरियाद की. मुल्ला को बड़ी खीझ हुई. वह घर में ऊपर गया और खिड़की से झाँककर भिखारी से बोला – “यहाँ ऊपर आओ”.
भिखारी सीढियाँ चढ़कर ऊपर गया और मुल्ला के सामने जा खडा हुआ. मुल्ला ने कहा – “माफ़ करना भाई, अभी मेरे पास खुले पैसे नहीं हैं.”
“आपने ये बात मुझे नीचे ही क्यों नहीं बता दी? मुझे बेवज़ह इतनी सारी सीढियाँ चढ़नी पड़ गईं!” – भिखारी चिढ़कर बोला.
“तो फिर तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया” – मुल्ला ने पूछा – “जब मैंने ऊपर से तुमसे पूछा था कि तुम्हें क्या चाहिए!?”
जैसे को तैसा…मुल्ला जी भी गजब आईटम थे. 🙂
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आप का आगमन सुखद रहा हार्दिक,धन्यवाद , लगता है मुल्ला जी के मेरी ही तरह ही प्रशंसक हैं ,पुरानी चित्र कथाएँ भी बहुत प्रिय रहीं है ,अपना संग्राह अभी हटाया है जब से होश सम्हला तब से का संग्रह था ,विशेष रूप से चन्दामामा का संग्राह उस काल का था जब उनका मूल्य डेढ़ आना अथवा आज के सिक्कों में 9 या 10 पैसों का हुआ करता था | अन्य विषयों से संबंधित ब्लॉग भी देखें नीचे बॉक्स में संपर्क दिया है |
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भाई वाह …
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मुल्ला नसरुद्धीन जिन्दाबाद!
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🙂
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Waah, Nasruddin ka jawaab nahee.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
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hey very good
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