तुम्हारे बच्चे तुम्हारी संतान नहीं हैं
वे तो जीवन की स्वयं के प्रति जिजीविषा के फलस्वरूप उपजे हैं
वे तुम्हारे भीतर से आये हैं लेकिन तुम्हारे लिए नहीं आये हैं
वे तुम्हारे साथ ज़रूर हैं लेकिन तुम्हारे नहीं हैं.
तुम उन्हें अपना प्रेम दे सकते हो, अपने विचार नहीं
क्योंकि उनके विचार उनके अपने हैं.
तुमने उनके शरीर का निर्माण किया है, आत्मा का नहीं
क्योंकि उनकी आत्मा भविष्य के घर में रहती है,
जहाँ तुम जा नहीं सकते, सपने में भी नहीं
उनके जैसे बनने की कोशिश करो,
उन्हें अपने जैसा हरगिज़ न बनाओ,
क्योंकि ज़िन्दगी पीछे नहीं जाती, न ही अतीत से लड़ती है
तुम वे धनुष हो जिनसे वे तीर की भांति निकले हैं
ऊपर बैठा धनुर्धर मार्ग में कहीं भी अनदेखा निशाना लगाता है
वह प्रत्यंचा को जोर से खींचता है ताकि तीर चपलता से दूर तक जाए.
उसके हाथों में थामा हुआ तुम्हारा तीर शुभदायक हो,
क्योंकि उसे दूर तक जाने वाले तीर भाते हैं,
और मज़बूत धनुष ही उसे प्रिय लगते हैं.
खलील जिब्रान की इस रचना के लिये आभार । आपका टैग-मेघ बहुत लुभाता है । टैगों की एकरसता के बीच नये और विशिष्ट टैग देखकर अच्छा लगता है ।
यह चित्र किसका है ? क्या खलील जिब्रान का ?
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धन्यवाद हिमांशु जी. खलील जिब्रान बहुत अच्छे चित्रकार भी थे लेकिन यह चित्र उनका बनाया प्रतीत नहीं होता.
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Wonderful advice through the post – Thanks Nishant Ji
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जिब्रान दार्शनिकता में कविता…और चित्रों में दार्शनिकता दोनों का एक सशक्त उदाहरण हैं..ये चित्र स्वयं उन्ही का एवं उनके ही द्वारा बनाया हुआ है…ये लेबनान में एक संग्रहालय में भी है..
Nishant kaushik
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