इस ब्लौग के नियमित पाठक श्री सुशील कुमार छौक्कर ने जॉर्ज बर्नार्ड शा के किस्सों की फरमाइश की है. असाधारण प्रतिभाशाली महान लेखक शा के खब्तीपन के सैंकडों किस्से बिखरे हुए हैं और इस बात का पता नहीं चलता कि उनमें से कौन से वास्तविक हैं और कौन से लोगों द्वारा गढे गए. आज मैं कुछ ज्यादा ही फ्री हूँ इसलिए सुशील कुमार छौक्कर जी की फरमाइश अभी पूरी कर देता हूँ. आगे कभी शा के और कई किस्से दूसरी पोस्ट में पेश करूँगा. आज के लिए ये पांच किस्से:-
जॉर्ज बर्नार्ड शा को एक इलैक्ट्रिक शेविंग मशीन बनाने वाले ने अपने इलैक्ट्रिक रेज़र का विज्ञापन करने के लिए संपर्क किया. वह चाहता था कि विज्ञापन में शा अपनी दाढ़ी साफ़ करते हुए दिखें. दाढ़ी शा की शख्सियत से जुड़ चुकी थी और उनकी खास पहचान बन चुकी थी. शा ने मशीन निर्माता को बताया कि उनके पिता ने भी हमेशा दाढ़ी रखी और इसके पीछे एक बहुत विशेष कारण था.
“मैं उस समय लगभग पांच साल का था” – शा ने कहा – “और मैं अपने पिता के पास खडा हुआ था. वे दाढ़ी बना रहे थे. मैंने उनसे पूछा, “डैडी, आप दाढ़ी क्यों बनाते हैं?”, पिताजी ने कुछ पलों के लिए मेरी ओर देखा और अपना रेज़र खिड़की से बाहर फेंकते हुए वे बोले, “बेटा, दाढ़ी बनाने की वास्तव में कोई ज़रुरत नहीं होती”, और उस दिन के बाद उन्होंने कभी दाढ़ी नहीं बनाई.”
अपने नब्बेवें जन्मदिन पर आयोजित कार्यक्रम में शा को स्कॉट्लैंड यार्ड पुलिस के मशहूर जासूस फेबियन ने सुझाव दिया कि उस मौके के उपलक्ष्य में शा की उँगलियों की छाप लेनी चाहिए ताकि वह हमेशा-हमेशा के लिए संरक्षित हो जाय.
शा की उँगलियों की छाप सबके सामने ली गई लेकिन वह आश्चर्यजनक रूप से बहुत अस्पष्ट आई. यह देखकर शा ने वहां मौजूद लोगों से चुटकी लेते हुए कहा – “यदि मुझे यह पहले पता होता तो मैंने कोई और पेशा अख्तियार किया होता.”
ब्रौडवे थियेटर में प्रसिद्द नाटककार सर सेड्रिक हार्डविक ‘सीज़र एंड क्लियोपेट्रा’ नाटक का निर्देशन कर रहे थे. शा भी वहां उपस्थित थे. सेड्रिक अपने किशोरवय पुत्र को शा से मिलाने ले गए.
जब वे विदा लेने लगे तो शा ने सेड्रिक के पुत्र से कहा – “लड़के, एक दिन तुम अपने पोते-पोतियों को यह बताओगे कि तुमने जॉर्ज बर्नार्ड शा को देखा हुआ है” – और ज़रा सा ठहरकर शा मुस्कुराते हुए बोले – “और वे कहेंगे ‘ये किस चिड़िया का नाम है!'”
एमजीएम स्टूडियो एक मालिक सैमुअल गोल्डविन बर्नार्ड शा के कई नाटकों पर फिल्म बनाने के अधिकार खरीदना चाहते थे. इससे जुड़ी राशि पर लम्बी बहस होने के बाद शा ने अंततः गोल्डविन के प्रस्ताव को ठुकरा दिया. उन्होंने गोल्डविन से बड़े तल्ख़ अंदाज़ में कहा – “हमारे बीच कोई समझौता नहीं हो सकता मिस्टर गोल्डविन क्योंकि आप सिर्फ कला में रूचि रखते हैं और मैं सिर्फ पैसे में.”
एक दिन पुरानी सेकंड-हैण्ड किताबों की दूकान में शा को उनकी ही एक किताब की प्रति मिल गई जिसपर उन्होंने अपने हाथ से अपने एक मित्र के लिए लिखा हुआ था -“प्रति श्री….. आदर सहित, जॉर्ज बर्नार्ड शा.”
शा ने फ़ौरन वह किताब खरीद ली और उसी मित्र को वह किताब उसी नोट के नीचे यह लिखकर भेज दी – “नवीनीकृत आदर के साथ, जॉर्ज बर्नार्ड शा.”
दिलचस्प. यूं ये सभी पहले से सुनी पढी हैं और इन मैं भी वही राय रखता हूं जो आप रखते हैं. हालांकि शा के व्यक्तित्व को उनके लेखन के ज़रिये ज़्यादा क़रीब से जानता हूं और मुझे लगता है कि ये सभी बातें सही हो सकती हैं. क्योंकि ये शा के लेखकीय व्यक्तित्व से बहुत मेल खाती हैं. पढ़ कर मज़ा आया. ऐसी चीज़ें देते रहें.
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samsmaran achche lage
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i am happy to read this things in hindi.
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