दुर्दिनों की चक्की

दुर्दिन जीवन को चक्की की तरह पीसते हैं। अक्सर तो वे पीस ही डालते हैं, लेकिन कभी-कभी वे इसे पॉलिश करके चमकदार और सुंदर भी बना देते हैं। राह में आने वाली मुसीबतों से हम किस तरह से निपटते हैं उसी पर बुरे दिनों का प्रभाव और परिणाम निर्भर करता है। इस दुनिया में आप ही कष्ट नहीं उठा रहे हैं।

महान संगीतकार बीथोवन ने अपना सर्वश्रेष्ठ संगीत तब रचा जब वे लगभग बहरे हो चुके थे और अपने घर के तलघर में बिना किसी वाद्य यंत्र के वे संगीत लिखा करते थे। सर वाल्टर रैले ने विश्व का इतिहास बिना किसी पुस्तक की सहायता के तब लिखा जब वे 13 वर्षों की कैद भुगत रहे थे। राह में अनेक संकट और कठिनाइयाँ आने के बाद यदि कोलंबस ने थक कर हार मान ली होती तो कोई इसकी निंदा नहीं करता, लेकिन तब उसे याद ही कौन रखता! अब्राहम लिंकन अपने ज्ञान और चरित्र की दृढ़ता के कारण अमेरिकी गृहयुद्ध से अपने देश को निकाल कर ले गए। मार्टिन लूथर ने बाइबल का अनुवाद नज़रबंदी के दौरान किया। दांते ने अपनी महान रचना ‘डिवाइन कॉमेडी’ तब लिखी जब वे मृत्युदंड से बचने के लिए भागते फ़िर रहे थे। अंग्रेजी लेखक जॉन बनयान ने अपनी पुस्तक ‘पिल्ग्रिम्स प्रोग्रेस’ जेल में रहते समय लिखी।

कठिनोइयों से लड़-भिड़ के उनपे जीत हासिल करने का एक वाकया ज्यादा पुराना नहीं है। सोलह साल की मेरी लुईस निरक्षर की भांति थी। किसी को पता ही नहीं था कि उसे डिस्लेक्सिया था। दो मौकों पर वो लंबे समय तक अस्पताल में भरती रही और प्रसव के दौरान पक्षाघात से मरते-मरते बची। उसने कॉलेज में पढ़ाई करने की अपने मन में ठान ली थी। तरह-तरह के काम करते हुए उसने 18 वर्ष की उम्र में हाईस्कूल पास कर लिया। उसे ओरेगोन राज्य के आउटस्टैंडिंग छात्र का खिताब मिला और उसने कॉलेज में दाखिला ले लिया। वह डॉक्टर बनना चाहती थी लेकिन उसे 15 मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश नहीं मिला। अंततः अल्बानी मेडिकल कॉलेज ने उसे प्रवेश दे दिया। सन 1984 में पैंतीस साल की उम्र में डॉक्टर मेरी ग्रोडा लुईस ने ऑनर्स के साथ डाक्टर बनने का अपना सपना पूरा किया।

बुरे दिन – क्या वे आपको पीस डालेंगे या चमका देंगे?

Photo by Liam Simpson on Unsplash

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