एक बार किसी साधारण विद्वान् ने उर्दू-फारसी का एक कोश प्रकाशित करवाया और इस कोश का इतना अधिक प्रचार-प्रसार किया कि लोग बिना देखे ही उस कोश की प्रशंसा करने लगे। उर्दू के प्रसिद्द शायर मिर्जा ग़ालिब ने जब वह कोश देखा तो उन्हें निराशा हुई क्योंकि कोश इतनी प्रशंसा के लायक नहीं था।
मिर्जा ग़ालिब ने उस कोश की आलोचना खरे शब्दों में लिख दी। कोश का लेखक और उसके कुछ प्रशंसक ग़ालिब की स्पष्टवादिता से नाराज़ हो गए और ग़ालिब के खिलाफ कीचड उछालने लगे और भद्दी-भद्दी बातें लिखने लगे। ग़ालिब ने किसी से कुछ नहीं कहा।
ग़ालिब के एक शुभचिंतक से यह देखा न गया और उसने ग़ालिब से कहा कि उन लोगों के खिलाफ ऐसा कुछ लिखना चाहिए कि उनके मुंह बंद हो जायें।
ग़ालिब ने उससे कहा – “यदि कोई गधा तुम्हें लात मारे तो क्या तुम भी उसे लात मारोगे?”
ग़ालिब व्यर्थ ही प्रलाप करनेवालों का चरित्र समझते थे। उनका उत्तर देना कीचड़ में पत्थर मारने के समान था। ऐसे छोटे लोगों द्वारा निंदा या स्तुति करने की उन्हें कोई परवाह नहीं थी। ख़ुद पर उन्हें बड़ा यकीन था। उनका यह जवाब सुनकर उनका शुभचिंतक निरुत्तर हो गया।
कुछ ही दिनों में लोगों को उस कोश के स्तरहीन होने का पता चल गया। उन्होंने ग़ालिब की आलोचना की सराहना की और स्तरहीन कोश के लेखक को नीचा देखना पड़ा।
Photo by Joanna Kosinska on Unsplash
ऐतिहासिक उदाहरण के माध्यम से हमारे आधुनिक चिट्ठाकारों के लिये महत्त्वपूर्ण सीख! धन्यवाद!
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सच्ची बात।
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