एक बूढे साधू को को एक सम्राट ने अपने महल में आमंत्रित किया।
“आपके पास कुछ भी नहीं है पर आपका संतोष देखकर मुझे आपसे ईर्ष्या होती है” – सम्राट ने कहा।
“लेकिन आपके पास तो मुझसे भी कम है, महामहिम, इसलिए वास्तव में मुझे आपसे ईर्ष्या होती है” – साधू ने कहा।
“आप ऐसा कैसे कह सकते हैं? मेरे पास तो इतना बड़ा राज्य है!” – सम्राट ने आश्चर्य से कहा।
“इसी कारण से” – साधू बोला – “मेरे पास अनंत आकाश और संसार के समस्त पर्वत और नदियाँ हैं, सूर्य है और चंद्रमा है, मेरे ह्रदय में परमात्मा का वास है। और आपके पास केवल आपका राज्य है, महामहिम।”
Photo by Riccardo Chiarini on Unsplash
शून्य और अनंत एक सी सत्ता है। बीच में सब सीमित!
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ईष्या तू न गयी मेरे मन से .
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बहुत सुंदर बात कही है थोड़े ही शब्दों में।~जयंत
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