एक बौद्ध भिक्षुणी निर्वाण प्राप्ति के लिए साधनारत थी। उसने भगवान् बुद्ध की एक मूर्ति बनवाई और उसपर सोने का पत्तर लगवाया। उस मूर्ति को वह जहाँ भी जाती अपने साथ ले जाती थी।
साल-दर-साल गुजरते गए। वह भिक्षुणी अपने भगवान् की मूर्ति लेकर एक ऐसे मठ में रहने आ गई जहाँ बुद्ध की अनेकों मूर्तियाँ थीं।
भिक्षुणी अपने बुद्ध के सामने रोज़ धूपबत्ती जलाया करती थी। लेकिन वह चाहती थी कि उसकी धूपबत्ती की सुगंध केवल उसके बुद्ध तक ही पहुंचे। इसके लिए उसने बांस की एक पोंगरी बनाई जिससे होकर धूपबत्ती का धुआं केवल उसके बुद्ध तक ही पहुँचने लगा।
धुएँ के कारण उसके बुद्ध की नाक काली हो गई।
Photo by Ciprian Boiciuc on Unsplash
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सुन्दर सरल एवम् सहज सटीक कथा है। कथा के साथ मनोवैज्ञानिक संकेत करेंगे तो कथा अधिक मूल्यवान सिद्धहोगी
सुभकामनाओं सहित।
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Please mention that you have taken this story from one of the books by Osho Rajneesh.
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यह कहानी ओशो की किसी पुस्तक में हो सकती है लेकिन वहां से नहीं ली गई है. यह एक बहुत प्रसिद्द ज़ेन कथा है जिसके कई वर्ज़न इन्टरनेट पर उपलब्ध हैं, किसी पर भी कोई कॉपीराइट नहीं है.
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Anekon zen kathaon ka jikar sahitya main bikhra Osho ne anek kathaon ke samahit kiya hai aur kahin dava nahin kiya ki kahan se liya gaya
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