एक प्रसिद्ध वक्ता ने सेमीनार में अपनी जेब से 100 डालर का नोट निकला और कमरे में उपस्थित 200 लोगों से पूछा – “कौन यह 100 डालर का नोट लेना चाहता है?”
सभी मौजूद लोगों ने अपने हाथ उठा दिए।
वक्ता ने कहा – “यह नोट मैं आपको ज़रूर दूँगा लेकिन उससे पहले मैं इसे…” – यह कहते हुए उसने उस नोट को अपने हाथ में कसकर भींचकर दिया।
उसने फ़िर पूछा – “अभी भी किसी को नोट चाहिए?”
अभी भी सारे हाथ ऊपर उठ गए।
“अच्छा!” – वक्ता ने कहा – “और अगर मैं इस नोट के साथ यह करूँ” – कहते हुए उसने नोट को ज़मीन पर पटककर उसे अपने जूते से मसल दिया। (हम भारतवासी तो ऐसा कदापि न करें)
उसने फ़िर वह गन्दा तुड़ा-मुड़ा सा नोट उठाया और फ़िर से कहा – “क्या अब भी कोई इसे लेना चाहेगा?”
अभी भी सारे लोग उसे लेने के लिए तैयार थे।
“दोस्तों” – वक्ता ने कहा – “आप सभी ने आज एक बेशकीमती सबक सीखा है। इस नोट के साथ मैंने इतना कुछ किया पर सभी इसे लेने के लिए तैयार हैं क्योंकि इसकी कीमत कम नहीं हुई। यह अभी भी 100 डालर का नोट है”।
“हमारी ज़िंदगी में हमें कई बार गिराया, कुचला और अपमानित किया जाता है पर इससे हमारी कीमत – हमारा महत्त्व कम नहीं हो जाता। इसे हमेशा याद रखें”।
Photo by Pepi Stojanovski on Unsplash
ओह, अप्रतिम! मैं ऐसे ही ब्लॉग की खोज में था। कहना न होगा कि मैने ब्लॉग अपने फीडरीडर मेँ डाल लिया है।
पसंद करेंपसंद करें
behtarin
पसंद करेंपसंद करें
बहुत प्रेरणादायक कहानी
पसंद करेंपसंद करें
निशांत जी बहुत ब्लॉग पढ़े हैं लेकिन आपके आगे सिर झुकाता हूं। मेरा अभिवादन लें। और धन्यवाद भी।
पसंद करेंपसंद करें
“हमारी ज़िंदगी में हमें कई बार गिराया, कुचला और अपमानित किया जाता है पर इससे हमारी कीमत – हमारा महत्त्व कम नहीं हो जाता। इसे हमेशा याद रखें”। -एक सुंदर पोस्ट के लिए साधुवाद. ज्ञान दत्त जी के पोस्ट के माध्यम से आपका लिंक मिला. पुरानी पोस्ट भी पढीं.अच्छा प्रयास है.
पसंद करेंपसंद करें