शायद ही किसी ने जिराफ के बच्चे को जन्म लेते देखा हो। अपनी माँ के गर्भ से वह 10 फीट की ऊंचाई से पीठ के बल गिरता है। गिरते ही वह अपने पैरों को अपने पेट के नीचे सिकोड़कर गठरी बन जाता है। अपने पैरों पर खड़े होने की न तो उसकी इच्छा होती है न उसमें इतनी शक्ति होती है। माँ जिराफ उसकी आंखों और कानों को अपनी लम्बी जीभ से चाटकर साफ करती है। और 5 मिनट में सफाई हो जाने के बाद माँ निर्ममतापूर्वक अपने शावक को जीवन की कठोरता का पहला पाठ पढाती है।
माँ जिराफ बच्चे के चारों तरफ़ घूमती है। फ़िर एकाएक वह ऐसी हरकत करती है जिसे देखना हैरत में डाल देता है। अचानक ही वह अपने नवजात शावक को इतनी ज़ोर से अपनी शक्तिशाली लात मारती है कि उसका बच्चा जोरदार गुलाटियां खा जाता है।
इसपर भी जब बच्चा नहीं खड़ा होता तब यह प्रक्रिया बार-बार दुहराई जाती है। लातें खा-खा कर बेचारा नवजात अधमरा हो जाता है। फ़िर भी उसपर प्रहार होते रहते हैं। और एक पल में वह बच्चा अपनी डगमगाती हुई पतली टांगों पर खड़ा हो जाता है।
माँ जिराफ तब एक और अजीब काम करती है। वह बच्चे का पैर चाटती है। वह उसे यह याद दिलाना चाहती है कि वह अपने पैरों पर किस तरह खड़ा हुआ है। जंगल में खतरे की आहट पाते ही बच्चे को अब एक झटके में उचककर भागते हुए सुरक्षित स्थान में पहुंचना होगा।
जिराफ के जिन बच्चों को उनकी माँ का यह प्रसाद जन्म के बाद नहीं मिला होता उन्हें जंगल के शेर, चीते, भेडिये आसानी से अपना शिकार बना लेते हैं।
चित्रकार माइकलएंजेलो, वेन गॉग, जीवन विज्ञानी चार्ल्स डार्विन और मनोविश्लेषक सिगमंड फ्रायड की जीवनियों के महान लेखक इरविंग स्टोन इस घटना का मर्म समझते थे। उनसे एक बार किसी ने पूछा कि इतने महान व् अद्भुत जीनियस लोगों के जीवन में उन्हें कौन सी समानता दिखती है।
इरविंग स्टोन ने कहा – “मैंने उन लोगों के बारे में लिखा है जो अपना कोई सपना पूरा करने की चाह दिल में लेकर अपने काम में लगे रहते हैं। वे हर जगह दुत्कारे जाते हैं, उनपर हर तरफ़ से प्रहार किए जाते हैं। लेकिन जितनी भी बार उन्हें राह से धकेला जाता है वे फ़िर से अपने पैरों पर मजबूती से खड़े हो जाते हैं। ऐसे लोगों को हराना और उनके हौसलों को परास्त करना असंभव है। और फ़िर अपने जीवन के किसी न किसी मुकाम पर उन्हें वह सब मिल जाता है जिसके लिए वे ताउम्र चोट सहते रहे”।
Photo by Harshil Gudka on Unsplash
निशांत जी पता है आपके पोस्ट पर इतने कमेंट क्यों नहीं आते जितने की आने चाहिए। मुझे लगता है इसका कारण यह है कि जो पढ़ता है वह सोच में पड़ जाता है। हर पोस्ट पढ़ने के बाद कम्प्यूटर बंद कर कुछ देर सोचने को जी चाहता है। मेरा दिल जानता है कि एक पोस्ट के बाद दूसरी पोस्ट पढ़ने के लिए अपने दिमाग को कितनी मुश्किल से तैयार कर पा रहा हूं। हर कहानी एक जीवन समेटे हुए हैं। आपका प्रयास सराहनीय है। सुंदर कथाओं के लिए दिल से आभार।
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