महान बौद्ध संत नागार्जुन के पास संपत्ति के नाम पर केवल पहनने के वस्त्र थे। उनके प्रति अपार श्रद्धा प्रर्दशित करने के लिए एक राजा ने उनको सोने का एक भिक्षापात्र दे दिया।
एक रात जब नागार्जुन एक मठ के खंडहरों में विश्राम करने के लिए लेटने लगे तब उन्होंने एक चोर को एक दीवार के पीछे से झांकते हुए देख लिया। उन्होंने चोर को वह भिक्षापात्र देते हुए कहा – “इसे रख लो। अब तुम मुझे आराम से सो लेने दोगे।”
चोर ने उनके हाथ से भिक्षापात्र ले लिया और चलता बना। दूसरे दिन वह भिक्षापात्र वापस देने आया और नागार्जुन से बोला – “जब आपने रात को यह भिक्षापात्र मुझे यूँ ही दे दिया तब मुझे अपनी निर्धनता का बोध हुआ। कृपया मुझे ज्ञान की वह संपत्ति दें जिसके सामने ऐसी सभी वस्तुएं तुच्छ प्रतीत होती हैं।”
Photo by Amanda Flavell on Unsplash
एक बार ओशो ने कहा था कि पूर्व और पश्चिम में केवल इन्हीं साधुओं की उपस्थिति का अन्तर है।
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