मुखौटा

मेरे चेहरे को देखकर धोखा मत खाना क्योंकि मैं हज़ार मुखौटे लगाता हूँ, जिनमें से एक भी मेरा नहीं है। इस सबसे भी ज़रा भी भ्रमित मत होना।

मैं तुम्हें यह जतलाता हूँ कि मैं सुरक्षित हूँ, आत्मविश्वास मेरा दूसरा नाम है, सहजता मेरा स्वभाव है, और मुझे किसी की ज़रूरत नहीं है। लेकिन तुम मेरी बातों का यकीन मत करना। मेरे भीतर गहरे अन्तस् में संदेह है, एकाकीपन है, भय है। इसीलिये मैं अपने ऊपर मुखौटे चढ़ा लेता हूँ, ताकि मैं स्वयं को भी पहचान न सकूँ।

लेकिन कभी-कभी मैं अपने अन्दर झाँककर देखता हूँ। मेरा वह देखना ही मेरी मुक्ति है क्योंकि यदि उसमें स्वीकरण है तो उसमें प्रेम है। यह प्रेम ही मुझे मेरे द्वारा बनाये हुए कारागार से मुक्त कर सकता है। मुझे डर सा लगता है कि बहुत भीतर कहीं मैं कुछ भी नहीं हूँ, मेरा कुछ भी उपयोग नहीं है, और तुम मुझे ठुकरा दोगे।

यही कारण है कि मैं मुखौटों की एक फेहरिस्त हूँ। मैं यूँ ही बडबडाता रहता हूँ। जब कहने को कुछ भी नहीं होता तब मैं तुमसे बातें करता रहता हूँ, और जब मेरे भीतर क्रंदन हो रहा होता है तब मैं चुप रहता हूँ। ध्यान से सुनने के कोशिश करो कि मैं तुमसे क्या छुपा रहा हूँ। मैं वाकई चाहता हूँ कि मैं खरा-खरा, निष्कपट, और जैसा हूँ वैसा ही बनूँ।

हर बार जब तुम प्यार और विनम्रता से पेश आते हो, मेरा हौसला बढ़ाते हो, मेरी परवाह करते हो, मुझे समझते हो, तब मेरा दिल खुशी से आहिस्ता-आहिस्ता मचलने लगता है। अपनी संवेदनशीलता और करुणा और मुझे जानने की ललक के कारण केवल तुम ही मुझे अनिश्चितता के भंवर से निकल सकते हो।

यह तुम्हारे लिए आसान नहीं होगा। तुम मेरे करीब आना चाहोगे और मैं तुम्हें चोट पहुचाऊंगा। लेकिन मुझे पता है कि प्रेम कठोर-से-कठोर दीवारों को भी तोड़ देता है और यह बात मुझे आस बंधाती है।

तुम सोच रहे होगे कि मैं कौन हूँ…

मैं हर वह आदमी हूँ जिससे तुम मिलते हो। मैं तुमसे मिलने वाली हर स्त्री हूँ।

मैं तुम ही हूँ।

(image credit)

There are 4 comments

  1. shivangi

    कॉलेज के दिनों में लिखी थी ये कविता, कुछ पंक्तियाँ :
    “आवरणों की सत्ता से झुकी इस दुनिया में
    मेरी परछाई भी मेरी अपनी नहीं
    हर एक चेहरे पर एक चेहरा
    ये मेरे जीवन का सत्य बना
    पहले था जहाँ अकेला मैं
    न जाने कितनो का आत्मीय बना “

    पसंद करें

  2. Amrendra Nath Tripathi

    दार्शनिक खोह में ले जाता प्रसंग! हर आदमी की नियति मुखौटों सी!
    किसका है याद नहीं आ रहा, पर पंक्ति यूं है:
    ‘हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी/जिससे भी मिलो कई कई बार देखना!’
    ….
    नियति को लेकर एक टीस भी व्यक्त है!

    पसंद करें

टिप्पणी देने के लिए समुचित विकल्प चुनें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.