धनुर्विद्या के कई मुकाबले जीतने के बाद एक युवा धनुर्धर को अपने कौशल पर घमंड हो गया और उसने एक ज़ेन-गुरु को मुकाबले के लिए चुनौती दी। ज़ेन-गुरु स्वयं बहुत प्रसिद्द धनुर्धर थे। युवक ने अपने कौशल का प्रदर्शन करने के लिए दूर एक निशाने पर अचूक तीर चलाया। उसके बाद उसने एक और तीर चलाकर निशाने पर लगे तीर को चीर दिया। फ़िर उसने अहंकारपूर्वक ज़ेन-गुरु से पूछा – “क्या आप ऐसा कर सकते हैं?”
ज़ेन-गुरु इससे विचलित नहीं हुए और उसने युवक को अपने पीछे-पीछे एक पहाड़ तक चलने के लिए कहा। युवक समझ नही पा रहा था कि ज़ेन-गुरु के मन में क्या था इसलिए वह उनके साथ चल दिया। पहाड़ पर चढ़ने के बाद वे एक ऐसे स्थान पर आ पहुंचे जहाँ दो पहाडों के बीच बहुत गहरी खाई पर एक कमज़ोर सा रस्सियों का पुल बना हुआ था। पहाड़ पर तेज़ हवाएं चल रहीं थीं और पुल बेहद खतरनाक तरीके से डोल रहा था। उस पुल के ठीक बीचोंबीच जाकर ज़ेन-गुरु ने बहत दूर एक वृक्ष को निशाना लगाकर तीर छोड़ा जो बिल्कुल सटीक लगा।
पुल से बाहर आकर ज़ेन-गुरु ने युवक से कहा – “अब तुम्हारी बारी है”। यह कहकर ज़ेन-गुरु एक ओर खड़े हो गए।
भय से कांपते-कांपते युवक ने स्वयं को जैसे-तैसे उस पुल पर किसी तरह से जमाने का प्रयास किया पर वह इतना घबरा गया था कि पसीने से भीग चुकी उसकी हथेलियों से उसका धनुष फिसल कर खाई में समा गया।
“इसमें कोई संदेह नही है की धनुर्विद्या में तुम बेमिसाल हो” – ज़ेन-गुरु ने उससे कहा – “लेकिन उस मन पर तुम्हारा कोई नियंत्रण नहीं जो किसी तीर को निशाने से भटकने नहीं देता”।
Photo by Zoltan Tasi on Unsplash
bahut sundar…
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bahut badhiya
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प्रेरक! असली निशाना आभ्यंतर की नियंत्रण-प्रक्रिया से सधता है! उसपर नियंत्रण से अहंकार भी नियंत्रण में रहता है!
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Achchi kahani hai insan ko kabhi bhi ghamand nahi karna chahiye,
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