लहरें

विशाल महासागर में एक लहर चढ़ती-उतराती बही जा रही थी। ताज़ा हवा की लहरों में अपने ही पानी की चंचलता में मग्न। तभी उसने एक लहर को किनारे पर टकरा कर मिटते देखा।

“कितना दुखद है” – लहर ने सोचा – “यह मेरे साथ भी होगा!”

तभी एक दूसरी लहर भी चली आई। पहली लहर को उदास देखकर उसने पूछा – “क्या बात है? इतनी उदास क्यों हो?”

पहली लहर ने कहा – “तुम नहीं समझोगी। हम सभी नष्ट होने वाले हैं। वहां देखो, हमारा अंत निकट है।”

दूसरी लहर ने कहा – “अरे नहीं, तुम कुछ नहीं जानती। तुम लहर नहीं हो, तुम सागर का ही अंग हो, तुम सागर हो।”

अमेरिकी लेखक Mitch Albom की कहानी

Photo by ショーン on Unsplash

There are 1 comments

  1. Amrendra Nath Tripathi

    ओह! यही है, ज्ञान होना कि उस ब्रह्म के साथ हमारा अंशी-अंश का संबंध है, फिर काहे की चिन्ता!!
    “हरि मरिहैं तो हमहूं मरिहैं
    हरि न मरै हम काहे को मरिहैं!” [~कबीर]

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