गुबरीले और हाथी

एक दिन एक गुबरीले को गोबर का एक बड़ा सा ढेर मिला। उसने इसका मुआयना किया और अपने दोस्तों को इसके बारे में बताया। उन सभी ने जब यह ढेर देखा तो इसमें एक नगर बसाने का निश्चय किया। कई दिनों तक उस गोबर के ढेर में दिन-रात परिश्रम करने के बाद उनहोंने एक भव्य ‘नगरी’ बनाई। अपनी उपलब्धि से अभिभूत होकर उनहोंने गोबर के ढेर के खोजकर्ता गुबरीले को इस नगरी का प्रथम राजा बना दिया। अपने ‘राजा’ के सम्मान में उनहोंने एक शानदार परेड का आयोजन किया।

उनकी परेड जब पूरी तरंग में चल रही थी तभी उस ढेर के पास से एक हाथी गुज़रा। उसने ढेर को देखते ही अपना पैर उठा दिया ताकि उसका पैर कहीं ढेर पर रखने से गन्दा न हो जाए। जब राजा गुबरीले ने यह देखा तो वह आपे से बाहर हो गया और चिल्लाते हुए हाथी से बोला – “अरे ओ, क्या तुममें राजसत्ता के प्रति कोई सम्मान नहीं है? क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारा इस प्रकार मुझपर पैर उठाना मेरी कितनी बड़ी अवमानना है? पैर नीचे रखकर फ़ौरन माफ़ी मांगो अन्यथा तुम्हें दण्डित किया जाएगा!”

हाथी ने नीचे देखा और कहा – “क्षमा करें महामहिम, मैं अपने अपराध के लिए दया की भीख मांगता हूँ”। इतना कहते हुए हाथी ने अपार आदर प्रदर्शित करते हुए गोबर के ढेर पर धीरे से अपना पैर रख दिया।

Photo by Gautam Arora on Unsplash

There are 4 comments

टिप्पणी देने के लिए समुचित विकल्प चुनें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.